आंदोलन के लिए खड़ी फसल उजाडऩे से खड़े हुए सवाल!

punjabkesari.in Saturday, Feb 27, 2021 - 08:58 AM (IST)

चंडीगढ़ (संजय अरोड़ा) : किसान के सभी अरमान उसकी फसल पर टिके होते हैं और जब खेतों में फसल लहलहाती दिखाई देती है तो उसी तरह किसान के सपनों को भी पंख लग जाते हैं। अपनी ख्वाहिशों के पसीने से सींच कर तैयार होने वाली फसल को ही जब किसान रौंदने में आ जाए तो जहन में कई सवालों का जन्म लेना लाजिमी है। इन दिनों किसान आंदोलन के दौरान कुछ किसानों द्वारा गेहूं की फसल को नष्ट करना और किसान नेता राकेश टिकैत की ओर से फसलों को जलाने की बात कहना भी सवालों के चक्रव्यूह में है। यह बात दिगर है कि किसान इन दिनों केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ व अपनी खेती को बचाने के मकसद से पिछले तीन माह से दिल्ली की सीमाओं पर बैठा है लेकिन किसान जब खेतों में खड़ी अपनी फसल को खुद तबाह करने पर उतारु हो जाए तो यह समझना मुश्किल हो जाता है कि वास्तव में किसान खेती बचाने की दिशा में चल रहा है या उनका आंदोलन किसी भटकाव की ओर चल पड़ा है। 

उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले करनाल के एक गांव में किसान साजिद खान ने अपनी 5 एकड़ में खड़ी फसल पर ट्रैक्टर चला दिया। हरियाणा में इस तरह की दो-तीन घटनाएं सामने आ चुकी हैं। किसान आंदोलन का एक बड़ा चेहरा बने राकेश टिकैत ने कुछ दिन पहले हिसार के बालसमंद में हुई किसान महापंचायत में खड़ी फसल की कुर्बानी देने की बात कह दी थी। टिकैत ने कहा था कि सरकार भ्रम में न रहे कि किसान कटाई आदि के लिए वापस चले जाएंगे, बल्कि किसान अपने खुद के खाने के लिए गेहूं को छोड़ कर शेष खड़ी फसल को आग भी लगा देंगे मगर आंदोलन से नहीं हटेंगे। टिकैत के इस बयान का असर तो नजर आया मगर इसके साथ ही किसान नेताओं में भी इस बयान को लेकर आपस में तालमेल नहीं दिखा।   

दरअसल किसान अपनी जमीन को मां समझता है और फसल को अपनी औलाद। ऐसे में कोई भी किसान जिस फसल को वो अपने बच्चों की तरह पालता है, उसे बड़ा करता है। किसान उसकी कुर्बानी कैसे ले सकता है? किसान उस फसल को कैसे आग लगा सकता है? इसी तरह के कई प्रश्न आम लोगों के साथ साथ किसानों के जहन में भी है। ऐसे में किसानों की ओर से टिकैत के बयान के बाद कुछ जगहों पर खड़ी फसल की बुआई करने को राजनेताओं व किसान नेताओं ने भी अनुचित कदम बताया। 16 फरवरी को इंडियन नैशनल लोकदल के प्रधान महासचिव अभय सिंह चौटाला ने ट्विट करते हुए लिखा कि ‘अपनी आत्मा पर इस कद्र ट्रैक्टर ना चलाए अन्नदाता! मैं आपकी मजबूरी और दर्द को भली-भांति समझता हूं, मेरी किसानों से विनती है कि वो अपनी खड़ी फसल को नष्ट करने की बजाय उसका स्टॉक करें और ये काले कानून वापिस होने के बाद ही बेचें।’ अभय ने इस पोस्ट के साथ किसान की ओर से फसल पर चलाए जा रहे ट्रैक्टर से संबंधित वीडियो भी पोस्ट किया। उधर, किसान अप्रैल में शुरू होने फसली सीजन को लेकर भी नई रणनीति बनाने में जुट गए हैं। 

आंदोलन में 3 राज्यों की है सक्रियता
गौरतलब है कि हरियाणा, पंजाब और उत्तरप्रदेश तीनों ही देश के प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्य हैं और किसान आंदोलन में इस समय इन तीन राज्यों के ही किसान सक्रिय भूमिका अदा कर रहे हैं। अप्रैल माह में गेहूं की कटाई का सीजन शुरू हो जाता है।करीब डेढ़ माह बाद यह सिलसिला शुरू होगा। बड़े किसान नेता के रूप में उभरे टिकैत को यही लगा कि कहीं अप्रैल में गेहूं कटाई से आंदोलन बेअसर न हो जाए, इसलिए उन्होंने गेहूं की फसल को आग लगाने जैसा विवादास्पद बयान दे दिया। भले ही इसके पीछे उनकी सोच कुछ और ही रही हो। वहीं पंजाब के किसान नेताओं ने इस तरह का बयान देने की बजाय अब तक आंदोलन में एक प्रभावी रणनीति बनाए रखी है। पंजाब के किसान नेता लगातार किसानों से आह्वान कर रहे हैं कि फसली सीजन के चलते किसान अब अपने-अपने गांवों में रोटेशन प्रणाली को अपनाएं। एक जत्था आता है, वो कुछ दिन आंदोलन में बिताए और फिर उसके बाद दूसरा जत्था यहां आए।

महापंचायतें और राजनीति
28 जनवरी के बाद राकेश टिकैत आंदोलन का एक बड़ा चेहरा बन गए। इसके बाद हरियाणा में करीब 10 महापंचायतों का आयोजन हुआ। कंडेला, महम, सांपला, बहादुरगढ़, इंद्री, हिसार के  बालसमंद आदि में महापंचायतों का आयोजन हुआ। आंदोलन ने राजनीतिक रंग लेना भी शुरू किया। आंसू प्रकरण के बाद राष्ट्रीय लोकदल के नेता जयंत चौधरी गाजीपुर बॉर्डर पर पहुंचे। इनैलो नेता अभय सिंह चौटाला, राज्यसभा सदस्य दीपेंद्र हुड्डा, निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू सहित कई नेताओं ने मंच शेयर किया। 

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Content Writer

Manisha rana

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