पूर्व CM भूपेंद्र सिंह हुड्डा से गैर-राजनीतिक मुद्दों पर खास बातचीत, सत्याग्रह की धमकी पर छोड़ी सिगरेट

4/17/2018 10:42:29 AM

अम्बाला(ब्यूरो): 2 बार मुख्यमंत्री व 4 बार सांसद रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा एक आम आदमी की तरह बिना लाग-लपेट की जिंदगी को ज्यादा बेहतर मानते हैं। स्वतंत्रता सेनानी परिवार से सम्बद्ध हुड्डा की निजी जिंदगी के कई पहलुओं, रोचक अनुभवों व सामाजिक मुद्दों पर उनकी सोच को पंजाब केसरी ने करीब से जानने की कोशिश की। उन्होंने वह किस्सा भी सुनाया जिसने उन्हें अध्यात्म की सीख दी। वहीदा रहमान व वैजयन्ती माला के फैन रहे हुड्डा ने पिछले 10 सालों से कोई फिल्म नहीं देखी। सच तो यह है कि राजनीति के पचड़ों से उन्हें फुर्सत ही नहीं मिल पाई। पिता की सत्याग्रह करने की एक धमकी ने उनकी सिगरेट छुड़वा दी। यदि वह राजनीति में न आते तो उनका इरादा वकील बनने का था। इन दिनों भले ही वह चक्रव्यूह में घिरे हुए हैं लेकिन हौसला फिर भी पहले जैसा ही है। उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश:

प्र:  आप स्वतंत्रता सेनानी परिवार से हैं, राजनीति के शिखर पर पहुंचने में इस विरासत की कितनी भूमिका रही?
उ: मुझे इस पर गर्व है कि मेरे पूर्वजों ने देश की आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। मेरे पिता रणवीर सिंह हुड्डा इस दौरान अम्बाला सैंट्रल जेल के अलावा भारत व पाकिस्तान की 8 जेलों में रहे। उनके आशीर्वाद की छांव मेरे लिए हमेशा सुखद अहसास रही। आज मैं राजनीति के जिस मुकाम पर पहुंचा हूं उसका श्रेय उनको ही जाता है।

प्र: यदि आप जीवन में राजनेता न बन पाते तो क्या बनते?
उ: वैसे तो आदमी की हाथ की लकीरें भगवान बनाता है लेकिन पुरुषार्थ की भी बड़ी भूमिका होती है। घर में शुरू से ही राजनीतिक माहौल था। पिता जी संयुक्त पंजाब व हरियाणा सरकार में मंत्री रहे जिसके चलते कांग्रेसी नेताओं का घर पर आना-जाना रहता था। बहुत देर तक दरवाजे पर खड़े होकर राजनीति देखी। फिर धीरे-धीरे अंदर जगह बन गई। मैंने लॉ की हुई है। यदि राजनीति में न आ पाता तो चंडीगढ़ में वकालत करता और जरूरतमंद पीड़ितों की कानूनी मदद करता।

प्र: हरिद्वार हादसे के बाद आपकी जिंदगी में क्या बदलाव आया?
उ: मैंने इस हादसे में जिंदगी और मौत को बिल्कुल करीब से देखा। मैं और मेरे कई साथी गंगा के तेज बहाव में बह गए थे। पानी की तेज धारा से संघर्ष करते हुए कई बार मुझे लगा कि मौत जीत जाएगी। मैंने अपने आपको गंगा मैया को समॢपत कर दिया था। तभी मुझे एक बहते हुए पेड़ का सहारा मिला और मैं जैसे-तैसे किनारे पर पहुंचा। मैंने उसी समय संकल्प लिया था कि ईश्वर ने मुझे जो नया जीवन दिया है उसे लोगों की सेवा में लगा दूंगा। मेरा एक साथी इस हादसे में बह गया था जिसका आज तक कुछ पता नहीं चला। आज भी जब में हरिद्वार जाता हूं तो मेरी आंखें उसे तलाशती हैं।

प्र: आप लम्बे अर्से तक चेन स्मोकर रहे, अचानक यह लत कैसे छोड़ दी?
उ: मैं कई सालों तक काफी सिगरेट पीता रहा। आशा और दीपेंद्र को इसका पता था। कई बार छोडऩे की कोशिश की लेकिन कहते हैं ‘छूटती नहीं है मुंह से यह काफिर लगी हुई’। 2005 में मैं पहली बार मुख्यमंत्री बना तो एक दिन जब मैं सरकारी गाड़ी में घर से निकल रहा था तो पिता जी ने मेरी गाड़ी रुकवा ली और कहा भूपेंद्र! मुझे पता चला है कि तुम सिगरेट बहुत पीते हो। अब तुम मुख्यमंत्री बन गए हो, युवा पीढ़ी तुमसे क्या सीख लेगी। उन्होंने कहा कि यदि तुमने सिगरेट न छोड़ी तो मैं घर में ही सत्याग्रह पर बैठ जाऊंगा। उस दिन के बाद आज तक मैंने सिगरेट को हाथ नहीं लगाया।

प्र: आप 2 बार मुख्यमंत्री बन लिए, अब आपकी क्या इच्छा बची है। आपकी आयु 70 के करीब हैं। क्या आपको राजनीति से तौबा कर लेनी चाहिए?
उ: मैं जनप्रतिनिधि के पद को समाज की सेवा का साधन मानता हूं। मेरा मानना है कि जब तक आपकी सेहत आपका पूरी तरह साथ दे तब तक समाज सेवा में जुटे रहना चाहिए। आदमी की ‘विल पावर’ मजबूत हो तो हो उम्र कभी रास्ते की बाधा नहीं बनती। मैं करीब 70 वर्ष का हूं लेकिन अब भी करीब 18 घंटे काम करता हूं।

प्र: कालेज जीवन की कोई ऐसी घटना जिसे आप आज भी नहीं भूल पाते?
उ: हमारे कालेज के दीक्षांत समारोह में केंद्र सरकार में मंत्री बाबू जगजीवन राम आए थे। उनकी उम्र काफी थी। भाषण देने के लिए जब वह माइक की तरफ बढ़े तो कुछ लडख़ड़ा गए। यह देख कुछ छात्र हंसने लगे। जगजीवन राम इससे तनिक भी विचलित नहीं हुए। उन्होंने दीक्षांत भाषण को शुरू करते हुए कहा हंसना अच्छी बात है। बचपन और यौवन की मुस्कान सबको अच्छी लगती है। मुझे भी आपकी हंसी अच्छी लगी लेकिन एक बात याद रखना, हर बुजर्ग कभी आपकी तरह जवान रहा होगा। आप भी कभी उम्र के इस पड़ाव पर पहुंचोगे, तब आपको इस हंसी का सही अहसास होगा। बाबू जी के इन शब्दों से छात्र तो शर्मिंदा हुए ही, साथ ही मुझे भी बड़ों का सम्मान करने की प्रेरणा दी।

प्र: महिला सशक्तिकरण के आप किस हद तक पक्षधर हैं?
उ: देश को मजबूत करने के लिए महिलाओं को मजबूत करना जरूरी है। विधानसभा, संसद व राजनीतिक दलों के संगठन में उन्हें 33 फीसदी आरक्षण दिया जाना चाहिए। अब महिलाएं बहुत जागरूक हैं। उनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती।

प्र: आप राजनीति में दिन-रात जुटे रहते हैं, क्या आशा हुड्डा इससे खफा नहीं होतीं?
उ: राजनीति का घर वालों पर तो असर पड़ता है। एक विधायक या मुख्यमंत्री बनने का बाद घर का दायरा बढ़ जाता है। मेरे लिए तो पूरा प्रदेश ही मेरा परिवार है। कभी-कभार घर के लिए भी समय निकाल लेता हूं।

प्र: खाने में आपको क्या पसंद है, कालेज जीवन में फिल्मों का आपको कितना शौक था?
उ: मैं पूरी तरह शाकाहारी हूं। दाल-रोटी, पकौड़े, समोसे व छोले-भटूरों के अलावा मुझे अम्बाला के गोलगप्पे बहुत पसंद हैं। कालेज जीवन में फिल्में देखने का बहुत शौक था। दिलीप कुमार, राज कपूर और प्राण मुझे अच्छे लगते थे जबकि वहीदा रहमान व वैजयंती माला मेरी पसंदीदा अभिनेत्री रहीं। देशभक्ति की फिल्में मुझे सबसे ज्यादा पसंद थीं। आज फिल्मों में वो पहले वाली बात नहीं रही। वैसे भी आज-कल मोबाइल फोन से फुर्सत नहीं मिल पाती।

प्र: जीवन में आपने किसे अपना आदर्श माना?
उ: आर्य समाजी व गांधीवादी विचारधारा से जुड़े होने के नाते महात्मा गांधी, ऋषि दयानंद व विवेकानंद को मैंने अपना आदर्श माना। राजनीति में नेहरू जी, इंदिरा जी, राजीव जी, सोनिया जी व राहुल जी मेरे आदर्श रहे हैं।

प्र: जीवन में पैसे का कितना महत्व है, यह राजनीति में कितना जरूरी है?
उ: पैसे का जीवन में उतना ही महत्व है जितना सफर में वाहन का। आज-कल राजनीति में पैसे का दखल बढऩे लगा है जो ङ्क्षचता का विषय है। सभी राजनीतिक दलों व चुनाव आयोग को इस पर गंभीरता से मंथन करना चाहिए, अन्यथा राजनीति अमीरों या फिर फकीरों तक सीमित होकर रह जाएगी।

प्र:  देश में प्रिंट मीडिया का भविष्य क्या है?
उ: प्रिंट  मीडिया का भविष्य उज्ज्वल है। विजय चोपड़ा जैसे निर्भीक व निष्पक्ष सम्पादकों ने इसकी साख को बढ़ाया है। पंजाब केसरी ने साफ-सुथरी और निडर पत्रकारिता को बढ़ावा दिया जिसकी वजह से आज यह अखबार न केवल राजनीतिक व सामजिक क्षेत्र बल्कि आम आदमी का सबसे लोकप्रिय अखबार माना जाने लगा है

प्र: छुट्टी वाले दिन का लुत्फ आप कैसे उठाते हैं?
उ: सार्वजनिक जीवन में कभी छुट्टी नहीं होती। शनिवार व रविवार को घर के लोग फुर्सत में होते हैं लेकिन उन दिनों मेरे पास काम ज्यादा होता है। कई बार मन करता है कि हिमाचल की वादियों में कहीं गैर-राजनीतिक बनकर घरवालों के साथ कुछ समय गुजारा जाए। राजनीति बहुत थका देने वाला और धैर्य रखने वाला पेशा है। इसमें आनंद भी है और तनाव भी। नेताओं को कई बार इससे जुड़े रहना बेहतर लगता है तो कई बार उन्हें इसे छोडऩे को मन करता है।

Deepak Paul