रोचक: ऐलनाबाद उप चुनाव में चरितार्थ हो रही अब ''आया राम गया राम'' वाली कहावत

10/12/2021 7:50:03 PM

ऐलनाबाद (सुरेंद्र सरदाना): भारतीय इतिहास में दल बदलना कोई नई बात नहीं है, बल्कि दल बदलने के सिद्धांत का प्रतिपादन देश में हुए चौथे आम चुनाव के बाद से ही शुरू हो गया था। ऐसे में वर्ष 1985 में देश के 52वें संशोधन में दलबदल विरोधी कानून भी बना है, जिसमें अनेकों खामियां हैं। दलबदल विरोधी कानून इसलिए बनाया गया कि कोई भी राजनेता सत्तालोलुपता में निजी स्वार्थ को लेकर दल बदल कर सरकार गिराने का काम न कर सके। इसकी मिसाल 70 के दशक में देखने को मिली जब कोई सरकार गिरी तो यह जुमला 'आया राम गया राम' के नाम से खूब प्रचलित हुआ।

अब 'आया राम गया राम' वाली कहावत ऐलनाबाद उप चुनाव में चरितार्थ होती नजर आ रही है। विधानसभा चुनाव में कल तक जो पवन बेनीवाल भाजपा की टिकट पर अपनी किस्मत आजमा चुके हैं और कांग्रेस को पानी पी-पी कर कोसते रहे हैं अब वही पवन बेनीवाल कांग्रेस की टिकट पर शामिल होकर ऐलनाबाद उपचुनाव लडऩे जा रहे हैं और कांग्रेस का महिमामंडन करते हुए भाजपा को गलत बता रहे हैं।

इसी प्रकार, अपनी पार्टी हलोपा का परित्याग कर गोविंद कांडा भाजपा-जजपा की सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं कभी कांग्रेसी राज में मंत्री रहे जगदीश नेहरा भी समय बदलने पर सत्तारूढ़ भाजपा के साथ हो लिए, लेकिन किसान आंदोलन की खिलाफत की आग में जल रही भाजपा को भी छोड़कर वह दोबारा कांग्रेस में शामिल हो गए। 

वर्ष 2014 में ऐलनाबाद विधानसभा से कांग्रेस की टिकट से चुनाव लडऩे वाले रमेश भादू ने सोमवार को कांग्रेस को अलविदा कहते हुए मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की मौजूदगी में भाजपा से अपना नाता जोड़ लिया। वहीं चार बार विधानसभा चुनाव लडऩे वाले भरत सिंह बेनीवाल नाराज होकर घर बैठे हैं और अनुमान है कि वह भी कांग्रेस को अलविदा कह दें, लेकिन भरत सिंह द्वारा इसका निर्णय लेना अभी बाकी है।

अलबत्ता, इस प्रकार का दलबदल लोकतंत्र में सार्थक नहीं है। सरल शब्दों में यह कहा जा सकता है कि नैतिकता के तौर पर एक राजनेता तब गलत नहीं होता जब किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ता है और अन्य पार्टी का विरोधी बनता है, बल्कि वह गलत तब होता है जब वह अपनी पार्टी को छोड़कर उस पार्टी के साथ जुड़ जाता है, जिसका वह पहले से विरोधी रहा हो। 

राजनेताओं के इस दांव-पेंच में वह मतदाता और कार्यकर्ता पिसते हैं जो उन नेताओं के साथ जुड़े होते हैं। ऐसे में जनता को इन राजनेताओं की विचारधारा को समझने का आवश्यकता है। इसलिए समय की मांग है कि दलबदल विरोधी कानून में बदलाब लाकर इस पर पूर्ण रूप से पाबंदी लगाई जाए ताकि सत्तालोलुपता के चलते कोई भी राजनेता अपनी पार्टी न बदल सके।
 

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Content Writer

Shivam