हरियाणा के इस जिला की सिंचाई ने बदल दी तस्वीर, पढ़ें रोचक तथ्य

2/5/2020 1:20:38 PM

सिरसा(सेतिया): सिरसा आज देश का प्रमुख गेहूं उत्पादक जिला है। गेहूं उत्पादन में यह देश में दूसरा स्थान रखता है तो प्रति बरस 9 लाख नरमे की गांठों के उत्पादन के साथ नरमा उत्पादन में सिरसा हरियाणा में टॉप पर है। सीट्रस जोन में शुमार सिरसा किन्नू के उत्पादन में भी हरियाणा में पहले स्थान पर है। यह सब हरित क्रांति के दौर में संभव हुआ। हरित क्रांति में सिंचाई के साधन आने, यहां से गुजरने वाली घग्घर नदी के पानी, मशीनीकरण के बाद सिरसा ने खेती में नए आयाम रचे हैं।

पर एक रोचक तथ्य यह है कि हरित क्रांति से पहले और खासकर आजादी से पहले सिरसा में महज 8 हैक्टेयर में कॉटन की जबकि 10 हजार हैक्टेयर में गेहूं की काश्त होती थी। उस समय न तो सिंचाई के साधन थे और न ही अन्य संसाधन। आजादी के बाद इस क्षेत्र में नहरें निकलीं, हरित क्रांति के दौर में साधन-संसाधन आए तो यहां के मेहनतकश किसानों ने खेती की तस्वीर बदल दी। हरियाणा राजस्व विभाग के गजट में इस तरह के अनेक रोचक तथ्य एवं किस्से हैं। खेती में एक सदी पहले कैसा दौर था और अब क्या तस्वीर है इसी पर आधारित आज की यह रिपोर्ट: 

एक शताब्दी पहले सिरसा जिला कृषि के लिहाज से 3 क्षेत्रों में वर्गीकृत था: बांगर, नाली व रोही। 27 कज्जे कुओं के जरिए महज 44 गांवों की 882 एकड़ जमीन ही सिंचित थी। साल 1888-89 में सरहिंद कैनाल के आने से डबवाली के 15 गांव सिंचित हुए थे तो 1894-95 में वैस्टर्न यमुना नहर के आने से 31 गांवों की भूमि सिंचित हुई। 19वीं शताब्दी के अंत में ओटू वियर पर 2 नहरों के बनने से जिला में करीब 5.91 फीसदी भूमि सिंचित होने लगी। खास बात यह है कि जहां सिंचाई के साधन नहीं थे, वहीं उस समय न तो मशीनें थीं और न ही खाद, बीज व कीटनाशक थे।

हरियाणा राजस्व विभाग के गजट के अनुसार साल 1961 तक भी सिरसा में बैलगाडिय़ों, ऊंट गाडिय़ों, केन क्रश के जरिए खेती होती थी। 1961 में महज 405 ट्रैक्टर थे जबकि 5188 बैलगाडिय़ां थीं। 142 केन क्रश थे। न कम्बाइन थी, न ही थे्रशर थे। उस समय अधिकांश खेती बारिश पर टिकी थी। यही वजह थी कि बरसात पर आधारित चने, जौं, ज्वार व बाजरे की अधिक खेती होती थी। 1930-31 में तो चने का रकबा 1 लाख 35 हजार हैक्टेयर तक था जो अब कम होकर 8 हजार हैक्टेयर रह गया है।

एक सदी पहले महज 8 हैक्टेयर में कॉटन की खेती होती, आज रकबा 2 लाख हैक्टेयर तक पहुंच गया है और 33 फीसदी कॉटन उत्पादन के साथ आज सिरसा हरियाणा में टॉप पर है। यह सब हुआ हरित क्रांति के दौर में। 70 के दशक में इस क्षेत्र में भाखड़ा आई तो खेती संवरने लगी। गांव-गांव में नहरें बन गईं। आज सिरसा में 107 से अधिक नहरें-माइनर हैं। ट्रैक्टराेंकी संख्या 24 हजार हो गई है। 1 हजार से अधिक कम्बाइन हैं। खेती में अब उन्नत बीज का इस्तेमाल होने लगा है। कीटनाशक, खाद है। मैनुअल की बजाय अब बिजाई से लेकर फसल पकाई तक मशीनों से होने लगी है। हरित क्रांति के दौर में बदलाव आने के बाद चने, ज्वार, बाजरे, जौं, तिलहन की जगह गेहूं, धान व कॉटन की फसलों ने ले ली है। 

फसल     1900-01        1930-31
धान           2335        2641
गेहूं          10,175        20,437
ज्वार         9,143        12,221
बाजरा      62,147        77,381
जौं          45,043        29,977
चना        51,749        1,35,511
तिलहन    44,289        4878
कॉटन              8        748

वर्तमान में सिरसा में फसली ब्यौरा
रबी सीजन
फसल    एरिया
गेहूं          3 लाख हैक्टेयर
सरसों      52 हजार हैक्टेयर
चना        8 हजार हैक्टेयर
जौं          7 हजार हैक्टैयर
खरीफ सीजन
कॉटन        2 लाख हैक्टेयर
धान          80 हजार हैक्टेयर
गवार        40 हजार हैक्टेयर

Edited By

vinod kumar