हुड्डा और खट्टर दोनों के लिए नुकसानदायक हो सकता है हाईकोर्ट का फैसला
2018-06-02T08:23:40.137
अम्बाला(वत्स): वोट की राजनीति करते हुए पूर्व सी.एम. भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने आनन-फानन में हजारों कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने का जो निर्णय लिया था वह अब उन पर उलटा पड़ता नजर आ रहा है। हाईकोर्ट के हुड्डा सरकार की रैगुलराइजेशन पॉलिसी रद्द करने के बाद आने वाले समय में हुड्डा को तो संबंधित कर्मचारियों की नाराजगी का सामना करना ही पड़ेगा। साथ ही हाईकोर्ट में सही पैरवी नहीं करने के आरोप में सी.एम. खट्टर को भी नाराजगी झेलनी पड़ेगी।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार हुड्डा ने चुनावों से ठीक पहले यह दाव खेला था ताकि उन्हें कर्मचारियों से वोट मिल सकें। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट 2006 में रैगुलराइजेशन नीति के लिए गाइडलाइंस दे चुका था। हाईकोर्ट का तर्क है कि हुड्डा सरकार ने इन गाइड लाइंस की पालना नहीं की थी जिसका खमियाजा अब पक्के किए गए कर्मचारियों को भुगतना पड़ रहा है। सूत्रों के अनुसार इस नीति के तहत रैगुलर किए गए कर्मचारियों में सबसे अधिक कर्मचारी एक जाति विशेष के थे। प्रदेश सरकार अब इन कर्मचारियों का डाटा एकत्रित करवा रही है।
इन कर्मचारियों का भविष्य तो दाव पर लगा ही है, साथ ही आने वाले समय में उनके व उनके परिवार के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो सकता है। फिलहाल हाईकोर्ट का निर्णय मानना सरकार की मजबूरी है। इन कर्मचारियों को फिर से कच्चा करने की प्रक्रिया भी जल्द शुरू होने वाली है। इसके बाद उन्हें 6 माह तक ही नौकरी करने का मौका मिलेगा। अगर कोई नई व्यवस्था नहीं हुई तो इन कर्मचारियों को इसके बाद घर बैठा दिया जाएगा।
हुड्डा सरकार के निर्णय के खिलाफ आए फैसले पर भाजपा को भी ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है। सही मायने में कर्मचारियों के बार-बार आंदोलनों का सामना कर रही खट्टर सरकार के सामने यह एक और आंदोलन खड़ा हो सकता है। हुड्डा और अन्य कांग्रेसी नेताओं ने अब इस मुद्दे को हाथों-हाथ लेते हुए आरोप लगाने शुरू कर दिए हैं कि खट्टर सरकार ने इस मामले में ढंग से पैरवी नहीं की। अगर सरकार सही ढंग से पैरवी करती तो शायद हाईकोर्ट का फैसला कुछ और होता।
विपक्ष ने सरकार पर रैगुलराइजेशन की नीति में बदलाव के लिए तुरंत बिल लाने का दबाव बनाना शुरू कर दिया है। दूसरी ओर सर्व कर्मचारी संघ ने हाईकोर्ट के फैसले के बाद सरकार पर दबाव बनाने के लिए आंदोलन शुरू करने की चेतावनी दे दी है। अगर कर्मचारियों की समस्या का समाधान नहीं हुआ तो सरकार को एक ओर कर्मचारी आंदोलन का सामना करना पड़ सकता है। सरकार पहले ही कई कर्मचारी आंदोलनों का सामना कर चुकी है। फिलहाल यह मुद्दा आने वाले समय में हुड्डा और खट्टर दोनों के लिए घाटे का सौदा साबित हो चुका है।