PLPA मामले में हरियाणा सरकार ने हाईकोर्ट में जवाब किया दाखिल, कहा- उल्लंघनकर्ताओ पर किए जा चुके 1404 मामले दर्ज
punjabkesari.in Sunday, Dec 17, 2023 - 11:52 AM (IST)

चंडीगढ़(धरणी): वन विभाग,हरियाणा सरकार ने 27 फरवरी 2019 को विधानसभा में पंजाब भूमि परिसंरक्षण अधिनियम 1900(पीएलपीए) में संशोधन का बिल , राज्य सूची-भारतीय सविंधान की 7वी अनुसूची की वस्तु 18 के अंतर्गत पेश करके विधानसभा में सदन द्वारा पास किया था जिसके बाद 11 जून 2019 को महामहिम राज्यपाल हरियाणा ने भी इस बिल को स्वीकृति देकर पास किया था।इस संशोधन कानून को रद्द करने के लिए शिवालिक विकास मंच के अध्यक्ष विजय बंसल एडवोकेट ने माननीय हाईकोर्ट में चुनोती दी थी जिसपर अगली सुनवाई 15 फरवरी 2024 को होगी।
विजय बंसल ने बताया कि इस बिल को सदन में लेंड देवेलोपमेंट बिल के माध्यम से पेश किया गया था जबकि इसे बाद में फारेस्ट बिल की अमेंडमेंट के लिए भेजदिया जिससे भाजपा ने सदन को भी गुमराह किया था।अब हरियाणा सरकार ने जनहित याचिका पर स्टेट्स रिपोर्ट माननीय हाईकोर्ट के समक्ष दाखिल की है जिसमे बताया कि हरियाणा सरकार ने संशोधन बिल को न तो लागू किया है और न ही इस संशोधन पर कोई कार्यवाही की है।इसके साथ ही उल्लंघनकर्ता पर 1404 मामले दर्ज किए है।इसके साथ ही वर्तमान जनहित याचिका में माननीय हाईकोर्ट के निर्देशानुसार वन क्षेत्रों में किसी भी प्रकार की नॉन फॉरेस्ट कार्य नहीं की जा रही।
आरटीआई में प्राप्त जानकारी के अनुसार अतिरिक्त मुख्य सचिव,वन विभाग व तत्कालीन स्पीकर विधानसभा ने 20 अगस्त 2019 को कहा कि इस संशोधन बिल पर राज्यपाल की सहमति आना विचाराधीन है परन्तु माननीय राज्यपाल ने रिकार्डनुसार 11 जून 2019 को ही इस बिल को सहमति देदी।
राज्यपाल नही,राष्ट्रपति की स्वीकृति से होना था बिल अमेंड
विजय बंसल ने कहा कि पीएलपीए में संशोधन वन व वन्य प्राणियों की सुरक्षा तथा जनहित के विरुद्ध है क्योंकि वस्तु 18 के अंतर्गत वन विभाग,हरियाणा सरकार सदन की पटल पर बिल पेश करने में सक्षम नही है।इंदिरा सरकार के समय 1976 मे सविंधान में 26 वा संशोधन किया गया था जिसमे अनुच्छेद 48 ए के अनुसार पर्यावरण की रक्षा व सुधार - वन तथा वन्य जीवन की सुरक्षा के लिए केंद्र व राज्य सरकार का संयुक्त दायित्व है क्योंकि वन समवर्ती लिस्ट में है।बावजूद इसके राज्यपाल द्वारा इस बिल को स्वीकृति दी गई जबकि माननीय राष्ट्रपति ही कनकरेंट सूची के ऑब्जेक्ट्स को अमेंड कर सकता है।
माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की हुई अवेहलना
इससे पूर्व माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी हरियाणा सरकार को इस बिल में संशोधन करने पर लताड़ लगाते हुए कहा था कि हरियाणा सरकार कानून से ऊपर नही है,हरियाणा सरकार को वन व वन्य जीव का रखरखाव करना चाहिए।ऐसा प्रतीत होता है कि हरियाणा सरकार वन व वन्य जीवों को खत्म करना चाहती है तथा निजी चहेते बिल्डर्स को फायदा पहुंचाना चाहती है।माननीय न्यायालय ने हरियाणा सरकार को हिदायत दी है कि पीएलपीए में संशोधन बिल को पास न किया जाए परन्तु बावजूद इसके सरकार ने झुपते झुपते बिल को मंजूरी दे दी जिसके कारण माननीय हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया और अब 15 फरवरी को अगली सुनवाई होगी।
संशोधन से वन क्षेत्र हो जाएगा खत्म
पूर्व चेयरमैन विजय बंसल ने कहा कि हरियाणा सरकार ने 2006 में वन नीति बनाई थी जिसमे कहा गया था कि हरियाणा में वन क्षेत्र 6 प्रतिशत है,2010 में 10 प्रतिशत किया जाएगा तथा 2020 में 20 प्रतिशत किया जाएगा परन्तु अब तक केवल मात्र 3.5 प्रतिशत ही वन क्षेत्र हरियाणा में है।विजय बंसल के अनुसार यदि न्यायलय की शरण न लेते व सरकार द्वारा पीएलपीए में संशोधन पूरी तरह से लागू होजाता तो हरियाणा में वन क्षेत्र केवल मात्र 2 प्रतिशत रह जाता। पीएलपीए 1900 हरियाणा के शिवालिक क्षेत्र व अरावली पहाड़ियों के 10 जिलों में लागू है व नान फारेस्ट एक्टिविटीस पर प्रतिबंध है।बिल पास होने से वन क्षेत्र में अवैध माइनिंग,पेड़ो का कटाव,भूमिगत जल स्तर गिरना,इमारतों का निर्माण होने से पर्यावरण प्रभावित हो जाता।सरकार द्वारा इस बिल से भू माफिया,बिल्डर्स को फायदा पहुंचाया जाना था।हाल ही में एक रिपोर्ट के अनुसार गुरुग्राम सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर है।
अवैध माइनिंग को भी पीएलपीए के माध्यम से करवाया गया था बन्द
विजय बंसल ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में जनहित याचिका नम्बर 20134/2004 दायर की थी जिसमें 2009 में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा में अवैध माइनिंग पर प्रतिबंध लगा दिया था। विजय बंसल ने 2004 में पीएलपीए के आधार पर अवैध माइनिंग को बन्द करवाया था जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगाई थी।बंसल ने कहा की हरियाणा में 2009 से अवैध माइनिंग बन्द होगी थी परन्तु 2014 में भाजपा सरकार ने इसे खोल दिया जिससे अब हरियाणा में अवैध माइनिंग सरकार एवं खनन माफ़िया के गठजोड़ से ज़ोरों-शोरों से हो रही है।
माननीय सुप्रीम कोर्ट ने क्या निर्णय दिया था.
विजय बंसल ने बताया की सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक निर्णय में कहा था जो भूमि वन विभाग के पंजाब भू-परिसंरक्षण अधिनियम 1900(पीएलपीए) के अधीन जिस भूमि के आरक्षित होने की अधिसूचना जारी हुई है,वन विभाग उस अधिसूचना को रद्द नहीं कर सकता।