''नारी शक्ति वंदन अधिनियम'' के तहत राजनीतिक पार्टियों के लिए चुनौती बन सकता है महिला नेत्रियों को ढूंढना

punjabkesari.in Thursday, Mar 07, 2024 - 08:59 PM (IST)

चंडीगढ़ (चंद्र शेखर धरणी): संसद में पास हुआ 'नारी शक्ति वंदन अधिनियम' बेशक राजनीतिक रूप से महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए एक बहुत बड़ा कदम माना जा रहा है, सांसदों और विधायकों में 33 फ़ीसदी अगर हिस्सेदारी महिलाओं की होगी तो इसमें कोई दो राय नहीं कि पुरुष प्रधान समाज में लगातार बहुत स्पीड से बदलाव आना सुनिश्चित होगा। इससे पहले भी केंद्र और प्रदेश सरकारों ने समय-समय पर महिलाओं को ताकत प्रदान करने हेतु कई क्रांतिकारी कदम उठाए हैं। लेकिन हरियाणा प्रदेश की धरातली वास्तविकता पर अगर गौर किया जाए क्या वास्तव में हरियाणवी राजनीति में महिलाएं इतनी अधिक एक्टिव है, जिनमें से टिकट वितरण हेतु पार्टी आसानी से उम्मीदवारों का चयन कर पाएगी। 

मुख्य रूप से हरियाणा में कांग्रेस- भाजपा- इनेलो- जेजेपी सक्रिय राजनीतिक दल हैं। अगर हकीकत की बात करें तो इनमें से किसी भी पार्टी के पास सक्रिय नेताओं में 33 फ़ीसदी महिलाएं नजर नहीं आती। हालांकि बना यह कानून 2029 के बाद लागू होगा। परिसीमन के बाद होने वाले चुनावों में इस कानून के तहत महिलाओं को 33 फ़ीसदी टिकट देना हर राजनीतिक दल के लिए अनिवार्य होगा। लेकिन महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी आज शायद पांच फ़ीसदी भी नजर नहीं आती।

कांग्रेस के पास 5 तथा भाजपा के पास केवल 3 ही हैं महिला विधायक 

बेशक हर राजनीतिक दल ने अपने-अपने महिला विंग बना रखे हो, बेशक महिला विंग में महिलाओं की उपस्थिति देखने को तो तरह-तरह के कार्यक्रमों में नजर आती हो, लेकिन कुछ महिलाओं को छोड़कर अधिकतर यह महिलाएं राजनीतिक रूप से इतनी अधिक परिपक्व नजर नहीं होती। परिसीमन के बाद होने वाले टिकट बंटवारे में कुल 90 में से 30 सीटों पर महिलाओं को उतारना हर पार्टी के लिए अनिवार्य होगा। ऐसी भी संभावनाये है कि तब विधानसभा सीटें 125 से अधिक होंगी।  आज की स्थिति यह है कि किसी भी दल के पास शायद 30 महिला चेहरे ऐसे नहीं है जिन पर आसानी से पार्टी उम्मीदवार के रूप में भरोसा कर पाए। हरियाणा प्रदेश में आज भारतीय जनता पार्टी की जजपा और निर्दलीयों के साथ गठबंधन सरकार है। भाजपा के कुल 41 विधायक हैं। जिनमें से मात्र तीन ही विधायक महिलाएं हैं। कलायत से कमलेश ढांडा, गन्नौर से निर्मल रानी और बड़खल से सीमा त्रिखा भाजपा की विधायक हैं और संगठन में भी महिलाओं की भागीदारी ना के बराबर नजर आती है। कुछ महिला नेत्रियों को छोड़ हर राजनीतिक दल में पूरी तरह से पुरुष नेता ही पार्टी की बागडोर संभाले हुए नजर आते हैं। प्रदेश लेवल पर तो भारतीय जनता पार्टी के पास पूर्व मंत्री कविता जैन जैसा एक आध ही चेहरा मौजूद है। वही मौजूदा दौर में भाजपा से अधिक महिला विधायक कांग्रेस पार्टी के पास है। कांग्रेस में नारायणगढ़ से शैली, सदौरा से रेनू बाला, तोशाम से किरण चौधरी, कलानौर से शकुंतला खटक और झज्जर से गीता भुक्कल को मिलाकर कुल पांच महिला विधायक है। कांग्रेस के पास प्रदेश लेवल की नेत्रियों में कुमारी शैलजा, किरण चौधरी जैसी कुछ ही नेता मौजूद है। जननायक जनता पार्टी के पास कुल 10 विधायकों में से एक महिला विधायक नैना सिंह चौटाला है। जेजेपी पार्टी में नैना सिंह चौटाला के साथ शीला भयाना ही सक्रिय रहने वाली नेत्री है। वही इंडियन नेशनल लोकदल में सुनैना चौटाला और सुमित्रा देवी दो ही नेत्रियां मुख्य रूप से सक्रिय राजनीति का हिस्सा है।

प्रदेश में तीन सगी बहनें मुख्य सचिव पद की बढ़ा चुकी है शोभा

ऐसा नहीं है कि इस प्रकार का दौर यह पहली बार है, जब राजनीति में महिलाएं बहुत कम देखी जा रही हों। हरियाणा का कल्चर हमेशा पुरुष प्रधान रहा, जिस कारण से आज तक के इतिहास में हरियाणा से कोई भी महिला मुख्यमंत्री के रूप में प्रदेश का नेतृत्व नहीं कर पाई। राजनीति में कम हिस्सेदारी को महिलाओं की कमजोरी- दक्षता- क्षमता और काबिलियत के पैमाने से नहीं मापा जा सकता। क्योंकि अगर प्रशासनिक रूप से बात की जाए तो चीफ सेक्रेटरी जैसी सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी अब तक प्रदेश में पांच महिलाएं बखूबी संभाल चुकी हैं। जिनका कार्यकाल प्रदेश के लिए सर्वोत्तम साबित हुआ है। इन महिलाओं में से तीन सगी बहनें मीनाक्षी आनंद चौधरी, उर्वशी गुलाटी तथा पहली महिला उपयुक्त का खिताब हासिल करने वाली केशनी आनंद अरोड़ा हैं। इनके अलावा प्रोमिला इस्सर और शकुंतला जाखू भी इस पद की शान बढ़ा चुकी है। 

अधिक से अधिक महिलाओं को राजनीतिक रूप से ट्रेंड करना सभी पार्टियों की आवश्यकता और मजबूरी

देश की लोकसभा ने 20 सितंबर को यह महिला आरक्षण बिल 454 मतों से अवश्य पास कर दिया, लेकिन लागू होने के बाद महिलाओं को 33 फ़ीसदी की हिस्सेदारी कैसे मिल पाएगी, वास्तविक स्थिति को देख इस प्रश्न का उत्तर ढूंढ पाना आसान नहीं है। यह महिला आरक्षण बिल पिछले 27 सालों से लटका हुआ था, तमाम राजनीतिक दलों में इसे पास करवाने की कोशिश की, लेकिन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का महिलाओं के प्रति समर्पित भाव इस बिल को पास करवाने में अवश्य सफल रहा, जिसका राजनीतिक लाभ लेने के लिए भाजपा ने इसका बढ़-चढ़कर प्रचार प्रसार भी किया। लगभग तीन दशक से आधर में लटके होने के बावजूद किसी भी राजनीतिक दल ने अपनी पार्टी में महिलाओं की भागीदारी नहीं बढाई। आने वाले समय में बिल लागू होने के बाद सभी राजनीतिक दलों को इसकी खामी अवश्य खलेगी। आज इस बात की बेहद आवश्यकता और राजनीतिक दलों की मजबूरी है कि हर राजनीतिक दल अधिक से अधिक महिलाओं को राजनीतिक रूप से ट्रेंड करें ताकि आने वाले समय में यह महिलाएं पूरी क्षमता, दक्षता और काबिलियत के साथ विरोधियों के सामने राजनीतिक मैदान में उतर पाए और एक उत्तम जनप्रतिनिधि साबित होकर देश - प्रदेश को आगे ले जाने में अपना योगदान दे पाए।

 

 


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Content Editor

Nitish Jamwal

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