टूट रहा फसल चक्र, बीमार हो रही भूमि, 3.5 लाख से 45 हजार हैक्टेयर तक सिमटा चने का रकबा

2/1/2020 12:25:18 PM

सिरसा(सेतिया): पानी का कम दोहन करने वाले एवं मिट्टी उपजाऊ शक्ति को सहायक बनाने में असरकारक जौं व चने की खेती से अब किसान दूर हो रहे हैं। पिछले 5 दशक में चने का रकबा 3.5 लाख हैक्टेयर से 45 हजार हैक्टेयर तक सिमट गया है जबकि जौं की खेती अब महज 23 हजार हैक्टेयर पर हो रही है। वहीं पानी का अधिक दोहन करने वाला धान का रकबा 2.50 लाख हैक्टेयर से 13 लाख हैक्टेयर तक पहुंच गया है। रबी सीजन में गेहूं व सरसों तो खरीफ सीजन में धान व नरमा की खेती का रकबा बढऩे के कारण फसल विविधीकरण का चक्र टूट रहा है। इस वजह से जमीन की सेहत खराब हो रही है, पानी का अधिक दोहन हो रह है।

दरअसल, हरियाणा कृषि प्रधान राज्य है। शासकीय-प्रशासकीय उदासीनता का ही आलम है कि अब हरियाणा में फसल चक्र टूट रहा है। हरियाणा में कुल करीब 37 लाख हैक्टेयर भूमिक  पर खेती होती है। रबी सीजन में यहां पर गेहूं, सरसों की काश्त होती है तो खरीफ सीजन में चावल, ज्वार, बाजारा व नरमा बोआ जाता है। 

चने, तिलहन-दलहन फसलें, जौं, सूरजमुखी के खेत अब सिमटकर रह गए हैं। उदाहरण के रूप में इस रबी सीजन में ही 1 लाख 4 हजार हैक्टेयर रकबे पर चने की काश्त का लक्ष्य रखा गया था और बिजाई हुई है कि 45 हजार 500 हैक्टेयर में। यानी 60 फीसदी लक्ष्य अधूरा रह गया है। 46 हजार हैक्टेयर लक्ष्य की तुलना में 23,700 हैक्टेयर रकबे पर जौं की काश्त की गई है तो 22 हजार हैक्टेयर की तुलना में 15 हजार हैक्टेयर में सूरजमुखी बोई गई है।

दलहन के खेत भी निरंतर सिमट रहे हैं। 10 हजार हैक्टेयर लक्ष्य की तुलना में 3600 हैक्टेयर में दलहन की काश्त की गई है। फसल चक्र न अपनाने का नतीजा ही है कि भूमि की सेहत खराब हो रही है। चने व जौं की खेती में गेहूं व अन्य फसलों की अपेक्षा बहुत कम मात्रा में खाद का इस्तेमाल होत है। पर अब चने व जौं की खेती न होने के चलते भूमि में नाइट्रोजन, फास्फोरस व जिंक जैसे तत्वों की निरंतर कमी हो रही है। कृषि विभाग के आंकड़ों के अनसार 70 के दशक में करीब साढ़े 3 लाख हैक्टेयर में चना, 1 लाख हैक्टेयर में जौं व 40 हजार हैक्टेयर में सूरजमुखी की खेती होती थी। पहले दालों का रकबा भी 50 हजार हैक्टेयर था। अब चने, सूरजमुखी, जौं व दालों का कुल रकबा ही 93 हजार हैक्टेयर तक रह गया है।

इस संबंध में जिला कृषि उपनिदेशक डा. बाबू लाल का कहना है कि अब किसान नरमा, धान, गेहूं व सरसों जैसी फसलों की ओर आकॢषत हो रहा है। नहरी पानी आने और खेती में सिंचाई के साधन विकसित होने के बाद बरानी जमीन में कमी आई है। चने की पैदावार बरानी जमीन में ही होती है। इसके अलावा जौं की फसल अनुबंध के आधार पर होती है। इसलिए किसान सरकारी खरीद पर बिकने वाली फसलों की ही काश्त कर रह है।

Edited By

vinod kumar