जान से खिलवाड़ कर सकती है जड़ी- बूटी

8/10/2019 11:29:59 AM

फरीदाबाद (महावीर गोयल): सिटी में सैंकड़ों स्थानों पर तंबू गाड़कर दवाएं और जड़ी-बूटी बेची जा रही हैं। इनके द्वारा असाध्य रोगों के इलाज तक के दावे किए जा रहे हैं। मगर यहां दवा और पुडिय़ा के नाम पर क्या दिया जा रहा है, यह कोई नहीं जानता। इनके इस्तेमाल के बाद अन्य बीमारियां होने तक के मामले सामने आ चुके हैं। लेकिन प्रशासन न जांच कर रहा है और न ही कार्रवाई।  आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों के नाम पर असाध्य रोगों के इलाज के बहाने लोगों को छलने का गोरखधंधा शहर में जोर शोर से चल रहा है।

खानदानी नुस्खे के नाम पर दवाखाना चलाने वाले ये वैद्य न तो एक्स-रे करते हैं और न किसी तरह की जांच, नब्ज देखकर ही हर मर्ज़ के जड़ से खात्मे की गारंटी देते हैं। इसमें लोगों को ठगा ही नहीं जा रहा है बल्कि गंभीर बीमारियों के मुंह में भी धकेला जा रहा है। कहीं गली-मौहल्लों में ठेलागाड़ी और लोडिंग वाहन के जरिए आयुर्वेदिक दवा बेची जा रही है तो कहीं तंबू लगाकर हिमालय की जड़ी बूटियों से बीमारी को ठीक करने का दावा किया जा रहा है। हड्डी टूटने से लेकर दमा और यहां तक की जानलेवा कैंसर तक का इलाज 20 से 150 रुपए की खुराक में कर देते हैं।

खुद को खानदानी जानकार बताने वाले इऩ वैद्यों के पास न तो कई डिग्री है और न ही ये किसी विभाग से संबंध रखते हैं, बाजवूद इसके कोई इनपर सवाल नहीं उठाता। जिस तरह एलोपैथी दवाइयों की बिक्री से पहले जांच की व्यवस्था है, वैसे आयुर्वेदिक दवाइयों के मामले में भी समय-समय पर सैंपलिंग की जानी चाहिए। मगर आयुष विभाग द्वारा न के बराबर मामलों में जांच की जाती है। सरकारी अधिकारियों की सुस्ती के कारण न ही किसी कंपनी द्वारा बनाई जा रही दवाइयों की जांच की जाती है और न ही किसी विक्रेता द्वारा बीेची जा रही पुडिय़ा के इनग्रेडिएंट्स को परखा जाता है। अधिकारियों के पास इस सवाल का जवाब तक नहीं है कि पिछली बार कब और कितने सैंपल भेजे गए थे और कितने नमूने फेल हुए।

शिकायत का इंतजार : आयुर्वेद पर लोगों के भरोसे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कई जगहों पर औषधि भंडार खोल दिए गए हैं। नामी कंपनियों के जांचे परखे प्रोडक्ट्स के अलावा बड़ी संख्या में अलग-अलग प्रोडक्ट्स की खेप इन दुकानों पर उतार दी जाती है। फिर इन्हें प्रभावी बताकर अलग-अलग नामों से बेच दिया जाता है। आयुर्वेदिक दवा बेचने के लिए लाइसेंस की जरूरत नहीं होती, लेकिन जांच कर कार्रवाई जरूर हो सकती है। हैरत की बात यह है कि जिम्मेदार कार्रवाई करने की बजाय लोगों द्वारा शिकायत का इंतजार करते हैं। 

Isha