करनाल लाठीचार्ज मामले की जांच को लेकर जस्टिस एसएन अग्रवाल पहुंचे करनाल

10/12/2021 12:27:26 PM

चंडीगढ़(चंद्रशेखर धरणी): प्रदेश सरकार के गले की फांस बन चुके करनाल लाठीचार्ज मामले में सरकार द्वारा एक सदस्य जांच कमेटी का गठन किया गया था। जांच की जिम्मेदारी पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के बेहद ईमानदार, सेवानिवृत्त जस्टिस एसएन अग्रवाल को सौंपी गई थी। जिसे लेकर सरकार ने इस घटनाक्रम मामले में नोटिफिकेशन भी जारी कर दी है। इस मामले को लेकर जस्टिस एसएन अग्रवाल प्रदेश के होम सेक्रेट्री से सोमवार को मुलाकात कर  करनाल के लिए रवाना हो गए। नोटिफिकेशन के बाद पंजाब केसरी में उनसे विशेष मुलाकात की। जिसमें उन्होंने बताया कि मैंने अपनी जॉइनिंग रिपोर्ट सरकार को दे दी है। मैं करनाल के लिए रवाना हो रहा हूं। इस मामले की करनाल से संबंधित जांच सरकार द्वारा निश्चित समय एक माह में ही करने की मेरी कोशिश रहेगी। लेकिन जिस प्रकार से सरकार ने यह भी लिखा है कि इस माहौल को तैयार करने के षड्यंत्र की भी जांच की जाए तो ऐसे में जांच का समय 5-6 महीने रहेगा।

अग्रवाल ने बताया कि इस जांच के लिए सरकार द्वारा गाड़ी और पीएसओ का प्रबंध कर दिया गया है। बाकी भी पर्याप्त स्टाफ जल्द अवेलेबल हो जाएगा। अग्रवाल ने बताया कि इस मामले की जांच को लेकर करनाल में ही कार्यालय बनाया जाएगा। जिसे लेकर उपायुक्त को साथ लेकर जगह चिन्हित करूंगा। उसके बाद पब्लिक नोटिस इशू कर देंगे और जांच शुरू कर देंगे।

बता दें, कि अग्रवाल लंबे समय तक पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में सेवाएं दे चुके हैं। वह अपने जीवन काल में लगभग 5 साल तक पंजाब स्टेट कंज्यूमर रिडे्रसल कमीशन के चेयरमैन रहे। उन्होंने केंद्र व पंजाब सरकार से बजट हासिल कर सेक्टर-37 में कमीशन का निजी भवन बनवाया। वह 3 साल तक हरियाणा पिछड़ा वर्ग आयोग के चेयरमैन रहे। इस दौरान उन्होंने नेहरू हिमालयन ब्लंडर्स शीर्षक से अनुच्छेद 370 को लेकर पुस्तक लिखी। जस्टिस अग्रवाल ने पंजाब के लौंगोवाल स्थित शैक्षणिक संस्थान के निदेशक पर विद्यार्थियों द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच कर 5-6 महीने में जांच रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी। जस्टिस अग्रवाल हरियाणा में संपत्ति कर वसूली का फार्मूला तय कर सरकार को सौंपने वाले शख्स हैं। जस्टिस अग्रवाल 2016 में  बैकवर्ड कमिशन हरियाणा के चेयरमैन पद पर भी कार्य कर चुके हैं। जस्टिस एसएन अग्रवाल का जीवनकाल का रिकॉर्ड बेहद स्वर्णिम रहा है। 

जस्टिस अग्रवाल ने इस मामले की जांच को एक बड़ी चैलेंजिंग जॉब बताते हुए कहा है कि परमात्मा को हाजिर नाजिर रखकर फैसला करूंगा। मैंने हाई कोर्ट की जजमेंट के दौरान भी बहुत से ऐसे फैसले किए हैं जिसमें ज्यूडिशरी सीधी इंवॉल्व होती थी। इस मामले में भी दूध का दूध और पानी का पानी किया जाएगा। चाहे किसी भी पद पर बैठा बड़े से बड़ा अधिकारी हो या एक आम आदमी बिना किसी के दबाव में जो सच होगा वह सामने लाया जाएगा। जुडिशयरी में आने के बाद हम अपने आपको किसी के दबाव में नहीं समझते या यह नहीं मानते कि हम किसी के नीचे हैं या उसके हक में काम करना है या हक में नहीं करना है। हालांकि इट इज वेरी बिग जॉब। लेकिन परमात्मा के सामने हम अरदास ही कर सकते हैं कि हमें शक्ति दे कि हम बिल्कुल सही नतीजे तक पहुंचे और बिना प्रभाव-दबाव के जांच कर पाए। जस्टिस एस एन अग्रवाल  मई 1990 में लॉ सेक्रेटरी के रूप में मैंने अंडमान निकोबार में ज्वाइन किया था। पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा हालांकि सेल्यूलर जेल को बेशक नेशनल मेमोरियल घोषित कर दिया गया था। उसके बावजूद वहां वर्मा के पकड़े गए मछुआरे या यहां के कुछ अपराधी रखे जा रहे थे। लेकिन अक्टूबर 1990 के दौरान मैंने वहां एक कार्यक्रम में जीवित देशभक्तों या स्वर्ग सिधार चुके लोगों के पारिवारिक सदस्यों को बुलाया। जहां उन्होंने मुझ से अपील की कि जिस जेल में हिंदुस्तान के आजादी के लिए लड़ाई लड़ी गई। वहां आज शराबी नशेड़ीयों रखा जा रहा है। जो कि मुझे यह बात बहुत महसूस हुई। मैं अगले दिन कार्यालय में आया और नई जेल बनाने के लिए जगह बारे जानकारी ली। मैने लेफ्टिनेंट जनरल दयाल से टाइम लिया और मिलकर उन्हें सारी बात बताई। जनरल दयाल ने मुझे पूरी सपोर्ट दी और दो-तीन दिन बाद ही चीफ सेक्रेटरी उच्च अधिकारियों और इंजीनियरों को बुलाकर एक बैठक ली गई। जिसमें मुझे जेल बनाने के लिए फंड फाइनल कर दिया गया। मैंने इस जेल को वहां रहते हुए 2 साल में पूरा करवाकर मिस्टर दयाल से उसका उद्घाटन करवाया और सभी कैदी वहां शिफ्ट  किए।

जस्टिस एस एन अग्रवाल ने बताया कि  मैंने वहां रहकर यह महसूस किया कि देश भक्तों ने देश की आजादी के लिए इतनी यातनाएं सही, उन्होंने पशुओं जैसा व्यवहार सहा, अत्याचार हुए, लेकिन उनके बारे में कोई रिकॉर्ड नहीं पाया गया। मैंने इस बारे में काफी खोज की कि कौन किस बात के कारण पकड़ा गया ? किस तारीख को पकड़ा गया ?किसने कितनी यात्राएं सही ? जेल में किसने कितने बहादुरी के काम किए और वापस कब आए ? इसमें तीन स्टेज थी। पहली 1909 से 1914, दूसरी 1915 से 1921 और तीसरी 1932 से 1938 तक जिसमें शहीद भगत सिंह और 1911 में वीर सावरकर भी वहां कैद होकर गए थे। सबसे लंबे समय तक वीर सावरकर इस जेल में रहे और 1921 में वह बाहर आए। मैंने यह किताब अपने देश के बच्चों के लिए लिखी। हमारे देश के असली भक्तों की जानकारी सभी को होनी चाहिए। मैंने दी हीरो सेल्यूलर जेल लिखी। पहले पंजाबी यूनिवर्सिटी ने पब्लिश की। फिर सुधार करके रूपा के पास ले गया। उन्होंने भी इसे सुधार करके पब्लिश किया। 2006 में सेल्यूलर जेल बने पूरे 100 साल हो गए थे। लेफ्टिनेंट जनरल के सामने मैंने इस किताब को मार्च 2006 में रिलीज करवाया। उसमें कुछ गलतियां रह गई थी। फिर उन्हें ठीक करके 2007 को मैंने यह किताब लिखी।

Content Writer

Isha