सलाम: मां ने बीमारी से 17 साल लड़ी जंग, बेटी बनी डॉक्‍टर, कोराेना योद्धा बन दिखा रही जज्बा

4/14/2020 9:12:56 PM

करनाल: यह कहानी करनाल की एक मां-बेटी की है और बेहद अनूठी व राह दिखाने वाली है। मां एक-दो नहीं 17 सालों तक असाध्‍य बीमारी से लड़ती रहीं। चलने-फिरने में भी असमर्थ, शरीर हिलता तक नहीं था। मां की पीड़ा को बेटी ने छोटी उम्र से देखा और खुद भी आहत होती रही।

मां तो इस दुनिया में नहीं रहीं, लेकिन बेटी ने बड़ा संकल्‍प लिया और दूसरों काे पीड़ा से मुक्ति दिलाने के लिए डॉक्‍टर बन गईं। आज वह कोरोना योद्धा बन कर मरीजों को महामारी के चंगुल से निकालने में जुटी हैं।

हम बात कर रहे हैं करनाल की बेटी डॉक्‍टर आकांक्षा की। मां की पीड़ा बयां करती हुई वह कहती हैं, 'मां को 17 साल तक रोग शैया पर जिंदगी और मौत से जूझते देखकर हम भाई-बहन कसमसाते रह जाते। उनकी बीमारी इतनी असाध्य थी कि न शरीर हिलता और न कुछ खा सकती थीं।

सब कृत्रिम तरीके से करना पड़ता। लेकिन, जीने की इच्छाशक्ति इतनी प्रबल कि केंद्र सरकार ने भी बाकायदा प्रोत्साहन पत्र भेजकर उनका हौसला बढ़ाया था। आज मां दुनिया में नहीं हैं लेकिन मुझे संतोष है कि कोरोना से लड़ रहे मरीजों को बचाने में कुछ योगदान दे पा रही हूं।

कोराेना मरीजों की हालत बताते हुए वह कहती हैं, ' ये इतने टूटे हुए हैं कि, मुझे किसी की बहन तो किसी की दोस्त बनकर उन्हें भावनात्मक सहारा देना पड़ता है। आइसीयू में तमाम खतरे हैं लेकिन कुछ घंटे की ड्यूटी के बाद इन मरीजों के चेहरों पर मुस्कान देखती हूं तो हर तकलीफ भूल जाती हूं। कोरोना वायरस का आतंक चरम पर है।'

करनाल की बेटी डा. आकांक्षा भाटिया ग्रेटर नोएडा के स्कूल ऑफ मेडिकल साइंस एंड रिसर्च स्थित स्पेशल कोरोना आइसीयू में इस महामारी के खिलाफ योद्धा की तरह डटी हुई हैं। वह यहां पहुंचीं तो यहां भर्ती मरीजों के मन में समाई दहशत देखकर एक बार खुद भी सिहर गईं।

फिर अगले ही पल खुद को संभाला और जी-जान से इन रोगियों की सेवा में जुट गईं। एमडी डा. आकांक्षा ने फोन पर बातचीत में बताया कि पिता वनीत भाटिया उद्योग विभाग में उपनिदेशक हैं और छोटा भाई सार्थक एमबीबीएस फाइनल इयर में है।

जब आकांक्षा बहुत छोटी थीं, तब इनकी मां को मल्टीपल सेलेरोसिस बीमारी के कारण बिस्तर पर देखा। डा. आकांक्षा ने बताया कि चंद रोज पहले उन्हें ग्रेटर नोएडा स्थित कोरोना आइसीयू बुला लिया गया है।

सात दिन से आइसीयू में हैं और रोजाना आठ घंटे की नॉनस्टॉप ड्यूटी है। चारों तरफ कोरोना पॉजिटिव मरीज हैं, जिन्हें दवा व इंजेक्शन देने क्लोज कॉन्टेक्ट में आना पड़ता है। ऐसे में पीपीई यानी विशेष वस्त्र से बचाव करते हैं। क्वारंटाइन पीरियड में भी जाना पड़ता है।

बकौल डा. आकांक्षा, उनका परिवार ही उनका हौसला है। मां 17 साल रोग शैया पर थीं लेकिन जिंदगी के आखिरी पल तक उनमें झलकती रही जीने की ललक आज भी नई ताकत देती है। पिता हमेशा मानवता की सेवा को सबसे बड़ा धर्म बताते रहे तो छोटा भाई भी जल्द डाक्टर बनकर चिकित्सीय सेवा में सर्वस्व न्योछावर करना चाहता है।

Edited By

vinod kumar