शहर में नहीं रैन बसेरा, कहां जाए बेपनाह

12/3/2016 11:55:02 AM

चरखी दादरी (राजेश): दिसम्बर माह के शुरूआत में ही ठंड ने अपनी झलक दिखला दी है। जैसे-जैसे दिन बीतते जाएंगे, सर्दी भी अपने पूरे शबाब पर होगी। कड़ाके की ठंड से बचने के लिए जहां लोग अपने रोजमर्रा के कार्य छोड़ घरों में आराम करना पसंद करेंगे। वहीं, शहर के विभिन्न इलाकों में रहे रहे सैंकड़ों बेसहारा लोगों को एक बार फिर से कोई आशियाना नहीं मिलने से ठंड में ठिठुरना पड़ेगा क्योंकि शहर में उन्हें पनाह देने के लिए एक भी सरकारी या गैर सरकारी रैन बसेरा नहीं है। प्रशासन की तरफ से अभी तक इस दिशा में कोई पहल नहीं की गई है। इस कारण सर्द रातों में बेघर लोग अलाव तापकर ही रात गुजारने को मजबूर होंगे।

 

रैन बसेरों के अभाव में सर्दी में अधिकांश लोग रेलवे स्टेशन, पार्कों, सार्वजनिक स्थानों, दुकानों की टीन शैड आदि में रात गुजारते हैं। हालांकि कई संस्थाएं इन तरह के लोगों को सर्दी के समय सुविधाएं मुहैया करवाने का प्रयास तो करती हैं लेकिन सरकार व प्रशासन के सहयोग बिना उनके सभी प्रयास नाकाम हो जाते हैं। 

 

ठंड से हो सकती है मौत 
रैन बसेरों के अभाव के कारण अधिक ठंड पडऩे पर व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती हैं क्योंकि दिन की अपेक्षा रात में सर्दी का प्रभाव ज्यादा बढ़ जाता है। लोगों को आशियाना नहीं मिलने से भारी परेशानियां होती हैं। 

 

धर्मशालाएं, सुविधाएं नहीं
सांझ ढलते ही असहाय, गरीब लोगों को रात बिताने की चिंता सताने लगती है। शहर में करीब आधा दर्जन धर्मशालाएं हैं लेकिन उनका रात बिताने का किराया सैकड़ों में होता है जो आम नागरिक की पहुंच से दूर है। सबसे ज्यादा परेशानी रात के समय ट्रेनों का इंतजार करने वाले यात्रियों को उठानी पड़ रही है। ऐसे में अगर लोगों को जरूरत पड़े तो महंगे होटलों में ही शरण लेनी पड़ती है।

 

कोर्ट की भी सुनवाई नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने सर्दी से मरने वाले लोगों की बढ़ती संख्या पर चिंता जाहिर करते हुए वर्ष 2012 में सर्दी शुरू होते ही रैन बसेरों की व्यवस्था करने के निर्देश दिए थे। इन निर्देशों का असर दादरी प्रशासन पर कतई नहीं पड़ा। प्रदेश का सबसे बड़ा दादरी में एक भी रैन बसेरा न होना कोर्ट के आदेशों की सरेआम धज्जियां उड़ा रहा है।