LS Election 2019- कुछ सांसदों की कारगुजारी धीमा कर सकती है भाजपा का विजय रथ

3/15/2019 1:44:59 PM

अम्बाला (रवीन्द्र पांडेय): हरियाणा में इस बार सभी 10 सीटों पर जीत का दावा करने वाली सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के लिए उसका यह अति उत्साह चुनावों में घाटे का सौदा साबित हो सकता है। पिछली बार मोदी लहर पर सवार होकर भाजपा ने 10 में से 7 सीटों पर जीत हासिल कर ली थी लेकिन इस बार न तो पहले जैसी जबरदस्त लहर है और न ही परिस्थितियां पहले की तरह अनुकूल हैं। राजनीतिक विश£ेषकों का मानना है कि भाजपा अपनी पिछली बार की 7 सीटों को ही बचाने में सफल हो जाए तो पार्टी के लिए बड़ी बात होगी। इस समय जिस तरह की परिस्थितियां अधिकांश सीटों पर हैं, उससे यह स्पष्ट दिख रहा है कि भाजपा के लिए संसदीय चुनाव हरियाणा में एक बड़ी चुनौती है।

सांसद से काफी मायूस है करनाल की जनता
यही आलम करनाल में है। दानवीर कर्ण की नगरी में पिछली बार मैदान में उतारे गए अश्विनी चोपड़ा ने पौने 5 वर्ष तक करनाल की सुध नहीं ली। ऐसे में अब यहां पर अरुण जेतली व मेनका गांधी को उतारे जाने की चर्चा चल रही है। करनाल की जनता अपने सांसद से काफी मायूस है और ऐसे में पार्टी को कदम फंूक-फंूककर उठाना पड़ेगा, नहीं तो पार्टी को जनता की नाराजगी और इस सीट पर इस बार उतारे जाने वाले पार्टी उम्मीदवार को पिछले सांसद की कार्यप्रणाली का खमियाजा भी भुगतना पड़ सकता है। उनकी गुमशुदगी के पोस्टर तक लोकसभा क्षेत्र में लगे थे। 

कुरुक्षेत्र सीट पर प्रभावी चेहरे की तलाश 
2014 के चुनाव में भाजपा ने हरियाणा में पहली बार अपने बूते 10 में से 7 सीटों पर जीत हासिल की थी। इनैलो को सिरसा व हिसार जबकि कांग्रेस को रोहतक सीट पर जीत मिली थी। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पार्टी के लिए इस बार परिस्थितियां पूरी तरह से अनुकूल नहीं दिख रही हैं। मोदी लहर 2014 की तरह प्रभावी नहीं नजर आ रही है। कुरुक्षेत्र सीट से भाजपा के सांसद बने राजकुमार सैनी स्वयं की पार्टी बना चुके हैं और सैनी कई सीटों पर भाजपा का समीकरण बिगाड़ सकते हैं। ऐसे में कुरुक्षेत्र सीट पर भाजपा को किसी प्रभावी चेहरे की तलाश है। 

उल्लेखनीय है कि सैनी के लिए खुद मोदी 3 अप्रैल 2014 को जनसभा को सम्बोधित करने आए थे जिसका फायदा सैनी को मिला लेकिन सैनी ने जाट व नॉन-जाट के चक्कर में भाजपा को अलविदा कह दिया और अपना दल बना लिया। इससे न केवल भाजपा की किरकिरी हुई अपितु कार्यकत्र्ता बंटने के साथ ही मायूस भी हुए जिसका नुक्सान भाजपा को उठाना पड़ सकता है।

रोहतक सीट से जीत दर्ज करना भाजपा के लिए अग्नि परीक्षा से कम नहीं 
मोदी के प्रभावी लहर के बीच रोहतक सीट पर भाजपा पिछली बार भी जीत दर्ज नहीं कर पाई थी। लगातार रोहतक से 3 बार कांग्रेस के सांसद रहे दीपेंद्र हुड्डा के सामने भाजपा के पास कोई सशक्त चेहरा नहीं है। इस सीट पर भी जीत दर्ज करना भाजपा के लिए अग्नि परीक्षा से कम नहीं है। 

हिसार व सिरसा संसदीय सीट जीतना भाजपा के लिए बड़ा इम्तिहान
2014 में हजकां से गठबंधन के चलते हिसार व सिरसा संसदीय सीटें हजकां के हिस्से में आई थीं। ऐसे में यहां पर किसी प्रभावी चेहरे की तलाश भाजपा को है। इन दोनों सीटों पर जीत दर्ज करना भाजपा के लिए बड़ा सियासी इम्तिहान माना जा रहा है। 

कार्यकत्र्ताओं में सांसद कटारिया की कारगुजारी को लेकर नाराजगी व मायूसी 
वहीं, अगर अम्बाला संसदीय सीट पर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि यहां से मोदी लहर के सहारे लाखों मतों से जीते रतनलाल कटारिया की कारगुजारी निराशाजनक ही रही। इससे पूर्व 2016 में भी इनकी कार्यप्रणाली से जनता नाखुश ही रही है।

अम्बाला लोकसभा की सबसे पुरानी व चिरलम्बित यमुनानगर-चण्डीगढ़ वाया नारायणगढ़ रेल लाइन पर वह एक इंच भी आगे नहीं सरक पाए। संयुक्त पंजाब के समय एच.एम.टी. का पिंजौर में लगा कारखाना भी बन्द हो गया व सांसद हाथ मलते रह गए। लोकसभा में कटारिया की हाजिरी बेशक उल्लेखनीय रही हो लेकिन क्षेत्र की जनता से उन्होंने दूरी बनाए रखी जिससे  वर्करों में रोष है। वहीं अम्बाला लोकसभा में  सी.एम. द्वारा गुरु गोङ्क्षबद सिंह के नाम पर बनाई जाने वाली यूनिवॢसटी की घोषणा पर भी कोई पहलकदमी न होने का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ सकता है। कार्यकत्र्ताओं में सांसद की कारगुजारी को लेकर नाराजगी व मायूसी है। हरियाणा की उपरोक्त सीटों पर नजर डालने के पश्चात राजनीतिक विश£ेषकों का मानना है कि अगर प्रदेश में हाईकमान ने सोच-विचार कर कदम न उठाए तो जातिगत समीकरणों में उलझी हरियाणा की राजनीति इस बार भाजपा के विजय रथ के पहिए थाम सकती है।
 

भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट पर जीत को बरकरार रखना लग रहा मुश्किल
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भिवानी-महेंद्रगढ़ से धर्मवीर एवं सोनीपत से रमेश कौशिक दोनों ही कांग्रेस से आयातित नेता थे। इस बार इनके चुनावी समर में उतरने पर असमंजस बना हुआ है। ऐसे में इन 2 सीटों पर भी भाजपा के लिए सशक्त उम्मीदवार तलाशना और फिर जीत को बरकरार रखना मुश्किल नजर आ रहा है। जाहिर है कि भारतीय जनता पार्टी अति उत्साह में जरूर है लेकिन पार्टी के नेताओं को अंदरुनी तौर पर साफ मालूम है कि इस बार 2014 जैसी न तो परिस्थितियां हैं और न ही लहर।

Shivam