प्रवासी मजदूरों का छलका दर्द- दो दिन से भूखे हैं साहब, घर भेज दो, हम पैदल जाने को भी तैयार

5/2/2020 9:48:27 PM

राेहतक(दीपक): हमारे बच्चे ही नहीं रहेंगे तो हम जिंदा रहकर क्या करेंगे साहब, इससे अच्छा तो हम भूखे प्यासे या बीमारी से ही मर जाए पर हमें घर भेज दो साहब, ये उन प्रवासी मजदूरों का दर्द है जो लॉक डाउन की वजह से करीब डेढ़ महीने से रोहतक में फंसे हुए है। घर जाने के लिए डीएम साहब से परमिशन लेने के लिए मिलने जाते है तो पुलिस वाले रास्ते में ही डरा धमका कर भगा देते है, उन तक पहुंचने ही नहीं देते।

पेट भरने के लिए अपने घरों से करीब पांच सौ किलोमीटर दूर रोहतक में दिहाड़ी मजदूरी करने वाले करीब तीस से चालीस महिला और पुरुष प्रवासी मजदूर घर जाना चाहते है। घर जाने की परमिशन मिलने की उम्मीद लेकर ये मजदूर  डीसी कार्यालय तक पहुंचने की कोशिश करते है, लेकिन पुलिस कर्मी रास्ते में ही उन्हें डरा धमका कर भगा देते हैं, ये बात हम नहीं बल्कि खुद प्रवासी मजदूर ही कह रहे हैं।

मजदूरों का कहना है कि प्रसाशन के खाना पहुंचने के जो दावे है वो भी सही नहीं हैं। मजदूरों के अनुसार कभी उन्हें खाना मिल जाता है, तो कभी वो भूखे ही रहते है। कुछ मजदूर तहसील के पास जिस बिल्ड़िंग में दिहाड़ी-मजदूरी करते थे, फिलहाल उसी में रहने का ठिकाना बनाए हुए है तो कुछ रोहतक की दुर्गा भवन मंदिर के पास रहते है। मंदिर में कभी कभार कुछ लोग खाना दे जाते हैं, बस उसी से अपना और बच्चों का पेट भर लेते है, लेकिन ऐसा हर रोज नहीं होता।

उन्हाेंने कहा कि लॉकडाउन की वजह से वो पिछले डेढ़ महीने से फंसे हुए हैं, उन्हें बस घर जाना है। मजदूरों का कहना है कि डीसी साहब से मिलने की कोशिश करते है, लेकिन पुलिस कर्मी उन्हें डरा धमका कर उल्टा भगा देते है। इसलिए चाहे भूखे मरे या बीमारी से, हमें घर भिजवा दो साहब। हमारे बच्चे अकेले हैं।प्रवासी मजदूरों ने कहा हमे केवल परमिशन दिला हम पैदल ही निकल जाएंगे। गौरतलब है कि लॉकडाउन की वजह से मध्यप्रदेश और यूपी के कई प्रवासी मजदूर फंसे हुए है, जो घर जाने की परमिशन के लिए प्रसाशन के कई बार चक्कर लगा चुके है, लेकिन वहां तक पहुंचने ही नहीं दिया जाता।

 

Edited By

vinod kumar