दंगाइयों की संपत्ति जब्त करने में हरियाणा की स्थिति रही सबसे खराब, जाने क्या कहते है आंकड़े

12/27/2019 10:16:46 AM

डेस्क(संजीव शुक्ल) : नागरिकता संशोधन विधेयक (सी.ए.ए.) को लेकर देश के विभिन्न प्रांतों में हुई हिंसा ने एक बार फिर इस मुद्दे को सामने ला दिया है कि जो लोग संपत्तियों को नुक्सान पहुंचाते हैं, नुक्सान की वसूली उन्हीं से की जानी चाहिए। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दंगाइयों से रिकवरी की बात कही तो है लेकिन देखना है कि आगे क्या होता है। अभी तक के  रिकार्ड अनुसार राज्य सरकारें इस कानून को सिर्फ  धमकाने भर के लिए ही इस्तेमाल करती हैं। यदि दंगाइयों की संपत्ति जब्त करने के उदाहरण सामने आने लगें तो ये तोडफ़ोड़ और आगजनी की वारदातों पर अंकुश लगाया जा सकता है। इस मामले में यदि रिकॉर्ड देखा जाए तो हरियाणा की स्थिति सबसे खराब रही है।
 


नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एन.सी.आर.बी.) के ताजा आंकड़ों अनुसार वर्ष 2017 में देश में सरकारी संपत्ति को नुक्सान पहुंचाने के 8,000 के लगभग केस हुए जिनमें से 2,562 अकेले हरियाणा के थे, जो देश में सर्वाधिक थे। दूसरे नम्बर पर आने वाला राज्य उत्तर प्रदेश केसों की संख्या (1,933) में हरियाणा के मुकाबले बहुत पीछे था, जबकि 1,790 मामलों के साथ तमिलनाडु तीसरे स्थान पर था। चौथे नम्बर पर केरल था,जहां मात्र 310 केस ही हुए। 



रिपोर्ट बताती है कि हरियाणा में तोडफ़ोड़, आगजनी और सरकारी संपत्ति को नुक्सान पहुंचाने के सबसे ज्यादा मामले जाट  आंदोलन दौरान हुए। डेरा सच्चा सौदा प्रमुख की गिरफ्तारी दौरान पंचकूला में हुई हिंसा में भी भारी संख्या में सरकारी व निजी संपत्ति को नुक्सान पहुंचाया गया। अदालतों में 14,876 मामले विचाराधीन‘प्रिवैंशन ऑफ डैमेज टू पब्लिक प्रापर्टीज एक्ट,1984’ में प्रावधान किया गया था कि यदि कोई व्यक्ति हिंसक आंदोलनों में शामिल पाया जाता है तो 6 महीने से लेकर 10 साल तक जेल और आॢथक दंड की सजा दी जा सकती है। जानकारों का कहना है कि इन केसों में दोष सिद्ध करने में जो सबसे बड़ी समस्या आती वह यह है कि लोगों को पहचान पाना मुश्किल होता है। यही कारण है कि कोर्टों में दोष सिद्धि (कनविक्शन) का प्रतिशत काफी कम 29.8 फीसदी है। एन.सी.आर.बी.अनुसार वर्ष 2017 में देश में विभिन्न अदालतों में सरकारी संपत्ति को नुक्सान पहुंचाने के 14,876 मामले विचारधीन थे।

दंगाइयों और हिंसक आन्दोलनकारियों के खिलाफ राज्य सरकारों द्वारा ‘प्रिवेंशन ऑफ डैमेज टू पब्लिक प्रापर्टीज एक्ट,1984’ इस्तेमाल न किए जाने का खुलासा सुप्रीम कोर्ट के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश के.टी.थॉमस की अध्यक्षता में गठित कमेटी द्वारा किया गया था। समिति 2007 में इस मकसद से गठित की गई थी कि 1984 के कानून के प्रावधानों को सख्त बनाया जाए और हिंसक आंदोलनों के नेताओं व आयोजकों को सरकारी संपत्तियों के नुक्सान के लिए जिम्मेदार बनाए जाने पर विचार किया जाए। समिति ने पाया कि राज्य सरकारें दंगाइयों के खिलाफ न तो 1984 के कानून तहत केस दर्ज करतीं हैं और न ही तोडफ़ोड़ की वसूली ही करती हैं। इसके स्थान पर भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों का इस्तेमाल किया जाता है। 



इसके बाद आंध्र प्रदेश में एक हिंसक आंदोलन हुआ था जिसमें बड़े पैमाने पर निजी व सरकारी संपत्ति को नुक्सान पहुंचाया गया था। इस मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्देश जारी किया था जिसके अनुसार यदि किसी आंदोलन दौरान संपत्तियों को बड़े पैमाने पर नुक्सान पहुंचाया जाता है तो ऐसे मामले में हाईकोर्ट स्वयं संज्ञान लेते हुए सारे मामलों की जांच के लिए मशीनरी का गठन कर सकता है और मुआवजा भी तय कर सकता है जिसे ङ्क्षहसा भड़काने वालों से वसूल किया जाएगा। ऐसे आंदोलनों का आयोजन करने वालों की भी उतनी जिम्मेदारी मानी जाएगी जितनी हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की जाएगी।

Isha