अपंगता को नहीं बनने दिया अभिशाप, किया ऐसा काम कि गूंज उठा नाम

3/27/2017 3:52:27 PM

बड़ागुढ़ा(रेशम):अक्सर किसी दुर्घटना में अंग गंवाकर कुछ लोग किस्मत को दोष देते हुए जिंदगी से हार जाते हैं लेकिन, वहीं कुछ बुलंद हौसले वाले लोग भी मौजूद हैं जो चलने-फिरने में असमर्थ होते हुए भी अपंगता को अभिशाप नहीं बनने देते। ऐसे ही बुलंद हौसले व जिंदादिल इंसान हैं रोड़ी निवासी मोहन दास उर्फ मोहना। मोहन दास को एक दुर्घटना ने रीढ़ की हड्डी फ्रैक्चर होने पर चाहे चारपाई पर बिठाने पर मजबूर कर दिया लेकिन उसने हार नहीं मानी और चलने-फिरने व बाहर जाने में असमर्थ होने की सीमा को तोड़ते हुए थ्री-व्हीलर के इंजन और कबाड़ के सामान से 4 फुट की एक ऐसी जीप व छोटे से ट्रैक्टर का अविष्कार कर डाला जिसे अपने हाथों से ही कंट्रोल करता है। घर में वह इलैक्ट्रॉनिक व्हीलचेयर के सहारे चलता है और अपने आपको किसी पर बोझ न बनाते हुए सभी काम खुद करता है। यही नहीं शौक-शौक में वह ट्रैक्टर वर्क्स के कार्य करते हुए अच्छी कमाई भी कर लेता है।

शुरू से ही इलैक्ट्रॉनिक मशीनें बनाने का शौक
मोहन दास बचपन से ही इलैक्ट्रॉनिक मशीनें बनाने में माहिर था। रोड़ी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ चुके महंत बलदेव दास पढ़ाई के दौरान अपने बेटे मोहन को जो भी खर्च देते थे वह फिजूलखर्च करने की बजाय उसे जमा कर लेता। 13 साल की उम्र में इन्हीं पैसों से स्कूटर के इंजन, टायर व कुछ कबाड़ खरीद पैट्रोल से चलने वाली छोटी सी जीप बनाई। 2009 में जब वह दोस्त की बैल्डिंग की दुकान पर एक ट्राली को बैल्डिंग करने लगा तो मोबाइल सुनते समय 11,000 वोल्ट की चपेट में आने से उसकी रीढ़ की हड्डी फै्रक्चर हो गई। दुर्घटना के 2 साल बाद ही मोहन दास ने व्हीलचेयर पर बैठे-बैठे ही ऑटो के इंजन से छोटा गार्डन ट्रैक्टर बनाया लेकिन तकनीक से सभी कंट्रोलर स्टेयरिंग के पास फिट किए। 

मिनी ट्रैक्टर पर खेत जाकर उसका मन बड़े ट्रैक्टर पर काम करने को किया लेकिन चलने-फिरने में असमर्थ होने पर उसने बड़े ट्रैक्टर पर भी स्टेरिंग के पास ही कंट्रोलर फिट कर दिए। इससे वह ट्रैक्टर से बिजाई के काम भी करने लगा लेकिन एक दिन गर्मी महसूस हुई तो उसने खुद जे.सी.बी. की तर्ज पर कैबिन फिट कर ट्रैक्टर पर ही ए.सी. लगा दिया। मोहन दास ने बताया कि वह ट्रैक्टर पर ए.सी. लगाने की एवज में लगभग डेढ़ लाख रुपए लेता है और कई बड़े जमींदार अपने ट्रैक्टरों पर ए.सी. लगवा भी चुके हैं। दुर्घटना से पहले मोहन दास पैट्रोल पर चलने वाली जीप, 1995 में गोबर बायोगैस पर मोटरसाइकिल और मारुति कार पर एल.पी.जी. गैस लगाने व हादसे के बाद थ्री-व्हीलर के इंजन से अपने ही नाम पर मोहन डियर 550 ट्रैक्टर बनाया। इसके अलावा अनेक बड़ी गाड़ियों के क्लच, गीयर व एक्सीलेटर को स्टेयरिंग के पास हाथ से कंट्रोलर व ट्रैक्टरों पर ए.सी. लगाने सहित दर्जनों हैरान करने वाली मशीनें बना चुका है।  

करता है खुद ड्राइविंग
मोहन दास अपने बूते पर घर व गांव की सीमाओं को तोड़ अब राजधानी चंडीगढ़ व दिल्ली तक खुद गाड़ी ड्राइव करके जाता है। उसने अपनी गाड़ी टाटा सफारी पर भी हाथ के पास कंट्रोलर लगाए हैं जिससे उसे गाड़ी चलने के लिए ड्राइवर की जरूरत नहीं पड़ती। ऐसी तकनीक लगाने में लॉ कर चुकी उसकी पत्नी बीनू व अमरीका में सैटल छोटा भाई व परिवार के अन्य सदस्य उसका पूरा सहयोग करते हैं। जरूरत पड़ने पर उसका छोटा भाई निरंजन दास अमरीका से इलैक्ट्रॉनिक सामान इंडिया भेजता है। मोहन दास ने घर भी सभी गाड़ियों व ट्रैक्टरों पर हाथ के कंट्रोलर लगा रखे हैं जिन्हें वह खुद ड्राइव करता है। 

दुर्घटनाओं के शिकार लोगों के लिएप्रेरणास्रोत बना मोहन दास
दुर्घटनाओं में अपंग होकर चारपाई पर बैठने को मजबूर लोगों के लिए मोहन दास प्रेरणास्रोत बना हुआ है। उसने दुर्घटनाओं के शिकार आधा दर्जन लोगों को जीने की कला सिखाते हुए अपंगता को ही पंगु बनाने की प्रेरणा दी है। मोहन दास ने बिजली के करंट से ही अपने अंग गंवा चुके मलकाना गांव के एक युवक को गाड़ी पर ऐसी टैक्नीक लगाकर दी है कि उसे पैरों से क्लच या एक्सीलेटर दबाने की जरूरत नहीं है। स्टेयरिंग के पास ही कंट्रोलर फिट कर दिए जिससे वह अपने हाथों से कंट्रोल कर एक कालेज बस चलाकर रोजगार कमा रहा है। ऐसे ही दुर्घटना के शिकार रामपुराफूल के नींदर सिंह, गंगानगर के अभिजीत व संगरियां के एक युवक को भी उनकी गाड़ी में ऐसे इलैक्ट्रॉनिक सिस्टम फिट करके दिए हैं कि वह अब चारपाई पर लेट अपनी किस्मत को कोसने की बजाय शहर तक खुद गाड़ी चलाकर जाते हैं और अपना रोजगार चला रहे हैं। मोहन कहते हैं कि अपंगता आने पर कभी भी जिंदगी से हार नहीं माननी चाहिए, ऐसे लोगों के  लिए वह नि:शुल्क सेवाएं और इलैक्ट्रॉनिक सिस्टम बनाकर देता है।