विधायकों की पकड़ की कलई भी खोल देगा लोकसभा चुनाव

3/30/2019 12:44:49 PM

अम्बाला (रीटा/सुमन): लोकसभा का चुनाव भले ही केंद्र सरकार की उपलब्धियों, नाकामियों व राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़ा जाता है लेकिन जीत-हार में संसदीय क्षेत्र में पडऩे वाले विधानसभा क्षेत्रों के विधायकों व पार्टी के ब्लाक जिला अध्यक्षों की भी बड़ी भूमिका होती है।

इन चुनावों में वोट डालते समय मतदाता सांसद के रिपोर्ट कार्ड के साथ-साथ संसदीय क्षेत्र के विधानसभा क्षेत्रों के विधायकों की कारगुजारी का भी आकलन करते हैं। सत्तारूढ़ दल के विधायकों की जवाबदेही ज्यादा होती है, जबकि विपक्ष तो यह कह कर पल्ला झाड़ लेता है कि उसकी सरकार ही नहीं है, वे क्या कर सकते हैं। यदि किसी पार्टी के विधायक की लोगों में खिलाफत हो तो उसका खमियाजा उसकी पार्टी के लोकसभा प्रत्याशी को भुगतना पड़ सकता है।

दरअसल, सांसद का अपना कोई संगठन का ढांचा नहीं होता। चुनाव लडऩे के लिए उसे अपने विधायकों व संगठन के नेताओं पर निर्भर करना पड़ता है। हरियाणा में तकरीबन सभी लोकसभा क्षेत्रों में 9-9 विधानसभा क्षेत्र हैं। कुछ संसदीय क्षेत्रों की सीमाएं 3-3 जिलों तक फैली हैं जहां अब मतदाताओं की तादाद 15 से 20 लाख के बीच पहुंच गई है। लंबा-चौड़ा इलाका होने के नाते कई बार तो पैराशूट प्रत्याशियों को अपनी सीट के गांवों के नाम की जानकारी भी नहीं हो पाती।

यह जरूरी नहीं कि जिस लोकसभा सीट के प्रत्याशी की पार्टी के विधायक ज्यादा हों वहां उसकी जीत आसान हो जाती है। कई बार सत्तारूढ़ विधायकों के खिलाफ  सत्ता विरोधी हवा भी लोकसभा प्रत्याशी पर भारी पड़ जाती है। 2009 में अम्बाला लोकसभा क्षेत्र के 9 हलकों में से केवल एक पर अम्बाला छावनी से भाजपा के विधायक अनिल विज जीते थे जबकि अन्य 8 हलकों में से 3 में इनैलो, 4 पर कांग्रेस व एक पर बसपा काबिज हुई थी, लेकिन 5 साल बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रतन लाल कटारिया ने कांग्रेस को करीब 3.40 लाख वोटों से हरा दिया और करीब 6 महीने बाद हुए विधानसभा चुनावों में सभी 9 विधानसभा सीटों पर भाजपा ने कब्जा कर लिया।  इस बार अम्बाला लोकसभा क्षेत्र में सभी 9 विधायक भाजपा के हैं जबकि कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं है। 

Shivam