रेंग-रेंगकर चल रही सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाएं

6/5/2019 4:53:51 PM

घरौंडा (टिक्कू): सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाएं हांफ-हांफ कर चल रही हैं। आलम यह है कि पिछले लगभग 8 माह से अस्पताल में कोई स्थायी डाक्टर ही नहीं है। उपमंडल का एकमात्र सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र डैपुटेटिड डाक्टरों के सहारे चल रहा है। हर रोज तीनों शिफ्ट में कोई नया डाक्टर अस्पताल में हाजिरी भरता है। प्रतिदिन किसी न किसी डाक्टर को अपना स्टेशन छोडक़र घरौंडा के सरकारी अस्पताल में अपनी सेवाएं देनी पड़ती हैं। स्थायी क्टर न होने की वजह से डाक्टरों और मरीजों, दोनों की ही परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अस्पताल में आने वाले मरीज भी शासन व प्रशासन से स्वास्थ्य सुविधाओं को दुरुस्त करने की मांग कर रहे हैं। 

घरौंडा ब्लॉक अब सब-डिवीजन बन चुका है लेकिन उसमें स्वास्थ्य सेवाएं उपमंडल स्तर की नहीं है। सरकारी अस्पताल में मरीजों का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है। महीने-दर-महीने मरीजों की संख्या में बढ़ौतरी हो रही है। अस्पताल से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक, इस वर्ष जनवरी माह की ओ.पी.डी. 9130 रही है। फरवरी माह में ओ.पी.डी. 8871 पर लुढक़ी लेकिन अगले ही माह मार्च में 9457 ओ.पी.डी. हुई और अप्रैल माह में बढक़र 10,251 हुई तो मई माह में ओ.पी.डी. के पिछड़े सारे रिकॉर्ड टूटे और मासिक ओ.पी.डी. 11,280 पर पहुंच गई है। आंकड़ों पर ध्यान दिया जाए तो अस्पताल पर मरीजों का बहुत ज्यादा दबाव है। आंकड़ों के अनुसार हर महीने छह से सात हजार नए मरीज अस्पताल पहुंच रहे है।

बावजूद इसके अस्पताल में डॉक्टरों की नियुक्ति पर न तो शासन का ध्यान है और न ही प्रशासन का। एक डॉक्टर प्रतिदिन 500 से 600 मरीजों की जांच करता है। इसके अलावा इमरजैंसी और डिलीवरी केस भी डैपुटेशन पर पहुंचे डाक्टर को ही देखनी पड़ रही है, जबकि अस्पताल में लगभग डाक्टरों की 7 पोस्ट है।  नियमों के मुताबिक, उपमंडल बनने के बाद सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सी.एच.सी.) सब-डिवीजन अस्पताल (एस.डी.एच.) में अपग्रेड हो जाना चाहिए था। कहने को सी.एच.सी. है लेकिन सुविधाएं पी.एच.सी. जितनी भी नहीं है। 

स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर शहरवासियों में भी स्वास्थ्य विभाग के प्रति रोष है। शहरवासियों का कहना है कि प्रदेश सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर बड़े-बड़े दावे करती है लेकिन सरकारी अस्पतालों की स्थिति दयनीय हो चुकी है। स्वास्थ्य सेवाएं खिसक-खिसक कर चल रही है। जब स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से डाक्टरों की नियुक्ति को लेकर बात की जाती है तो उनका रटा-रटाया जवाब होता है कि हमने उच्चाधिकारियों को इस बारे में लिखा हुआ है। 

Isha