खुलासा: आतंकी मॉड्यूल में मुजम्मिल करता था नेटवर्क रिक्रूटमेंट, डॉ. शाहीन व उमर करते थे ब्रेन वॉश
punjabkesari.in Thursday, Nov 20, 2025 - 10:43 AM (IST)
फरीदाबाद (अनिल राठी) : फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी में चल रहे आतंकी मॉड्यूल से जुड़ी नई जानकारियां सामने आई हैं। इस मॉड्यूल से जुड़े सभी प्रमुख डॉक्टरों की ड्यूटी तय थी। आतंक का नेटवर्क खड़ा करने में डॉ. मुजम्मिल शकील की अहम भूमिका रही है, जो लोगों को शॉर्टलिस्ट करने के बाद रिक्रूट करता था। नए लोगों को शामिल करने के बाद डॉ. शाहीन सईद और डॉ. उमर नबी उनकी आर्थिक मदद करते और ब्रेनवॉश करते थे। मुजम्मिल यह काम मरीजों और अस्पताल कर्मचारियों के घर मदद के बहाने जाकर करता था। अस्पताल के जिन कर्मचारियों के नाम इस नेटवर्क में शामिल हैं, उनके परिवार वालों ने खुलासा किया है कि मुजम्मिल इलाज या किसी अन्य बहाने उनके घर आया था।
यूं तो मुजम्मिल यूनिवर्सिटी के इमरजेंसी वार्ड का सर्जन था, लेकिन पर्दे के पीछे उसकी भूमिका आतंकी मॉड्यूल में मदद करने वालों की टीम खड़ी करना था। वह यूनिवर्सिटी के अस्पताल में इलाज के लिए आने वाले मरीजों और अस्पताल में काम करने वाले लोगों पर नजर रखता था। ज़रूरत पड़ने पर वह इलाज या अन्य तरीकों से लोगों से संपर्क करता और उनके घर की जानकारी जुटा लेता था।
जांच एजेंसियों ने धौज गांव के शोएब को हिरासत में ले रखा है। शोएब को मई 2024 में यूनिवर्सिटी में वार्ड बॉय की नौकरी मिली थी, जिसमें उसे 8 हजार रुपए महीना पगार मिलती थी। शोएब के पिता शोहराब ने दैनिक भास्कर एप की टीम को बताया कि करीब एक साल पहले मेडिकल विंग में शोएब डॉ. मुजम्मिल के संपर्क में आया था। परिवार में किसी के बीमार होने पर शोएब उससे फोन पर बात करके दवाई पूछ लेता था। कुछ महीने पहले डॉ. मुजम्मिल उनके घर पर भी आया था। शोएब के जरिए आस-पड़ोस में कोई बीमार होता था तो वह मुजम्मिल से अस्पताल में आसानी से इलाज करवा देता था, जिसके कारण शोएब और डॉ. मुजम्मिल के गहरे संबंध बन गए थे। शोएब से अस्पताल में काम करने वाले स्टाफ की घर तक की जानकारी ली जाती थी।
हिरासत में है धौज के ही रहने वाले साबिर
धौज के ही रहने वाले साबिर को NIA और जम्मू पुलिस ने इस नेटवर्क में शामिल होने के चलते हिरासत में लिया है। साबिर की गांव में मोबाइल की दुकान है। पुलिस सूत्रों के मुताबिक, करीब 8 महीने पहले डॉ. मुजम्मिल अपनी मोबाइल रिपेयरिंग के लिए साबिर की दुकान पर गया था, जहां उनकी पहचान हुई। इसके बाद डॉ. मुजम्मिल कई बार धौज गया और उसकी दुकान पर जाता था। यूनिवर्सिटी में डॉक्टर होने के कारण साबिर की उससे अच्छी दोस्ती हो गई थी। पुलिस सूत्रों के मुताबिक, कश्मीरी छात्रों के लिए सिम यहीं से खरीदी जाती थी।
इलाज करने में की मदद
गांव धौज के ही रहने वाले बाशिद को भी पुलिस ने इस नेटवर्क में शामिल होने के कारण पकड़ा है। बाशिद ने दिल्ली विस्फोट के बाद डॉ. उमर नबी की लाल रंग की ईको स्पोर्ट्स कार को अपनी बहन के घर छिपाया था। बाशिद की मुलाकात डॉ. मुजम्मिल से अस्पताल में अपने पिता का इलाज कराने के दौरान हुई थी। बाशिद के पिता का लंबे समय तक इलाज चला और इसी दौरान डॉ. मुजम्मिल का उसके घर आना-जाना शुरू हो गया। घर के हालात को भांपने के बाद डॉ. मुजम्मिल ने उसे अपनी टीम का हिस्सा बनाने का लक्ष्य रखा। बाद में डॉ. शाहीन और उमर ने उसे मेडिसन डिपार्टमेंट में ही क्लर्क की नौकरी दिलवा दी। इसके बाद बाशिद से गाड़ी चलवाने और सामान इधर-उधर करने का काम लिया गया।
मुजम्मिल ने यूनिवर्सिटी की मस्जिद के इमाम मोहम्मद इश्तियाक को अपनी टीम का सदस्य बनाया। मस्जिद में मुलाकात के बाद डॉक्टर उसके बच्चों का इलाज करने के लिए घर तक पहुंच गया। इस दौरान इमाम के घर से दूध लेना भी शुरू कर दिया। उसने यूनिवर्सिटी से कुछ दूरी पर मदरसा बनाने और वहां सबमर्सिबल लगाने के लिए पैसे भी दिए। इमाम को भरोसे में लेकर, बिना किसी दस्तावेज पर हस्ताक्षर कराए, गांव में उसका कमरा किराए पर लिया, जिसमें से 2593 किलो विस्फोटक सामग्री मिली थी।
धौज के रहने वाले इकबाल मद्रासी से भी मुजम्मिल ने बिना किसी दस्तावेज के कमरा किराए पर लिया था। मद्रासी की मुलाकात अस्पताल में बुखार की दवाई लेने के दौरान हुई थी। मद्रासी ने बताया कि वह सितंबर के महीने में अस्पताल गया था। डॉक्टर ने उससे किराए के लिए कमरे तलाश करने की बात कही, जिस पर उन्होंने अपने किराए के कमरे की बात कही। डॉक्टर होने के कारण उसने मुजम्मिल से कोई दस्तावेज़ नहीं मांगे। मुजम्मिल ने 2400 रुपए देकर कमरे में कुछ सामान रखा और फिर कभी वापस नहीं आया।
डॉ शाहीन और उमर दोनों करते थे ब्रेन वॉश
डॉ शाहीन और उमर ब्रेन वॉश करते थे, ग्रुप से जोड़ते-मोटिवेशनल वीडियो भेजते मुजम्मिल के रिक्रूटमेंट करने के बाद अगला काम डॉ. शाहीन और उमर नबी का होता था। दोनों ही यूनिवर्सिटी के उच्च पदों पर बैठे हुए थे, जिस कारण उन्हें किसी से काम लेने और कहीं पर भेजने में कोई दिक्कत नहीं आती थी। फार्मासिस्ट की एचओडी होने का शाहीन सईद ने फायदा उठाया और अपनी टीम के मेंबर को नौकरी भी लगवाया। बाशिद को नौकरी अस्पताल के मेडिसन विभाग में डॉ. शाहीन ने डॉ. उमर के कहने पर लगाई, जिसके बाद बाशिद पूरी तरह से उनके नेटवर्क में शामिल हो गया। ब्रेनवॉश करने के लिए दोनों नेटवर्क को सोशल मीडिया ग्रुप से जोड़ते और फिर वीडियो या अन्य मैसेज भेजकर प्रेरित करते।
डॉ. शाहीन ने अपनी टीम में लड़कियों को शामिल करने का भी प्लान तैयार किया था, जिसके तहत उसने कुछ लड़कियों की लिस्ट भी बनाई थी, जिसका जिक्र उसकी डायरी में भी है। इसके अलावा, किसको कितने पैसे की मदद करनी है, इसका फैसला भी डॉ. शाहीन और उमर नबी मिलकर ही करते थे। शाहीन लड़कियों की टीम बनाने में कामयाब नहीं हुई और उसने टीम बनाने की जिम्मेदारी डॉ. मुजम्मिल को सौंप दी।
डॉ. शाहीन की प्लानिंग फेल होने के बाद उसने दूसरी जिम्मेदारी ली, जिसके तहत शाहीन पैसों से टीम के सदस्यों की मदद करती और जब वे पूरी तरह से उनके काम में आ जाते तो उसके बाद उन्हें अंत में डॉ. नबी को सौंप दिया जाता था।डॉ. उमर बॉम्ब बनाने में माहिर बॉम्ब बनाने में सबसे ज्यादा माहिर डॉ. उमर नबी था, और उसने अपनी टीम में शामिल होने वाले हर शख्स को गाड़ी चलाने के लिए दी और सबसे अलग-अलग काम लिए गए। डॉ. उमर नबी ने बाशिद को अपनी गाड़ी से सामान लाने और ले जाने के लिए चुना, और वह नूंह से धौज और फतेहपुर तगा तक विस्फोटक पदार्थ लाल इको स्पोर्ट में पहुंचाने का काम कर रहा था।
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