कांग्रेस सिंबल पर लड़ेगी नगर निगम चुनाव!

7/1/2022 9:35:52 AM

अम्बाला: अभी हाल में हुए 46 स्थानीय निकाय चुनाव पार्टी के सिंबल पर न लडऩे से सियासी रण में कांग्रेस की मौजूदगी कहीं नजर नहीं आई, जिसे लेकर पार्टी के अंदर व बाहर पार्टी के प्रदेश नेतृत्व की काफी किरकिरी हुई। राज्यसभा चुनाव की हार के बाद यह कांग्रेस के लिए यह दूसरा बड़ा झटका था। प्रदेश कांग्रेस के कई दिग्गज नेता अब दबी जुबान से पार्टी के निशान पर चुनाव न लडऩे के फैसले को आत्मघाती बता रहे हैं। हालांकि, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने संगठन न होने की वजह से निर्दलीय तौर पर चुनाव लडऩे की बात कही। लेकिन पार्टी के नेताओं, कार्यकत्र्ताओं यहां तक की भूपेंद्र सिंह हुड्डा के कई विधायकों को पार्टी का यह फैसला पसंद नहीं आया। अब आने वाले गुरुग्राम, फरीदाबाद व मानेसर नगर निगम चुनाव सिंबल पर लडऩे को लेकर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व हुड्डा पर काफी दबाव बन रहा है। 

अभी हाल में बनाई गए मानेसर नगर निगम के अलावा सूबे में 10 नगर निगम हैं। जिनमें से करनाल, रोहतक, हिसार, यमुनानगर,  पंचकूला, गुरुग्राम व फरीदाबाद में भाजपा के मेयर हैं। जबकि अम्बाला में जन चेतना पार्टी व सोनीपत में कांग्रेस काबिज है। मानेसर को छोड़कर सभी निगम शहरी बाहुल्य है। जबकि मानेसर नगर निगम में वहां के सैक्टर-1 के अलावा 29 गांव शामिल हैं।  भाजपा तीनों निगमों में चुनाव लडऩे की तैयारी में है, लेकिन गठबंधन की सहयोगी पार्टी होने के नाते जजपा ग्रामीण बाहुल्य निगम मानेसर पर अपना दावा ठोक सकती है। स्थानीय निकाय चुनावों में 18 में से 4 मंडी डबवाली, टोहाना, नरवाना और नूंह नगर परिषद जजपा के हिस्से में आई थी, लेकिन वह केवल नूंह ही जीत दर्ज करा पाई। 

हालांकि, कांग्रेस जीते हुए कई निर्दलियों को अपना प्रत्याशी बता रही है, लेकिन आम लोगों व पार्टी कार्यकत्र्ताओं को इस दावे पर कोई बहुत भरोसा नहीं हो रहा है। कांग्रेस के सिंबल पर चुनाव न लडऩे से करीब एक दर्जन स्थानीय निकायों में कांग्रेस के 2-2 कहीं तो इससे भी ज्यादा भी उम्मीदवार खड़े हो गए, जिसका फायदा भाजपा को मिला। कांग्रेस प्रत्याशी निर्दलीय होने की वजह से पार्टी का केडर असमंजस में रहा और फील्ड में नजर नहीं आया। जबकि भाजपा का बूथ स्तर तक का कायकत्र्ता मैदान में डटा रहा। भले ही आम आदमी पार्टी अपने दावों के मुताबिक चुनावों में कुछ खास नहीं कर पाई, लेकिन इसके बावजूद सिंबल के चलते उसने एक नगरपालिका में झाडू का परचम लहराया और चुनावों में वह करीब 10 फीसदी वोट लेने में भी कामयाब रही।

कांग्रेस सीधे तौर पर यह कहने की स्थिति में नहीं है कि कितने निकायों में उसके निर्दलीय अध्यक्ष बने और उसे कुल कितने फीसदी वोट मिले। इनैलो भले ही हाशिये पर हो, लेकिन वह भी एक नगर परिषद पर चश्मे की जीत का दावा कर सकता है। सैलजा के कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए ऐलनाबाद उपचुनाव व 2 नगर निगमों में कांग्रेस की हार का ठीकरा गुटबाजी के सिर पर फोड़ा गया, लेकिन बरोदा उपचुनाव व सोनीपत नगर निगम में हुड्डा की अपनी ताकत के चलते ही जीत संभव हुई। अब तो प्रदेश कांग्रेस में कोई खास खेमेबाजी नहीं है। प्रदेश कांग्रेस और विधायक दल के नेता दोनों की कमान हुड्डा खेमे के पास है।

अशोक तंवर के बाद सैलजा को प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष की बागडोर इस उम्मीद पर सौंपी गई थी कि वह पार्टी का मजबूत संगठन खड़ा कर देगी। लेकिन अपने करीब अढाई साल के कार्यकाल में वह कुछ नहीं कर पाईं। उदयभान को प्रदेशाध्यक्ष का कार्यभार संभाले 2 महीने हो गए हैं, लेकिन अभी तक संगठन को लेकर वह भी कोई फैसला नहीं ले पाए हैं।  जिला परिषद व पंचायत चुनावों का बिगुल भी बजने वाला है। अभी तक किसी भी सियासी दल ने फैसला नहीं किया कि वे ये चुनाव पार्टी सिंबल पर लड़ेंगे या नहीं।  अभी तक ये चुनाव निर्दलीय तौर पर लड़े जाते रहे हैं, लेकिन बदलते माहौल में यदि भाजपा या अन्य दल स्थानीय निकायों की तरह अपने चुनाव निशान पर लडऩे का फैसला करते हैं तो कांग्रेस को भी उसी रास्ते पर चलना होगा। 

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Isha