आसान नहीं होगी हुड्डा व शैलजा की राह

9/6/2019 12:12:07 PM

फरीदाबाद (महावीर): लंबे समय से प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर को बदलने की मांग करने वाले भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने बेशक इस मामले में जीत हासिल कर ली हो लेकिन तंवर की जगह शैलजा को अध्यक्ष बनाना व स्वयं की जिम्मेदारी को साबित करना आसान नहीं होगा।  प्रदेश में कांग्रेस का ग्राफ काफी नीचे जा चुकी है।  ऐसे में मात्र 45 दिन में अच्छे परिणाम की उम्मीद करना बेमानी सा नजर आ रहा है। हालांकि राजनीति में सब संभव है और चमत्कार भी देखे गए हैं लेकिन चुनाव से पूर्व हुड्डा व शैलजा की नियुक्ति कांटों भरे ताज से कम नहीं होगी।

  इनके सामने जहां पार्टी संगठन में चल रही गुटबाजी को दूर करना एक चुनौती है वहीं निरुत्साहित हो चुके कार्यकत्र्ताओं में जोश भर कर उन्हें चुनाव के लिए तैयार करना भी आसान नहीं होगा। हालांकि हुड्डा व उनके समर्थकों का सहयोग शैलजा को शक्ति प्रदान करेगा लेकिन इसके बावजूद बहुत कम वक्त में पार्टी को पुन: खड़ा करना व कार्यकत्र्ताओं में विश्वास पैदा करना आसान नहीं है। कहीं न कहीं पार्टी को भी पहले से बेहतर प्रदर्शन करके दिखाना अब दोनों की मजबूरी बन जाएगा।

संगठन की खलेगी कमी
पिछले 5 साल से भी अधिक समय से प्रदेश में कांगरेस के पास संगठन नाम की कोई चीज नहीं है। पार्टी के जहां यूथ व महिला कांग्रेस, एन.एस.यू.आई. व कांग्रेस सेवादल लगभग निष्क्रिय हो चुके हैं वहीं सभी प्रकोष्ठ भी सुषुप्तावस्था में हैं। मुख्य संगठन की बात करें तो न तो पार्टी के पास जिलाध्यक्ष हैं और न ही ब्लॉक अध्यक्ष। ऐसे में नेताओं व कार्यकत्र्ताओं को विधानसभा चुनाव के लिए तैयार करना काफी मुश्किलों भरा है।  

गुटबाजी है बड़ी समस्या
शैलजा की प्रदेश में स्थिति लगभग वैसी ही है,जैसी 5 साल पहले तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर की थी। तंवर फिर भी 5 साल में घूम-घूम कर अपना जनाधार बना चुके थे लेकिन कुमारी शैलजा के पास अपने व्यक्तिगत जनाधार के नाम पर कुछ खास नहीं है। ऐसे में कांग्रेस के अन्य दिग्गज नेता किरण चौधरी,अशोक तंवर,कैप्टन अजय यादव,रणदीप सिंह सुर्जेवाला,कुलदीप बिश्रोई, महेंद्रप्रताप जैसे नेता साथ आ पाएंगे या नहीं इस बात पर भी संशय है। यदि हुड्डा व शैलजा की जोड़ी सभी नेताओं को एक मंच पर लाने में सफल नहीं हो पाई तो व्यक्तिगत स्तर पर इनके लिए बेहतर चुनाव परिणाम देना आसान नहीं होगा। 

Isha