धारा 188: लॉकडाऊन में अहम भूमिका निभा रहीं ये धारा, पुलिस सीधा जेल में डाल सकती है
3/24/2020 3:13:44 PM
चंडीगढ़( धरणी): कोरोना वायरस (COVID-19) संक्रमण के चलते बीते रविवार 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के दिन हरियाणा सरकार ने प्रदेश के सात ज़िलों पंचकूला, गुरुग्राम, पानीपत, सोनीपत, फरीदाबाद, रोहतक और झज्जर में 22 मार्च रात्रि 9 बजे से आगामी 31 मार्च तक लॉकडाऊन करने का निर्णय लिया जिसका बीते कल 23 मार्च को राज्य सरकार ने प्रदेश के शेष बचे 15 ज़िलों में भी विस्तार कर दिया है। इस प्रकार अब पूरे प्रदेश में आगामी 31 मार्च तक लॉकडाउन है, हालांकि पडोसी राज्य पंजाब में वहां की राज्य सरकार ने और यू.टी. चंडीगढ़ में वहां के प्रशासन ने बीते कल से कर्फ्यू ही लगा दिया है।
क्या है धारा 188
बहरहाल, सम्पूर्ण हरियाणा के सम्बन्ध में लॉकडाउन के आदेश हरियाणा सरकार के स्वास्थ्य विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव, राजीव अरोड़ा, आई.ए.एस. द्वारा महामारी अधिनियम, 1897 की प्रासंगिक धाराओं के अंतर्गत जारी किये गए हैं। इन आदेशों में यह भी उल्लेख है कि इनकी उलंघना करना भारतीय दंड संहिता (IPC ) की धारा 188 के अंतर्गत अपराध होगा। इस धारा में किसी सक्षम सरकारी अधिकारी द्वारा विधिवत रूप से जारी किये गए आदेशों कि जानकारी के बावजूद उन्हें न मानने अर्थात उनकी जानबूझ कर उलंघना करने पर परिस्थितियों के अनुरूप एक माह से लेकर छः माह तक का कारवास और जुर्माना हो सकता है।
बिना वारंट पुलिस कर सकती है गिरफ्तार
मौजूदा कोरोना वायरस के संक्रम के दृष्टिगत चूँकि इसकी रोकथाम के लिए जारी आदेशों की उलंघना करने से समाज में लोगो का स्वास्थ्य , सुरक्षा और उनके जीवन पर संकट होगा, इसलिए इस पर छः माह तक के कारावास का प्रावधान लागू होगा. दंड प्रक्रिया संहिता (सी.आर.पी.सी.), 1973 के पहले अनुच्छेद के अनुसार धारा 188 संज्ञेय (कॉग्निजेबल) और ज़मानती अपराध है। संज्ञेय अपराध वह होता है जिसमे पुलिस बिना वारंट के किसी आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती है।
ज्ञात रहे कि आज से नौ वर्ष पूर्व चंडीगढ़ के प्रशासक द्वारा भी ऐसी ही एक नोटिफिकेशन 25 फरवरी, 2011 को जारी की गयी थी जो हालांकि केवल एक वर्ष के लिए थी एवं 24 फरवरी, 2012 के बाद उसे फिर से जारी नहीं किया गया था। पडोसी राज्य पंजाब में भी आज तक पंजाब सरकार द्वारा ऐसी कोई जारी की गयी है। आज से साढ़े छः वर्ष पूर्व जुलाई, 2013 में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने डिवीज़न बेंच जिसमे तत्कालीन जस्टिस हेमंत गुप्ता (अब सुप्रीम कोर्ट के जज ) और फ़तेहदीप सिंह शामिल थे ने अनुज बनाम हरियाणा सरकार नामक केस में निर्णय दिया कि उक्त नोटिफिकेशन राज्य सरकार द्वारा जारी की जा सकती है एवं यह कानूनी तौर पर वैध है। मौजूदा कानूनी प्रावधानों और इस सुप्रीम कोर्ट एवं हाई कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णयों के अनुसार IPC की धारा 188 के अपराध के अंतर्गत पुलिस सीधे तौर पर एफ.आई.आर. नहीं दर्ज कर सकती।
उन्होंने बताया की सी.आर.पी.सी. 1973 की धारा 195 (1 ) के अनुसार ऐसे केसो में सम्बंधित सरकारी आदेश जारी करने वाले अधिकारी या अन्य अधिकृत अधिकारी को ऐसे केसो में न्यायिक मजिस्ट्रेट की कोर्ट में लिखित शिकायत देनी होती है जिस पर अदालत उचित संज्ञान लेकर इस पर आगामी कार्यवाही कर सकती है, हालांकि उन्होंने बताया कि मौजूदा परिस्थितियों में पुलिस IPC की धारा 269 ( लापरवाही से कोई कार्य करना जिससे किसी बीमारी का इन्फेक्शनन फैले ) और धारा 270 (जानबूझ कर कोई कार्य कर किसी बीमारी का इन्फेक्शन घातक रूप से फैलाना ) में भी ऐसा करने वाले व्यक्तियों को गिरफ्तकार कर सकती है. दोनी धाराएं संज्ञेय अपराध है हालांकि जमानती हैं। इसके अलावा IPC की धारा 271 भी मौजूदा परिस्थितियों में प्रयोग में लायी जा सकती है जिसमे क्वारंटाइन नियम (संगरोध अर्थात अलग-थलग रहने) के निर्देश की उलंघना करना अपराध है जिसमे अधिकतम छः माह तक का कारावास हो सकता है। यह धारा गैर संज्ञेय और जमानती है. इसके अलावा आपदा प्रबंधन अधिनियम (डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट), 2005 की धारा 51 , 52 और 54 के तहत भी पुलिस द्वारा कार्यवाही कि जा सकती है।
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