प्रदेश में क्या इस बार ‘हाथ’ को मिलेगा जनता का ‘साथ’?

7/16/2019 9:25:32 AM

संजय अरोड़ा : हरियाणा के 53 वर्षों के सियासी इतिहास में इस बार चौथा ऐसा अवसर है जब विधानसभा चुनावों के दृष्टिगत कांग्रेस की हालत काफी दयनीय नजर आ रही है। संसदीय चुनाव में प्रदेश की सभी 10 सीटों पर इस बार मिली हार के बाद कांग्रेस में और तेज होती जा रही गुटबाजी के चलते ऐसा नजर नहीं आता कि इस वर्ष होने वाले हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में कुछ बेहतर करने की स्थिति में आ पाएगी। इस बार संसदीय चुनाव में कांग्रेस जहां सभी 10 संसदीय सीटें तो हारी ही, वहीं कुल 90 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस महज 10 सीटों पर ही दर्ज कर पाई। 

इससे पहले कांग्रेस की ऐसी ही दयनीय स्थिति 1977, 1987 व 1996 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिली थी। 1977 के विधानसभा चुनाव में कांग्र्रेस केवल 3 विधानसभा सीटें ही जीत पाई थी जबकि 1987 में पार्टी 5 सीटों पर सिमट गई थी। 1977 में छछरौली से कन्हैया लाल, नरवाना से शमशेर सिंह सुर्जेवाला व उचाना कलां से बीरेंद्र सिंह जबकि 1987 में छछरौली मोहम्मद असलम खान, पानीपत से बलबीर पाल शाह, मेवला महराजपुर से महेंद्र प्रताप सिंह, तावडू से तैयब हुसैन व आदमपुर से जसमा देवी कांग्रेस टिकट पर विधायक निर्वाचित हुए थे।

इसी तरह से 1996 में कांग्रेस 9 विधानसभा सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी थी। इसी प्रकार अब कांग्रेस पार्टी के लिए हरियाणा यह चौथा मौका होगा जब पार्टी का विधानसभा सीटों के लिहाज से ग्राफ लगातार नीचे जाता नजर आ रहा है। संसदीय चुनाव परिणाम के बाद भी पार्टी के एकजुट व संगठित होने की बजाय आपसी खींचतान एवं गुटबाजी के और तेज होने से लगता है कि भावी विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस की दशा सुधरने के आसार कम ही हैं।

सबसे लम्बे समय तक कांग्रेस ने किया प्रदेश में शासन
गौरतलब है कि कांग्रेस ने ही हरियाणा के 53 वर्ष के सियासी इतिहास में सबसे अधिक समय तक शासन किया। 1967 से 1968 तक कांगे्रस की सरकार रही। इसके बाद 1968 से 1972 एवं 1972 से लेकर 1977 तक कांग्रेस सत्ता में रही। इसी तरह से 1979 से लेकर 1987, 1991 से लेकर 1996 एवं 2005 से लेकर 2014 तक कांग्रेस का शासन हरियाणा में रहा पर अब कांग्रेस का ग्राफ लगातार नीचे गिर रहा है। साल 2005 में कांग्रेस ने 90 में से 67 सीटों पर जीत दर्ज कर सरकार बनाई। 2009 में कांग्रेस की सीटों की संख्या कम होकर 40 रह गई और उस समय भूपेंद्र सिंह हुड्डा को फिर से अपनी सरकार बनाने के लिए 7 निर्दलीय विधायकों का सहारा लेना पड़ा जबकि 2014 में कांग्रेस को महज 15 ही सीटें हासिल हुईं।

अब लोकसभा चुनावी परिणाम में कांग्रेस को मात्र 10 विधानसभा सीटों पर ही जीत मिली है। 3 माह बाद विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद आत्ममंथन करने की बजाय कांगे्रस की गुटबाजी चरम पर पहुंच गई। सामानांतर बैठकों का दौर चल रहा है तो कांग्रेस के बड़े नेता एक-दूसरे के खिलाफ खुलकर बयानबाजी कर रहे हैं। ऐसे में लगता नहीं है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हालत सुधरेगी। खास बात यह है कि कांग्रेस की इस गुटबाजी पर लगाम कसने में आलाकमान भी कोई ठोस कदम नहीं उठा पाया है।

5 बार विपक्ष में रही कांग्रेस
कांग्रेस अब तक 5 बार विपक्ष में रही है। 1977, 1987, 1996, 2000 और 2014 के चुनाव में कांग्रेस को विपक्ष में बैठना पड़ा। 1977 में कांग्रेस को 3, 1987 में 5, 1996 में 9, 2000 में 21 एवं 2014 में 15 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। 2005 से लेकर 2014 तक लगातार दो बार प्रदेश में सत्ता में आई कांग्रेस को 2014 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश के लोगों ने इस कदर नकार दिया कि उसे सत्ता से बाहर करने के साथ-साथ प्रदेश में तीसरे नम्बर की पार्टी भी बना दिया। 2014 के चुनाव में भाजपा को 47 सीटें मिलीं, जबकि इनैलो-शिअद गठबंधन 20 सीटों के साथ दूसरे नम्बर पर रहा और कांग्रेस 15 सीटें हासिल करके तीसरे स्थान पर जा पहुंची। 
        

Edited By

Naveen Dalal