इनेलो विधायक अभय चौटाला का इस्तीफा स्वीकार होना संभव नहीं: राम नारायण

1/12/2021 11:27:01 PM

चंडीगढ़ (धरणी): इनेलो के प्रधान महासचिव एवं ऐलनाबाद के विधायक अभय सिंह चौटाला ने किसान आंदोलन के समर्थन व कृषि कानूनों के विरोध में अपना इस्तीफा हरियाणा विधानसभा के स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता को भेजा है, लेकिन उनके इस इस्तीफे पर बहस शुरु हो गई है। संविधान विशेषज्ञ व विधानसभा के कानूनों के जानकार हरियाणा विधानसभा के पूर्व अत्तिरिक्त सचिव व पंजाब विधानसभा के पूर्व एडवाइजर राम नारायण यादव ने कहा कि अभय चौटाला का इस्तीफा स्वीकार होना संभव नहीं। इसे इस्तीफा नहीं कहा जा सकता। अभय चौटाला ने अध्यक्ष को इस्तीफा मानने के लिए कहा है, इसलिए इसमें इस्तीफा स्वीकार करने जैसी कोई बात नहीं है। राम नारायण यादव से हुई बातचीत के प्रमुख अंश-

प्रश्न- 11 जनवरी को अभय चोटाला ने कृषि कानूनों के विषय उठाते हुए अध्यक्ष को एक पत्र लिखकर कहा है कि 26 जनवरी तक किसानों की समस्या का हल नहीं निकला तो इस पत्र को मेरा इस्तीफा समझा जाए। क्या ये उनका इस्तीफा माना जा सकता है?
उत्तर- इस्तीफा जो होता है और उसे स्वीकार या अस्वीकार किया जाता है। इसे इस्तीफा माना नहीं जाता।



प्रश्न- इस्तीफा किसे माना जाता है, उसकी क्या शर्तें हैं?
उत्तर- यह स्पष्ट शब्दों में बिना किसी कंडिशन के विधान सभा के नियम 58 के अनुसार होता है तथा स्वेच्छा से व बिना दबाब के दिया जाता है।

प्रश्न- अध्यक्ष इस्तीफा स्वीकार करने के लिए क्या प्रणाली अपनाते हैं?
उतर- प्रथम अध्यक्ष देखते हैं कि इस्तीफा विधानसभा के नियम अनुसार है और यदि नियम अनुसार है तथा सदस्य स्वयं उपस्थित होकर इस्तीफा अध्यक्ष को सौंपते हैं तो वह स्वीकार हो जाता है। दूसरा, यदि इस्तीफा नियम अनुसार है और वह डाक या अन्य व्यक्ति के माध्यम से भेजा गया है तो अध्यक्ष अपनी संतुष्टि करते हैं कि इस्तीफा अनुच्छेद 190(3)(बी) के अनुसार स्वेच्छा व बिना किसी दबाव में दिया गया है। इस संतुष्टि के बाद ही इस्तीफे पर निर्णय लिया जाता है कि उसे स्वीकार करें या अस्वीकार।

प्रश्न- यदि कंडीशन के साथ इस्तीफा है तो उसका नतीजा क्या होगा?
उत्तर- कंडीशन की स्थिति में यदि इस्तीफा सही है और अध्यक्ष की संतुष्टि है तो वह कंडीशन को हटाकर इस्तीफा स्वीकार कर सकते हैं।



प्रश्न- इस पत्र को क्या समझा जाए, क्या ये मंजूर हो सकता है?
उत्तर- अभय चौटाला ने इसे इस्तीफा नहीं कहा, उन्होंने अध्यक्ष को, जैसा आपने बताया है, इसे इस्तीफा मानने के लिए कहा है। इसलिए इसमें इस्तीफा स्वीकार करने जैसी कोई बात नहीं है।

प्रश्न- अंत में क्या इस्तीफा स्वीकार करना आवश्यक होता है?
उत्तर- वर्ष 1974 से पहले इस्तीफा देने पर स्वीकार करना आवश्यक नहीं था। तब तक इस्तीफा देना ही काफी था। 1974 में 33वें संविधान संशोधन के बाद से इस्तीफा स्वीकार या अस्वीकार करना आवश्यक है।

प्रश्न- एक और प्रश्न, क्या अध्यक्ष द्वारा इस्तीफा स्वीकार या अस्वीकार करने को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है?
उत्तर- जी हां, उच्च न्यायालय में अध्यक्ष के ऐसे निर्णय को चुनौती दी जा सकती है।

vinod kumar