राव को भाजपा में मिलेगा भाव या फिर खाएंगे ‘ताव’

6/14/2018 11:50:56 AM

अम्बाला(वत्स, मीनू): अहीरवाल के निर्विवाद रूप में पहचान बना चुके केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह चुनावों के समय अक्सर खुद को अपनी ही पार्टी में विवादित बनाने का काम कर चुके हैं। हाल ही में अपनी ही पार्टी के सी.एम. के खिलाफ तल्ख तेवरों का इस्तेमाल कर चुके राव इंद्रजीत सिंह अब ‘जाटलैंड’ में बड़ी रैलियां करने की तैयारी में हैं। इसकी शुरूआत पूर्व सी.एम. भूपेंद्र सिंह हुड्डा का गढ़ माने जाने वाले झज्जर जिले से 15 जुलाई को की जाएगी। इसके बाद हिसार व दूसरे जाट बाहुल्य क्षेत्रों में रैलियां की जाएंगी। इन रैलियों में शायद ही भाजपा का कोई रोल नजर आए।

दक्षिणी हरियाणा के नेताओं को प्रदेश की राजनीति में खास महत्व नहीं मिला है। चौ. भजनलाल को छोड़कर कोई भी गैर जाट नेता पूरे 5 साल तक प्रदेश की सत्ता पर काबिज नहीं रह पाएं हैं। राव इंद्रजीत सिंह के पिता राव बिरेंद्र सिंह को भी एक बार सी.एम. बनने का मौका मिला था, लेकिन वे साढ़े 3 साल से ज्यादा सी.एम. पद पर नहीं रह सके थे। अहीरवाल क्षेत्र ऐसा क्षेत्र है जो प्रदेश में सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इस समय भी प्रदेश सरकार में इस क्षेत्र के 14 विधायक और मंत्री शामिल हैं। इनमें से अधिकांश विधायक राव इंद्रजीत सिंह के साथ हैं। उनके समर्थक विधायक उन्हें प्रदेश का सी.एम. देखना चाहते हैं, लेकिन भाजपा उन्हें सी.एम. बनाने के मूड में नहीं है। अभी ऐसे हालात नहीं हैं कि पार्टी खट्टर को सी.एम. पद से रिप्लेस करे

प्रदेश में हालात इस बार ऐसे बन रहे हैं कि राजनीतिक विश्लेषक भी अभी यह बात स्वीकार करने की स्थिति में नहीं हैं कि आने वाले समय में सरकार आखिर किसकी होगी। किसी को स्पष्ट बहुमत मिलने के सवाल पर भी राजनीतिक लोग चुप्पी साध लेते हैं। जाट आंदोलन भाजपा की बड़ी विफलता के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि खट्टर सरकार जाटों को खुश करने के लिए प्रयास कर रही है, लेकिन उससे गैर जाट वर्ग सरकार से नाराज हो रहा है। मोदी लहर को छोड़ दिया जाए तो जाट पहले भी कभी खुलकर भाजपा के साथ नहीं थे। जाट आरक्षण आंदोलन के बाद जाट अपने ही जाट नेताओं से नाराज चल रहे हैं। अभी जाट आंदोलन के  दौरान दर्ज किए गए केसों पर कोर्ट में जाटों की पैरवी फिर से गैर जाटों को नाराज कर सकती है। प्रदेश के राजनीतिक समीकरण लगातार बदल रहे हैं। 

राव इंद्रजीत सिंह भले ही केंद्र में मंत्री हों, लेकिन प्रदेश भाजपा सरकार उन्हें कोई खास महत्व नहीं दे रही है। इंद्रजीत का राजनीतिक स्वभाव ऐसा है कि वह जब तक बर्दाश्त करते हैं, करते रहते हैं। जब मुंह खोलते हैं तो पूरे प्रदेश की राजनीति में भूचाल आ जाता है। कांग्रेस में रहते हुए गत लोकसभा चुनावों से पहले उन्होंने हुड्डा सरकार पर जमकर निशाना साधा था। 

जब वह कांग्रेस हाईकमान पर दबाव बनाने में नाकाम रहे तो भाजपा ज्वाइन कर ली। अहीरवाल की राजनीति में राव नरबीर सिंह उनके राजनीतिक विरोधी बने हुए हैं। इंद्रजीत को इस बात की कोई परवाह नहीं है। भाजपा सूत्रों के अनुसार गत दिनों गुरुग्राम में सी.एम. की ओर से इंद्रजीत की उपेक्षा उनके विरोधी खेमे का ही परिणाम था। इंद्रजीत ने खट्टर के खिलाफ पहली बार खुलकर शब्दबाण चलाए थे।

जाटलैंड में पैठ जमाने की तैयारी
इंद्रजीत समर्थकों के अनुसार अहीर मतदाताओं पर उनकी मजबूत पकड़ है। अब उन्हें जाटों को अपने पक्ष में करने का काम करना है। यह भी हो सकता है कि यह भाजपा हाईकमान की ही रणनीति का हिस्सा हो। भाजपा अगर जाट बैंक में मामूली सेंध लगाने में भी कामयाब होती है तो यह पार्टी के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकता है। सिक्के का दूसरा पहलू यह भी हो सकता है कि चुनावों से पहले इंद्रजीत अहीरवाल के साथ-साथ जाटलैंड में भी अपना प्रभाव साबित कर हाईकमान को यह संदेश देना चाहते हैं कि वह सिर्फ एक क्षेत्र विशेष तक ही सीमित नहीं हैं, पूरे हरियाणा में प्रभाव रखते हैं। झज्जर रैली अगर कामयाब होती है तो वह जल्द ही दूसरे जाट इलाकों में ऐसी रैलियां करेंगे। महेंद्रगढ़ की तर्ज पर इस रैली में शायद ही वह किसी भाजपा नेता को मंच पर बुलाने का काम करें।

Deepak Paul