छल-कपट का चक्रव्यूह रच रहे हैं मोदी : सुर्जेवाला

7/28/2018 11:00:02 AM

हिसार(संजय अरोड़ा): राफेल डील को लेकर कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व उनकी सरकार पर बड़ा हमला बोला है। यही नहीं इस डील को लेकर कांग्रेस ने पी.एम. मोदी पर कई प्रश्न भी खड़े किए हैं। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी रणदीप सुर्जेवाला ने कहा कि एक झूठ छिपाने के लिए सौ झूठ बोलना मोदी सरकार का चाल, चेहरा और चरित्र बन गया है। समय आ गया है कि प्रधानमंत्री देश को जवाब दें। आरोप लगाया कि 60,145 करोड़ रुपए की राफेल डील ने साबित कर दिया कि कल्चर ऑफ क्रोनी कैपिटलि'म मोदी सरकार का डी.एन.ए बन गया है। झूठ परोसना व छल-कपट का चक्रव्यूह बुन देश को बरगलाना ही अब सबसे बड़े रक्षा सौदे में भाजपाई मूल मंत्र है। 

एक झूठ छिपाने के लिए सौ और झूठ बोले जा रहे हैं। सुर्जेवाला ने कहा कि वास्तविकता यह है कि 36 राफेल लड़ाकू जहाजों की एकतरफा खरीद से सीधे-सीधे गहरी साजिश, धोखाधड़ी व सरकारी खजाने को नुक्सान पहुंचाने के षडयंत्र की बू आती है। उन्होंने केंद्र सरकार से सवाल पूछते हुए कहा है कि राफेल जहाज बनाने वाली कंपनी, डसॉल्ट एविएशन ने 13 मार्च, 2014 को एक वर्कशेयर समझौते के रूप में सरकारी कंपनी, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) से 36,000 करोड़ रुपए के ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर किए। परंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का क्रोनी कैपिटलिज्म प्रेम तब जगजाहिर हो गया।

जब 10 अप्रैल, 2015 को 36 राफेल लड़ाकू जहाजों के खरीद की मोदी द्वारा की गई एकतरफा घोषणा के फौरन बाद, सरकारी कंपनी, एच.ए.एल को इस सबसे बड़े डिफैंस ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट से दरकिनार कर दिया गया व इसे एक निजी क्षेत्र की कंपनी को दे दिया गया। प्रधानमंत्री व रक्षामंत्री इसका कारण क्यों नहीं बता रहे? साथ ही डिफेंस ऑफसेट कांट्रैक्ट एक निजी कंपनी, रिलायंस डिफैंस लिमिटेड को दे दिया गया, जिसे लड़ाकू जहाजों के निर्माण का शून्य भी अनुभव नहीं। रिलायंस डिफैंस लिमिटेड का गठन फ्रांस में 10 अप्रैल, 2015 को प्रधानमंत्री द्वारा 36 राफेल लड़ाकू जहाजों की खरीद की घोषणा किए जाने से 12 दिन पहले यानि 28 मार्च, 2015 को किया गया।

रिलायंस डिफैंस लिमिटेड के पास लड़ाकू जहाज बनाने का लाईसेंस तक नहीं था। सुर्जेवाला ने कहा कि आश्चर्य वाली बात यह है कि रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड को रक्षा मंत्रालय द्वारा लड़ाकू जहाजों के निर्माण का लाईसेंस तो दिया गया, लेकिन 2015 में लाइसैंस का आवेदन देने व उसके बाद लाइसैंस दिए जाने की तिथि, 22 फरवरी, 2016 को इस कंपनी के पास लड़ाकू जहाज बनाने की फैक्ट्री लगाने के लिए न तो कोई जमीन थी और न ही उस पर कोई बिल्डिंग चौंकाने वाले खुलासों एवं प्रमाणों से 30,000 करोड़ रुपए का डिफैंस ऑफसेट कॉन्ट्रैक्टज् रिलायंस समूह को दिए जाने बारे रक्षामंत्री निर्मला सीतारमन की झूठ जगजाहिर हो जाती है। 

रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी किए गए डिफैंस ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट दिशा-निर्देशों का घोर उल्लंघन जगजाहिर है। रिलायंस समूह व डसॉल्ट एविएशन के 30,000 करोड़ के ऑफसैट कॉन्ट्रैक्ट के सांझे समझौते को रक्षामंत्री व एक्विजि़शन मैनेजर, रक्षा मंत्रालय की अनुमति दिशा-निर्देशों के मुताबिक अनिवार्य थी। पूरे मसौदे को डिफैंस एक्विजि़शन काऊंसिल के समक्ष पेश करना भी जरूरी था। 

खुद मोदी सरकार ने ही रक्षा मंत्रालय के सभी दिशा-निर्देशों की धड़ल्ले से धज्जियां उड़ा दीं। राफेल डील के संदर्भ में केंद्र सरकार पर प्रश्न खड़े करते हुए सुर्जवाला ने पूछा है कि क्या रिलायंस एवं डसॉल्ट एविएशन 30,000 करोड़ रुपए के ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट पर रक्षामंत्री की अनुमति के बिना हस्ताक्षर कर सकते हैं? इसके अलावा क्या इस ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट पर रक्षा मंत्रालय के एक्विजिशन मैनेजर ने हस्ताक्षर किए? साथ ही सुर्जेवाला ने यह भी पूछा है कि डी.ओ.एम.डब्लू द्वारा 6 महीने में किया जाने वाला ऑडिट क्यों नहीं किया गया?  क्या एक्विजिशन विंग ने डिफैंस एक्विजिशन काऊंसिल को अपनी वार्षिक रिपोर्ट जमा करवाई? यदि नहीं, तो इसका कारण क्या है। ऐसे ही अनेक प्रश्नों के साथ कांग्रेस ने केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री को इन सवालों का जवाब देना ही हागा।
 

 

Rakhi Yadav