समाजसेवी सतपाल सिंगला की शोक सभा में शामिल हुए ज्ञानानंद जी महाराज

6/21/2022 8:36:53 PM

चंडीगढ़(धरणी): पंचकूला के समाजसेवी सतपाल सिंगला की शोक सभा का कार्यक्रम माता मनसा देवी के गौशाला गोदाम में मंगलवार को संपन्न हुआ। शोक सभा में मुख्य तौर पर स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज वृंदावन और सद्गुरु स्वामी वागीश जी महाराज, हरिद्वार से साथ ही संगरूर पंजाब से श्री कमल दास महाराज भी उपस्थित हुए। शोक सभा में भारी मात्रा में लोगों ने सतपाल सिंगला की मृत्यु पर शोक प्रकट किया। स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि सतपाल सिंगला का जीवन बेहद नरम और प्रभु के चरणों में लीन रहा। वह अपने साथ अपनी अच्छी कमाई लेकर गए और सत्संग, सिमरन, सद्भावना और सेवा की अच्छी प्रेरणा परिवार के लिए छोड़ कर गए। दिनेश सिंगला व बॉबी शिंगला उनके पदचिन्हों पर चल रहे है।

स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने दिया खास उपदेश

कार्यक्रम में स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने उपदेश देते हुए कहा कि आज विज्ञान भले ही कितनी ही उपलब्धियां हासिल कर चुका है, लेकिन प्रकृति के नियम के साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। सृष्टि बेहद सुंदर, आकर्षक, सुहावनी, लुभावनी और मनभावनी है। लेकिन सृष्टि भी परिवर्तन के अटल नियमों से बंधी हुई है। सृष्टि में कोई ऐसी वस्तु, पदार्थ या पुरानी नहीं जिस पर यह नियम लागू ना होता हो। तमाम धर्मों के तमाम ग्रंथ यही उपदेश देते हैं। सुबह की प्रभात, फिर दोपहर को सूरज का प्रचंड तप, धीरे-धीरे सूरज का ढलना और फिर अस्त होना एक संदेश है। इस नियम के सामने ना किसी सत्ताधारी की ताकत चली, ना किसी वैज्ञानिक का विज्ञान और ना ही किसी डॉक्टर की दवा। दवा बीमारी का इलाज करती है मृत्यु का नहीं। खुद सबसे बड़ा लुकमान हकीम का बेटा पिता की दवाई से नहीं बच पाया था। तब लुकमान हकीम सारी दवाइयां नदी में फेंकने गया तो आवाज आई कि अहंकार मत कर कि तू तेरी दवाई से मृत्यु से बचा सकता है। यह अटल सत्य है कि तेरे बेटे की उम्र नहीं थी। इसी तरह महश्री व्यास ने अपने नाना के लिए धर्मराज से सिफारिश की। लेकिन सिफारिश लगते लगते नाना श्वाश छोड़ गए थे। इस नियम के सामने ना कोई तिजोरी, ना कोई सिफारिश काम आती है।

स्वामी वागीश महाराज बोले, अत्यंत दुर्लभता से मिलता है मानव जन्म

सद्गुरु स्वामी वागीश जी महाराज ने इस शोक सभा में संदेश देते हुए कहा कि अनेक योनियों के भोग के बाद अत्यंत दुर्लभता से गोविंद से मिलने के लिए इस मानव शरीर की प्राप्ति होती है। इसके जरिए ही आप अपनी योनि को सुधार भी सकते हो और बिगाड़ भी। पुण्य ज्यादा होंगे तो देव योनि प्राप्त हो सकती है। इसलिए मानव जीवन में शास्त्र विरुद्ध कार्य ना करते हुए प्रभु के चरणों में लीन होना चाहिए।

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Content Writer

Vivek Rai