फाइनैंसरों के मकडज़ाल में शहर

4/3/2019 8:55:14 AM

यमुनानगर(सतीश): शहर के अधिकतर परिवार फाइनैंसरों के मकडज़ाल में फंसे हुए हैं। विडम्बना यह है कि कई लोगों के शहर से पलायन करने और कुछ के परेशान होकर जान गंवाने की घटना के बाद भी पुलिस-प्रशासन गली मोहल्ले में कार्यालय खोलकर बैठे इन कथित फाइनैंसर (सूदखोरों) पर लगाम नहीं कस पाया है। इसके चलते इनका आतंक दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। ये हाल तब जब जिला में छोटे-बड़े 5 हजार से अधिक फाइनैंसर अवैध तौर पर काम कर रहे हैं। इन सबके कारण पिस और मर गरीब ही रहा है, क्योंकि उसे पैसे की जरूरत पूरा कर आज का दिन निकालना होता है। उसे ये नहीं पता कि इन सब के चक्कर में वह अपना और परिवार का भविष्य बर्बाद कर रहा है। ध्यान रहे मार्च माह में सूदखोरों के जाल में फंसे चिट्टा मंदिर रोड मधु कालोनी की मंजू की मौत हो गई थी। तब सदर यमुनानगर पुलिस ने मृतका के पति के बयान के आधार पर इस मामले में हत्या के लिए उकसाने के आरोप में फाइनैंसर पर केस दर्ज किया था।    
 
अपराध बढ़ौतरी का कारण बनी सूदखोरी
कथित फाइनैंसर का कर्ज मेहनत और ईमानदारी की कमाई से चुकाना बेहद मुश्किल है, क्योंकि यह दिए गए रुपए पर मोटा ब्याज व जुर्माना लगाते हैं। इसके चलते इनके चंगुल में फंसे लोग कई बार अपराध करने पर विवश हो जाते हैं। क्षेत्र में अपराध बढ़ौतरी का एक बड़ा कारण भी सूदखोरी ही है। बताया जा रहा है 4 गुना ब्याज देने पर भी असल पैसा खड़ा रहता है। इस सब को पैसे लेने वाला परिवार ही नहीं बल्कि फाइनैंसर भी भुगतते हैं। बीते माह में एक फाइनैंसर पर मामला दर्ज हुआ था। फाइनैंसर का कहना है कि वह तो पैसे देने उनके घर नहीं गया, जरूरत के कारण परिवार ही उनके पास आया था।      

व्यापारी उठा चुके हैं पाबंदी की मांग
इस धंधे से बढ़े अपराध पर लगाम के लिए पूर्व में एक बैठक भी हुई थी। बैठक में पुलिस ने अपराध व अपराधियों पर लगाम के संबंध में व्यापारियों से सुझाव मांगे थे। इस दौरान व्यापारियों ने फाइनैंस के अवैध कारोबार पर पाबंदी लगाने की मांग की थी। तब से अब तक पुलिस ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। यदि पुलिस अपने खुफिया स्तर पर संज्ञान ले तो लोगों कि टीस कम हो सकती है। मौजूदा एस.पी. कुलदीप सिंह यादव ने ऐसे लोगों पर कार्रवाई भी की, पर इस दिशा में ज्यादा सख्त होना पड़ेगा।

कर्ज लेता है एक, चंगुल में फंसता है परिवार
महंगाई, बेरोजगारी और आसानी से रुपए मिलने का जरिया। इन तीनों परिस्थितियों का तालमेल किसी भी व्यक्ति को सूदखोरी के जाल में फंसा देता है। महंगाई दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और बेरोजगार के लिए इससे पार पाने के लिए किसी न किसी दिन कथित फाइनैंसर्स का दरवाजा खटखटाना पड़ता है। अगर कोई परिस्थितियां वश कथित फाइनैंसर के चंगुल में फंस जाए, तो इनके चंगुल से निकलना आसान नहीं होता। अगर, कर्ज लेने वाला व्यक्ति सूद समेत रुपए वापस नहीं कर पाता, तो फाइनैंसर उसके परिवार के लोगों पर दवाब बनाने लगते हैं।

रुपए न मिलने पर करते हैं बेइज्जत
अगर मोटे ब्याज और दिए गया कर्ज चुकाने पर कर्जदार व उसका परिवार आनाकानी करता है, तो कथित फाइनैंसर उसकी बदनामी शुरू कर देते हैं। आए दिन घर व प्रतिष्ठान पर पहुंचकर अभद्रता और मारपीट करने लगते हैं। इससे तंग आकर कई युवक व उनका परिवार शहर से पलायन कर चुके हैं। कुछ तो बदनामी के डर से जान दे चुके है। हाल ही में वार्ड 15 में इस तरह की घटना हुई। इस युवक की नई-नई शादी हुई थी, सूदखोर उसके घर आकर धमकाने लगे। इन सब से तंग उसकी पत्नी घर छोड़कर चली गई।     


अवैध धंधा है ये, न फंसे लोग : एल.डी.एम.
पी.एन.बी. के लीड डिस्ट्रिक मैनेजर (एल.डी.एम.) सुनील चावला का कहना है कि फाइनैंसर और चिट फंड का धंधा अवैध है। लोग इनसे न तो पैसे लें और न ही इनके यहां पैसे लगाएं। ज्यादा ब्याज के चक्कर में लोग अपना असर भी गंवा बैठते हैं और जान भी। उन्होंने कहा कि सरकारी एजैंसी यानी बैंक ही भरोसे और सुरक्षा का सौदा है। उन्होंने कहा कि आज कृषि ऋण की बात करें तो 3 लाख तक मात्र 4 प्रतिशत ब्याज है। इसी तरह व्यापारिक लोन यानी एम.एस.एम.ई. पर प्रतिवर्ष 11 प्रतिशत पड़ता है जो एक प्रतिशत से भी कम है।

शिकायत दें कार्रवाई होगी : एस.पी.
एस.पी. कुलदीप सिंह यादव का कहना है कि वे इस पूरे मामले को अपने स्तर पर चैक करवाते हैं। लोगों के साथ गलत नहीं होने दिया जाएगा। यदि किसी के साथ गलत हो रहा है तो वे लिखित शिकायत दें। उनसे मिलकर दिक्कत बताएं। इस पर कार्रवाई होगी।


फाइनैंसर के हाथ में चली जाती है जमीन
आमतौर पर फाइनैंसरों के चंगुल में फंसने की भी बड़ी आसान प्रक्रिया होती है। ऐसे लोगों को जैसे ही कोई कोई काम पड़ा, सूदखोर सक्रिय हो जाते हैं। बीमारी, सामाजिक दायित्व का निर्वहन या कोई अन्य किसी काम के दौरान उन्हें बड़ी मीठी बोली में अधिकाधिक ऋण देने की कोशिश की जाती है। कई बार तो देखा जाता है कि सामाजिक दायित्वों के निर्वहन में समाज के पंच जबरदस्ती कर्ज दिलाकर बिरादरी में भोज करवा देते हैं और उसे वापस नहीं करने की स्थिति में जमीन/प्रापर्टी उसके हाथ से खिसककर फाइनैंसर के हाथ में चली जाती है।


चिट फंड कमेटी का धंधा है अवैध, जिम्मेदार मौन
शहर में चिट फंड कमेटी का धंधा जोरों पर है। आए दिन निजी होटल में लोग मासिक बैठक कर कमेटी का आदान प्रदान करते हैं। ये धंधा अवैध है, बावजूद इसके जिम्मेदार मौन है। पिछले दिनों ही शहर में चिट फंड कमेटी का नामी-गिरामी संचालक शहरी छोड़कर फरार हो गया था, जिसके बाद लोगों ने उससे करोड़ों रुपए की लेनदारी बताई। आज भी ये लोग थाना के चक्कर लगा रहे हैं लेकिन इनके पास पैसे देने का कोई ठोस सबूत नहीं है, जिस कारण इनके दिए गए पैसे ही इन्हें वापस नहीं मिल रहे। ये तो एक उदाहरण है शहर में इस तरह के उदाहरण हर रोज हो रहे है। 


कच्ची डायरी पर चलता है खेल
शहर में ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं है जिन्होंने साल 2 साल के लिए चिट फंड कमेटी में पैसा लगा रखा है। कच्चे लालच और अधिक ब्याज के चलते ये लोग इनके मकडज़ाल में फंसे हुए हैं। ये सारा धंधा एक पॉकेट डायरी पर चल रहा है। पैसे लेने-देने की एंट्री पर कोई साइन नहीं, कोई मोबाइल नंबर नहीं और न ही कोई पक्का रिकॉर्ड, बस एक साइनों की घुग्गी मारकर लाखों का काम चल रहा है। ये कहना गलत नहीं होगा कि लोगों ने अपने ही प्राइवेट बैंक बना रखें हैं। जब किसी को पैसे की जरूरत पड़ती है तो ये लोग 2 से 10 प्रतिशत तक मीटर ऋण लेते हैं यानि ब्याज पर ब्याज।  उन्हें बैंकिंग क्षेत्र में अपने पैसे को सुरक्षित रखना चाहिए।

 

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