महम कांड: अभय चौटाला को रोहतक कोर्ट में हाजिर होने का नोटिस जारी

7/12/2018 8:26:04 PM

रोहतक(दीपक भारद्वाज):  हरियाणा विधानसभा में विपक्ष के नेता और आजकल इंडियन नेशनल लोकदल के खेवनहार बने अभय सिंह चौटाला समेत सात लोगों को एक मर्डर केस के सिलसिले में कोर्ट में हाजिर होने का नोटिस जारी हुआ है। जिन लोगों को नोटिस जारी हुए हैं, उनमें हरियाणा के पूर्व डीजीपी शमशेर सिंह अहलावत , करनाल के पूर्व अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक सुरेश चंद्र, भिवानी के डीएसपी रहे सुखदेव राज राणा तथा गांव दरियापुर के भूपेंद्र , जिला हिसार के गांव दोलतपुर निवासी पप्पू और जिला फतेहाबाद के गांव गिल्ला खेड़ा के अजित सिंह के नाम शामिल हैं। 

इन सभी को रोहतक के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश फखरूद्दीन की अदालत ने नोटिस जारी किया है। साथ ही न्यायालय में हाजिर होकर अपना जवाब दाखिल करने का हुक्म सुनाया है। यह नोटिस रोहतक के माडल टाऊन निवासी रामफल (आयु 57 वर्ष) पुत्र सुबे सिंह द्वारा दायर इस्तगासे की सुनवाई के बाद जारी किया गया है । रामफल सिंह हरियाणा पुलिस के सेवानिवृत अधिकारी हैं और उन्होंने सभी प्रतिवादियों पर उसके बड़े भाई हरी सिंह निवासी गांव खरक जाटान की हत्या का गंभीर आरोप लगाया है। सभी आरोपियों को दिनांक 05/09/2018 के लिए तय की गई अगली तारीख पर पेश होने को कहा गया है।

इस नोटिस के जरिये 27 वर्ष से दफन ‘महम-कांड’ का भूत एक बार फिर कब्र से जिंदा होकर बाहर निकल आया है। ‘महम-कांड’ वह भूत है जो चौटाला परिवार का पीछा ही नहीं छोड़ रहा और बीच-बीच में चौटाला परिवार के लिए कोई न कोई नई मुसीबत बन कर सामने आ खड़ा होता रहा है। जज फखरूद्दीन की अदालत द्वारा जारी ताजा नोटिस के मामले की कड़िया भी इसी ‘महम-कांड’ से जुड़ी हुई हैं।

अपने वकील एसएस सांगवान की मार्फत इस्तगासा दायर करने वाले रामफल सिंह ने अदालत को बताया है कि वह फिलहाल रोहतक में रहते हैं। लेकिन महम कांड के समय वे अपने गांव खरक जाटान (जिला रोहतक) में रहते थे। इस हिंसा में उनके बड़े भाई हरिसिंह का मर्डर हो गया था। इस मर्डर का आरोप अभय सिंह चौटाला समेत सात लोगों पर लगाया गया है, जिनमें तीन पुलिस के सुपर कॉप रहे हैं।

गौरतलब है कि फरवरी 1990 में जब महम कांड हुआ था। तब अभय सिंह चौटाला के पिता चौधरी ओमप्रकाश चौटाला हरियाणा के मुख्यमंत्री पद पर विराजमान थे और उनके दादा चौधरी देवीलाल केंंद्र की वीपी सिंह सरकार में उप प्रधानमंत्री थे। वर्ष 1989 में केंद्र में जनता दल की सरकार बनने के बाद चौधरी देवीलाल ने हरियाणा के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और चौधरी ओमप्रकाश चौटाला को हरियाणा की बागडौर सौंप कर केंद्र में उप प्रधानमंत्री पद संभाल लिया था। 

उस समय चौधरी ओमप्रकाश चौटाला राज्य विधानसभा के सदस्य नहीं थे और मुख्यमंत्री बने रहने के लिए नियमानुसार छह माह के भीतर उनका विधानसभा का चुनाव जीतना अनिवार्य था। चौधरी देवीलाल ने लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद महम की अपनी विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था और यह सीट तब रिक्त पड़ी थी। चुनाव आयोग ने महम विधानसभा का उपचुनाव कराने के लिए 27 फरवरी 1990 का दिन तय कर दिया और चुनावी प्रक्रिया शुरू करने की घोषणा कर दी। 

ओमप्रकाश चौटाला ने चुनाव लड़ने के लिए महम से अपना नामांकन पत्र दाखिल कर दिया। लेकिन चौधरी देवीलाल के एक सिपहसालार आनंद सिंह दांगी ने, जो उस समय हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग के चेयरमैन थे। उन्होंने चेयरमैनी से इस्तीफा देकर महम से पंचायती उम्मीदवार के तौर पर पर्चा दाखिल कर दिया। इससे पूरे इलाके में जबरदस्त प्रतिस्पर्धा का माहौल बन गया। जब मतदान हुआ तो सभी पक्षों ने चुनाव में एक दूसरे पर धांधली करने के आरोप लगाये और राष्ट्रीय प्रैस ने इस धांधली को मुख्य मुद्दा बना दिया। 

फलस्वरूप चुनाव आयोग ने धांधली की शिकायतों के मद्देनजर आठ मतदान केंद्रों (बूथों) का चुनाव रद्द कर नए सिरे से 28 फरवरी 1990 को पुनर्मतदान कराने का एेलान कर दिया। जिन बूथों पर फिर से मतदान कराने का फैसला किया था। वे बूथ गांव बैंसी , चांदी , महम , भैणी महाराजपुर और खरैंटी में स्थित थे। पुर्नमतदान के दिन बूथों पर कब्जे करने को ले कर फिर से जबरदस्त हिंसा फैल गई और इस मौके पर हुई गोलीबारी में तकरीबन 10 लोग मारे गए। जिनमें याचिकाकर्ता रामफल का भाई हरी सिंह भी शामिल था।

अदालत में दायर इस्तगासे के मुताबिक याचिकाकर्ता रामफल सिंह 27 फरवरी 1990 को हुए मतदान के बाद शाम करीब छह बजे अपने परिवार और महेंद्र पुत्र भगवाना नाम के एक मेहमान के साथ अपने घर में बैठे हुए थे। उस समय हत्या का शिकार हुआ याचिकाकर्ता का बड़ा भाई हरी सिंह भी वहां मौजूद था। तभी वहां पंचायती उम्मीदवार आनंद सिंह डांगी और उनके बड़े भाई धर्मपाल भी वहां पहुंचे और उन्होंने हरी सिंह से अगले दिन सुबह होने वाले पुनर्मतदान के लिए प्रचार में मदद करने की अपील की। जिसे हरी सिंह ने स्वीकार कर लिया और वह तुरंत ही उनके साथ चल दिया।

इस्तगासे के मुताबिक अगले दिन सुबह 8 बजे खुद याचिकाकर्ता अपने भतीजे जोगेंद्र पुत्र हरी सिंह व गांव खरक जाटान निवासी महेंद्र पुत्र भगवाना के साथ गांव बैंसी के राजकीय कन्या हाई स्कूल के गेट पर पहुंचे। जहां पुर्नमतदान की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी। वहां उसे अपना बड़ा भाई हरी सिंह भी दिखाई दिया जो कि आनंद सिंह डांगी व धर्मपाल डांगी समेत काफी सारे लोगों के साथ स्कूल के गेट पर खड़ा था। तभी देखते ही देखते अचानक तीन चार वाहन स्कूल के गेट पर पहुंचे। 

वाहनों से प्रतिवादी नं. 2 शमशेर सिंह अहलावत, प्रतिवादी नं. 3 अभय सिंह चौटाला, प्रतिवादी नं. 6 भूपेंद्र सिंह निवासी दरियापुर तथा पुलिस की वर्दी व बिना वर्दी वाले कई लोग उतरे। सबके हाथों में आग्नेय शस्त्रास्त्र थे। वे सभी मतदान केंद्र की ओर बढ़ने लगे तो धर्मपाल डांगी ने उन्हें बूथ में प्रवेश न करने के लिए कहा। तब अभय सिंह चौटाला ने धर्मपाल डांगी को ललकारते हुए कहा कि “तुम्हारा अभी दिमाग ठीक करते हैं ।” यह कहते ही अभय सिंह ने अपने हथियार से धर्मपाल डांगी की तरफ फायर कर दिया।

लेकिन निशाना चूक गया और धर्मपाल डांगी के साथ खड़े गांव निंदाना निवासी दलबीर को गोली जा लगी और दलबीर वहीं सड़क पर पसर गया। इसके बाद शमशेर सिंह अहलावत ने गेट के आसपास खड़ी पब्लिक को निशाना बना कर फायर झौंक दिया। जोकि याचिकाकर्ता के भाई हरी सिंह को जाकर लगा। इसी बीच प्रतिवादियों सुरेश चंद्र , सुखदेव राज राणा , पप्पू , अजीत सिंह और उनके अन्य साथियों ने अंधाधुंध फॉयरिंग करना शुरू कर दिया। 

जिसके फलस्वरूप दस लोग मौके पर ही दम तोड़ गये तथा राजकुमार पुत्र रण सिंह बाल्मिकी निवासी खरक जाटान और काला पुत्र बनी सिंह झीमर निवासी गांव बैंसी बुरी तरह घायल हो गये और वहां मौजूद लोगों में भगदड़ मच गई और जिसे जहां जगह दिखाई दी, उधर ही भाग लिया। बाद में जब तमाम प्रतिवादी मौके से चले गये तो याचिकाकर्ता ने अपने भाई हरी सिंह को संभाला और एक वाहन का प्रबंध कर उसे इलाज के लिए मेडीकल कालेज रोहतक ले जाने हेतू चल पड़ा। किंतु लाखनमाजरा के पास पुलिस ने उन्हें रोक लिया और उन्हे आगे जाने की इजाजत नहीं दी । इस वजह से उसके भाई ने लाखन माजरा में ही दम तोड़ दिया।

याचिकाकर्ता का कहना है कि उसने 28 फरवरी 1990 को ही महम पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज कराने के लिए एक आवेदन दिया था। लेकिन पुलिस ने कहा कि पुलिस खुद शीघ्र ही कानूनी कार्रवाई शुरू करेगी। पुलिस ने अब तक भी किसी आरोपी के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया। आखिर दो तीन दिन बाद पता लगा कि पुलिस ने दिनांक 01/03/90 को एक एफआईआर नं. 76/90 दर्ज की है। लेकिन असल अपराधियों के खिलाफ आज तक भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। 

पुलिस ने हरी सिंह का पोस्टमार्टम तक नहीं होने दिया और खुद ही उसका अंतिम संस्कार कर डाला। इस्तगासा में कहा गया है कि प्रतिवादियों ने भारतीय दंड संहिता की धाराओं 302, 148 , 149 , 201 व 34 के तहत आपराधिक कृत्य किया है। अत: उन्हें इन धाराओं में निहित प्रावधानों के तहत दंडित किया जाना चाहिये।  


 

Rakhi Yadav