सरकारी कर्मचारियों के लिए नए आदेश, दहेज लिया तो ....

11/18/2017 11:22:27 AM

चंडीगढ़(बंसल): शादी के समय दहेज लेना अब सरकारी कर्मचारियों के लिए आफत रहेगा क्योंकि प्रत्येक सरकारी कर्मचारी अपने विभागाध्यक्ष को इस बात का घोषणा-पत्र देगा कि उसने कोई दहेज नहीं लिया है। घोषणा-पत्र पर पति के अलावा पत्नी और ससुर के हस्ताक्षर आवश्यक हैं। नियमों के विपरीत जाकर यदि कोई सरकारी कर्मचारी दहेज लेता है और दहेज नहीं लेने का झूठा शपथ पत्र देता है तो वह चार्जशीट हो सकता है। हरियाणा सरकार के सिविल सेवा नियमों में किसी भी कर्मचारी द्वारा दहेज नहीं लेने तथा इसका शपथपत्र देने का प्रावधान है लेकिन इन दोनों व्यवस्थाओं का अनुपालन नहीं किया जा रहा। राज्य के सूचना आयुक्त हेमंत अत्री ने दहेज से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए प्रदेश सरकार को हिदायतें जारी की हैैं कि सेवा नियमों का कड़ाई से अनुपालन कराया जाए, ताकि सभी कर्मचारी दहेज नहीं लिए जाने का शपथ पत्र दें।

सूचना आयुक्त ने इस बात पर गहरी नाराजगी जताई कि हरियाणा सिविल सेवा नियम 2016 की धारा-18 (2) महज औपचारिकता बनकर रह गई। उन्होंने आबकारी एवं कराधान विभाग के कर्मचारी से जुड़े एक मामले में फैसला सुनाया कि किसी भी केस में पत्नी तृतीय पक्ष (थर्ड पार्टी) नहीं हो सकती। घरेलू कलह के चलते नाराज पत्नी यदि अपने पति के बारे में सरकार से कोई सूचना मांगती है तो उसकी अर्जी को यह कहते हुए खारिज नहीं किया जा सकता कि पत्नी थर्ड पार्टी है इसलिए सूचना मुहैया नहीं कराई जा सकती। इस विवाहिता ने संबंधित विभाग से अपने पति द्वारा दिए गए शपथ पत्र के बारे में जानकारी मांगी थी, जो यह कहते हुए नहीं दी गई कि थर्ड पार्टी को सूचना नहीं दी जा सकती। दोनों का मामला दहेज विवाद से जुड़ा है। सूचना आयोग ने पत्नी को आवश्यक पक्ष करार देते हुए कहा कि तलाक से पहले पत्नी का संवैधानिक हक कि वह अपने पति के बारे में कुछ भी जानकारी हासिल कर सकती है।

विवाहिता द्वारा मांगी गई जानकारी तत्काल देने के आदेश देते हुए हेमंत अत्री ने कहा कि भविष्य में सभी सरकारी विभागों के सूचना अधिकारी इस बात का ख्याल रखें कि हरियाणा सिविल सेवाएं नियम-2016 की धारा 18 (2) में निहित प्रावधानों का हर हाल में क्रियान्वयन सुनिश्चित करें। नियमों के विपरीत जाकर यदि कोई सरकारी कर्मचारी दहेज लेता है और दहेज नहीं लेने का झूठा शपथ पत्र देता है तो वह चार्जशीट हो सकता है।

सूचना आयुक्त ने आरटीआई कानून की धारा-25(5) के तहत सिफारिश की है कि मुख्य सचिव डेढ़ माह के भीतर अपने सभी विभागाध्यक्षों को इस नियम की पालना के आदेश जारी करें और इन आदेश की प्रति राज्य सूचना आयोग को भी भेजें। हेमंत अत्री ने आबकारी एवं कराधान विभाग के जनसूचना अधिकारी को ऐसे किसी भी मामले में आरटीआई कानून के तहत स्वतंत्र और समयबद्ध फैसला लेने की हिदायतें दी हैैं।