कमियों को ताकत बना सुनीता ने छुआ आसमां, हाथ नहीं तो पैरों से जीत ली दुनिया

3/22/2018 9:58:00 AM

रोहतक(ब्यूरो): कठिन परिश्रम व जज्बे-जुनून के आगे किस्मत भी अपने घुटने टेक देती है और ऐसा ही कुछ कर दिखाया महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के मेघना हॉस्टल की वार्डन डा. सुनीता मल्हान ने। उन्होंने अपने दोनों हाथों को एक दुर्घटना में गंवाने व पति का साथ छूटने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और बुलंद हौसलों के साथ आगे बढ़ने का संकल्प लिया। इसी संकल्प के चलते पढ़ाई करते हुए पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त कर बन गई डा. सुनीता मल्हान।

दुर्घटना में गवाएं दोनों हाथ
डा. सुनीता मल्हान किसी पहचान की मोहताज नहीं, लेकिन उनकी सफलता के पीछे कितना संघर्ष है, यह कम लोग ही जानते हैं। शादी के बाद वर्ष 1987 में मात्र 21 वर्ष की आयु में ही एक दुर्घटना के दौरान उन्होंने अपने दोनों हाथों को गंवा दिया। सुनीता का कहना है कि भगवान ने हम सभी में असीम ताकत दी है। बस अंदर की आत्मा को जगाने की जरूरत है। हाथ नहीं तो क्या हुआ पैरों से दुनिया जीतनी है। हाथ न होना उनके लिए कोई बाधा नहीं बनी क्योंकि लिखने का काम वह अपने पैरों से करती है। यहां तक कि वर्ष 1989 में उन्होंने एम.फिल की और वर्ष 1990 में बतौर लेक्चरार नौकरी की। बाद में उसी वर्ष वार्डन के तौर पर नियुक्त हो गई। 

प्रतियोगिताओं में जीते मेडल 
मूल रूप से झज्जर जिले के सुबाना गांव की रहने वाली डा. सुनीता मल्हान ने अनेक उपलब्धियों हासिल की। उन्होंने इगलैंड पैरा ओलिम्पिक में 100 व 200 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीता और 2013 में राय तैराकी प्रतियोगिता में रजत पदक जीता। वहीं, 2012 में 14वीं वरिष्ठ पैरा ओलिम्पिक राष्ट्रीय खेलों में रेस में स्वर्ण और 400 मीटर दौड़ में रजत पदक हासिल किया। वर्ष 1997 में विश्वविद्यालय की कर्मचारी खेल प्रतियोगिता से पदार्पण किया। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वर्ष 2006 में मलेशिया में हुई एशियन गेम्स में 1500 मीटर में कांस्य पदक जीता। वर्ष 2013 में कुछ नया कर गुजरने की चाह ने सुनीता मल्हान के दिल में तैराकी सीखने का जज्बा जगाया। हालांकि बीमारी के चलते वे वर्ष 2014 में तो तैराकी प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले पाई, मगर उसके बाद बुलंद हौसलों के साथ वह स्वीमिंग पूल में उतरी। सुनीता मल्हान ने फरीदाबाद में आयोजित राज्य पैरा एथलैटिक्स चैम्पियनशिप में 100 व 200 मीटर रेस में रजत पदक हासिल किया।

यह हैं खेल उपलब्धियां
* ओपन इंटरनैशनल एथलैटिक्स चैम्पियनशिप यू.के. जून 2005, 2 स्वर्ण पदक। 
* नवम्बर 2006 में मलेशिया एशियाई खेलों में एक कांस्य पदक। 
* फरवरी 2005 में 7वीं सीनियर राष्ट्रीय पैरालिम्पिक में दो स्वर्ण पदक, एक रजत पदक। 
* फरवरी 2006 में बेंगलुरु में विकलांगों के लिए 8वीं सीनियर राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में एक स्वर्ण पदक, एक रजत पदक, 2 कांस्य।
* फरवरी 2007 बेंगलुरु में 9वीं सीनियर राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में दो स्वर्ण पदक, एक रजत पदक, एक कांस्य।
* फरवरी 2008 में फरीदाबाद में 10वीं सीनियर नैशनल पैरा एथलैटिक्स चैम्पियनशिप में एक स्वर्ण पदक।
* 11वीं सीनियर नैशनल पैरा एथलैटिक्स चैम्पियनशिप, जयपुर फरवरी 2009 में एक स्वर्ण पदक, एक रजत पदक, एक कांस्य।
*  पंचकूला में आयोजित 5वेंं राष्ट्रीय खेल सितम्बर 2011 में एक कांस्य।  
* 13वीं पैरा पुष्ट राष्ट्रीय चैम्पियनशिप खेल बेंगलुरु में 2 रजत पदक।  
*  मार्च 2015 में 15वीं सीनियर राष्ट्रीय एथलैटिक चैम्पियनशिप गाजियाबाद में एक स्वर्ण पदक, एक रजत पदक। 

इन विशेष पुरस्कारों व सम्मान से हुई सम्मानित 
* राष्ट्रीय पुरस्कार - राष्ट्रपति द्वारा स्त्री शक्ति के लिए 8 मार्च 2010 को रानी लक्ष्मी बाई पुरस्कार। 
* राष्ट्रपति द्वारा 3 दिसम्बर 2009 को सबसे अच्छा कर्मचारी के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार। 
*  सर्वश्रेष्ठ विकलांग कर्मचारी का प्रथम पुरस्कार सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग 2008-09। 
* फरवरी 2011 को खेल एवं युवा कार्यक्रम विभाग हरियाणा द्वारा भीम पुरस्कार।
* 2007 में देश के लिए सम्मान लाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर मुख्यमंत्री हरियाणा द्वारा सम्मानित।
* 26 जनवरी 2007 को कृषि मंत्री, हरियाणा द्वारा प्रशस्ति प्रमाण पत्र से सम्मानित।
* 15 अगस्त 2005 को आयकर मंत्री, हरियाणा द्वारा प्रशस्ति पत्र से सम्मानित।
* 22 फरवरी 1999 को समाज कल्याण विभाग द्वारा सर्वश्रेष्ठ कर्मचारी का पुरस्कार। 
* अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर 8 मार्च 2015 को यूथ इंडिया एसोसिएशन द्वारा महिला पावर अवार्ड।
* हरियाणा वैल्फेयर सोसायटी, हिसार द्वारा हरियाणा गौरव पुरस्कार से सम्मानित
 

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