गौशाला में गायों की हालत दयनीय, प्रशासन बेखबर

1/30/2017 3:35:07 PM

बिलासपुर(पंकेस):हमारे देश में गाय को माता का दर्जा दिया गया। गाय का दूध अमृत के समान है व गाय का दूध पीने से कई बीमारियां स्वयं ही मिट जाती हैं। हमारे देश के गांवों में आज भी गौचरान के नाम से जमीनें हैं। सरकार गौ की रक्षा करने के लिए बड़ी बड़ी गौशालाओं का निर्माण करवा रही है, यहां तक कि हमारे देश में गाय का मांस खाने पर भी पूर्ण रूप से प्रतिबंध है। अनेक संत महात्मा व समाज सेवी संगठन व कई गौ रक्षा समितियां बनी हुई हैं। जो गायों की रक्षा करती हैं। गायों की रक्षा के लिए पुलिस विभाग में गौरक्षा के नाम से अलग टास्क फोर्स बनाई गई है। सोचने वाली बात यह है कि क्या हम सब की जिम्मेदारी केवल गायों को गऊशाला तक भेजने की ही है। क्या कभी प्रशासन व गऊ रक्षा समितियां गौशालाओं में जाकर भी देखती है कि वहां गायों की क्या दशा है। ऐसा ही एक मामला जिला यमुनानगर के अंतिम छोर पर स्थित आदिबद्री गौशाला का देखने को सामने आया है। जहां मृत गाय पहाड़ी के नीचे पड़ी देखी जा सकती है। उनके मृत शरीर को जंगली जानवर नोचते हैं व उनके शरीर के अवशेष चारों ओर बिखेर देते हैं जिससे चारों ओर बदबू फैल जाती है। वहां से गुजर रही सोमनदी में भी मृत गायों के अवशेष पड़े हुए हैं जिससे आदिबद्री धाम पर आने वाले श्रद्धालुओं की आस्था को भी ठेस पहुंच रही है। 

क्या कहते हैं गौशाला संचालक
आदिबद्री गौशाला के संचालक विनय स्वरूप बह्मचारी ने बताया कि आदिबद्री स्थित गौशाला में इस समय करीब 225 गाय हैं। जिनके चारे की व्यवस्था वे स्वयं व दानी सज्जनों के सहयोग से करते हैं। जिसके लिए सरकार की तरफ से कोई सहायता नहीं की जाती। स्वामी ने बताया कि गायों के चारे के लिए उन्होंने रामपुर गेंदा में ठेके पर जमीन ली हुई है पर उनके पास इतने पैसे नहीं कि वे उस जमीन को आगे भी ठेके पर ले सकें। प्रशासन व श्राइन बोर्ड की तरफ से कई बार गुहार लगाने पर भी कोई सुनवाई नहीं हुई। स्वामी का कहना है कि यदि प्रशासन व श्राइन बोर्ड गायों के चारे के लिए जमीन मुहैया करवा दे तो गायों के चारे की समस्या खत्म हो सकती है। स्वामी का कहना है कि यदि श्राइन बोर्ड या प्रशासन उन्हें समतल स्थान में गौशाला बनाने के लिए जमीन उपलब्ध करवा दे तो गायों की देखभाल अच्छे तरीके से की जा सकती है। स्वामी जी का कहना है कि बाहरी लोग मना करने के बाद भी बीमार, वृद्ध व अमरीकन बछड़ों को रात के अंधेरे में आदि बद्री गौशाला के पास पहाडिय़ों में छोड़ जाते हैं। ये पशु पहाड़ों से गिरकर चोटिल हो जाते हैं, कई पशु मर भी जाते हैं। मृत पशुओं को वे मिट्टी में दबा देते हैं। कई बार जंगली जानवर दबे हुए मृत पशुओं को जमीन उखाड़कर बाहर निकाल देते हैं जिससे बदबू फैल जाती है। वे फिर उनके अवशेषों को इकट्ठा करवाकर मिट्टी में दबा देते हैं। ऐसी समस्या उनके सामने बार-बार आती रहती है। 

अधिकारियों को देख मृत गायों के शरीर पर डाली मिट्टी
सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर सरस्वती महोत्सव मनाया गया जिसके लिए एक यात्रा आदिबद्री सरस्वती उदगम स्थल से शनिवार को शुरू हुई जैसे ही आदिबद्री में अधिकारियों का पहुंचना शुरू हुआ तो गौशाला संचालकों ने अपने 2 आदमी फावड़े देकर मृत गायों के शरीर पर मिट्टी डालने के लिए लगा दिए ताकि फैल रही बदबू अधिकारियों तक न पहुंचे। हुआ भी ऐसा ही उस तरफ किसी भी अधिकारी व नेता का ध्यान गया ही नहीं। गौशाला में रह रही गाय भी रामभरोसे ही हैं। उनके खाने के लिए चारे की समुचित व्यवस्था नहीं है। गायों को सुबह पहाड़ों पर जंगलों में चरने के लिए छोड़ दिया जाता है, शाम ढलने से पहले गाय स्वयं ही चरकर लौट आती हैं। कुछ गाय जो कमजोर व बीमार हैं वह गौशाला में ही पड़ी तडफ़ती रहती हैं, जिनके खाने के लिए केवल धान के बचे अवशेष ही जो उनके पास डाल दिए जाते हैं।