हरियाणा का उच्चतर शिक्षा विभाग उड़ा रहा है हाईकोर्ट के आदेशों की धज्जियां

7/6/2018 9:29:49 PM

चंडीगढ़ (धरणी): प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने उच्च शिक्षा में गुणात्मक सुधार लाने के लिए और कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में सेवारत प्राध्यापकों को और अच्छा शिक्षा संबंधी माहौल उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से यू.जी.सी. के स्थान पर हायर एजुकेशन कमिशन ऑफ इंडिया के गठन का निर्णय लिया है। लेकिन हरियाणा का उच्चतर शिक्षा विभाग उपरोक्त इस उद्देश्य के उलट कार्य कर रहा है। दो जुलाई, 2018 से हरियाणा के कॉलेजों में नये शिक्षा सत्र का प्रारंभ हो चुका है। परन्तु हरियाणा के एक चौथाई से ज्यादा सरकारी कॉलेजों में प्रिंसीपल के पद खाली पड़े हुए हैं और प्रौफेसरों की भी भारी कमी है।

वर्तमान में एक-एक प्रिंसीपल को तीन या चार कॉलेजों का अतिरिञ्चत कार्यभार दिया हुआ है। उदाहरण के तौर पर सिरसा के नेशनल महाविद्यालय के प्रिंसीपल के पास सिरसा जिले के 4 सरकारी कॉलेजों के प्रिंसीपल का चार्ज है। इसी प्रकार, हरियाणा के दूसरे छोर जिला पंचकूला के बरवाला गवर्नमेंट कॉलेज में कार्यरत वरिष्ठ एसोसिएट प्रौफेसर आफ संस्कृत को जिला पंचकूला के बरवाला तथा रायपुररानी के गवर्नमेंट कॉलेजों के अतिरिक्त जिला अंबाला के गवर्नमेंट महिला महाविद्यालय शाहजदपुर का भी 1 जून, 2018 से आफिशिएटिंग प्रिंसीपल बनाया हुआ है। 

उल्लेेखनीय है कि हरियाणा के किसी भी गवर्नमेंट कॉलेज में प्रिंसीपल के पास उच्चतर शिक्षा विभाग, हरियाणा द्वारा कोई सरकारी वाहन नहीं दिया हुआ है, तो ऐसे में एक 56 वर्षीय दोनो घुटनों के दर्द से पीड़ित महिला जिसका कि घुटने बदले जाने का ईलाज हरियाणा सरकार के हड्डियों के एकमात्र सरकारी अस्पताल मदर टैरेसा आर्थोपैडिक अस्पताल साकेत, सैक्टर 1, पंचकूला में चल रहा है, कैसे तीन कॉलेजों में वो भी विभिन्न जिलों में अपने कार्य को सुचारू रूप से अंजाम दे सकती है।



हरियाणा सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग से सेवानिवृत हुए संयुक्त निदेशक एवं वर्तमान में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के एडवोकेट  अरूण जौहर ने हरियाणा के उच्चतर शिक्षा विभाग की कारगुजारी का विस्तृत ब्यौरा पूरे तथ्यों के साथ मीडिया को उपलब्ध करवाते हुए बताया कि उनकी 56 वर्षीय धर्मपत्नी श्रीमती इला जौहर, जिनका राजकीय महाविद्यालय सैक्टर 1, पंचकूला से गत वर्ष उच्चतर शिक्षा विभाग के आदेश दिनांक 12 मई, 2017 के द्वारा राजकीय महिला महाविद्यालय, सैक्टर 14, पंचकूला में ट्रांसफर किया गया था, को एक महीने पश्चात ही उच्चतर शिक्षा विभाग, हरियाणा के आदेश दिनांक 12 जून, 2017 द्वारा राजकीय महाविद्यालय, बरवाला (जिला पंचकूला) में ट्रांसफर कर दिया गया, जबकि उनके दोनो घुटनों को बदले जाने हेतु उनका ईलाज हरियाणा सरकार के एकमात्र हड्डियां के सरकारी अस्पताल मदर टैरेसा आर्थोपैडिक अस्पताल साकेत, सैक्टर 1, पंचकूला में वर्ष 2016 में चल रहा है। इस सन्दर्भ में जब अरूण जौहर हरियाणा के शिक्षा मंत्री से 23 जून, 2017 को मिले तो उन्होंने माननीय मुख्यमंत्री को एक अनुरोध पत्र भेजा जिसमें उन्होंने प्रौफेसर इला जौहर का ट्रांसफर मेडिकल आधार पर वापिस राजकीय महाविद्यालय सैक्टर 1, पंचकूला करने बारे नोट लिखा।

 जिस पर मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव द्वारा 28 जून, 2017 को स्वीकृति प्रदान करते हुए उच्चतर शिक्षा विभाग को भिजवा दिया गया। परन्तु खेद का विषय है कि एक वर्ष बाद भी हरियाणा के उच्चतर शिक्षा विभाग ने न तो अपने विभाग के शिक्षा मंत्री और न ही माननीय ममुख्यमंत्री के आदेशों की अनुपालना की है। 

इला जौहर ने मेडिकल आधार पर अपनी ट्रांसफर रद्द करवाने हेतु सितक्वबर, 2017 माननीय पंजाब एवं उच्च न्यायालय चंडीगढ़ में एक रिट पिटिशन फाइल कर दी, जिस पर माननीय हाईकोर्ट ने अपने आदेश 29 सितंबर, 2017 द्वारा उच्चतर शिक्षा विभाग हरियाणा को आदेश दिए कि इला जौहर द्वारा रिट में लगाए एनेक्सचर पी-6 पर तीन महीने की अवधि के अंदर-अंदर एक स्पीकिंग आर्डर कंपीटेंट आथोरिटी जारी करे। परन्तु आज 6 जुलाई, 2018 तक, नौ महीने की अवधि बीत जाने के बाद भी उच्चतर शिक्षा विभाग, हरियाणा ने पंजाब एवं उच्च न्यायालय चंडीगढ़ के आदेशों की अनुपालना में स्पिकिंग आर्डर जारी नहीं किये।

जौहर ने मीडिया को हाईकोर्ट के दिनांक 29 सितंबर, 2017 के आदेशों की फोटोप्रतियां उपलबध करवाते हुए कहा कि क्या हरियाणा के उच्चतर शिक्षा विभाग के कर्मचारी और अधिकारी माननीय पंजाब एवं उच्च न्यायालय से भी ओहदे में बड़े हैं, अगर नहीं तो वे क्यों हाईकोर्ट के आदेशों को गत 9 महीनों से रद्दी की टोकरी में डाले हुए हैं। जौहर ने कहा कि हरियाणा के उच्चतर शिक्षा विभाग में ट्रांसफर के नाम पर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये का गोरखधंधा होता है, जिसके परिणामस्वरूप उच्चतर शिक्षा विभाग के ट्रांसफर अनुभाग से संबंधित कर्मचारी और अधिकारी न केवल शिक्षा मंत्री और माननीय मुख्यमंत्री, बल्कि माननीय पंजाब एवं उच्च न्यायालय के आदेशों को भी रद्दी की टोकरी में डाले देते हैं, जिसका रिट पटिशन सी.डब्ल्यू.पी. नक्वबर 22362 आफ 2017 पर दिनांक 29 सितंबर, 2017 को पारित आदेशों की गत 9 महीनों से अवहेलना करना, एक जीता-जागता उदाहरण है।

Shivam