धारा 498ए का हो रहा दुरुपयोग, महिलाएं कर रही पुरुषों का उत्पीडऩ, अलग कानून की मांग

1/9/2021 4:11:34 PM

ऐलनाबाद (सुरेन्द्र सरदाना): भारत को हमेशा पुरुष प्रधान देश माना जाता रहा है। महिलाओं को समानता का अधिकार प्रदान करने के लिए व पुरुष, महिला का किसी भी प्रकार से शोषण न करे इसलिए भारत के संविधान में महिलाओं के लिए अलग से विशेष कानून बनाए गए हैं। इसी कड़ी में महिलाओं के लिए आईपीसी की धारा 498ए के तहत भी महिलाओं को विशेष अधिकार प्रदत्त किए गए हैं। लेकिन महिलाओं में कानूनी पहलुओं के जागरूकता के अभाव में वह अपने मामलों में झूठे आरोपों और झूठी बातों का समावेश करती हैं और कोर्ट में केस हार जाती हैं। इससे न केवल धारा 498ए का दुरुपयोग होता है बल्कि विधायिका का आशय भी विफल होता नजर आता है।

उक्त शब्द एडवोकेट जगतार सिंह रंधावा ने महिला संबंधी मामलों में तुलनात्मक रूप से दोषसिद्धि कम होने को लेकर कहे। डवोकेट रंधावा ने कहा कि महिलाओं द्वारा न्यायालयों में दायर विभिन्न मामलों में महिलाएं प्राय: अपने केस हार जाती है क्योंकि जब महिलाएं अपने किसी प्रताडऩा सम्बन्धी मामले को कोर्ट में या पुलिस के समक्ष प्रस्तुत करती हैं, तो वह कानूनी अनभिज्ञता के चलते या सही कानूनी सलाह न मिलने के कारण या अपने मामले को वास्तविकता से अधिक गम्भीर दिखाने और संगीन बनाने के लिए बहुत सी झूठी बातों या आरोपों को अपने मामले से जोड़ देती हैं। जिस वजह से यदि मामले में कोई थोड़ी बहुत सच्चाई भी हो तो वह भी झूठी लगने लग जाती है और वे अपना केस अपनी गलती से ही हार जाती है।

उन्होंने बताया कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारतीय दण्ड सहिंता की धारा 498ए और डीवी एक्ट का व्यापक स्तर पर दुरुपयोग हो रहा है। यह आम देखने में आता है कि जब कोई महिला अपने पति के विरुद्ध भारतीय दण्ड सहिंता की धारा 498ए और डीवी एक्ट आदि के तहत मामला दर्ज करवाने का प्रयास करती है तो वह अपने मामले में बहुत सारी ऐसी झूठी व बेमतलब की बातें अपनी शिकायत में लिखवा देती हैं, जोकि वास्तव में घटित ही नहीं होती है या उनका धारा 498ए और डीवी एक्ट आदि के साथ कोई मतलब नहीं होता है। 



रंधावा ने बताया कि अनेकों बातें ऐसी होती हैं जो कि क्रूरता की श्रेणी में ही नहीं आती है। जब भी किसी महिला द्वारा अपने पति और पति के परिवार के सदस्यों को ब्लैकमेल करने के इरादे से या किसी अन्य कारण से उसके खिलाफ कोई झूठी बातें अपनी शिकायत में लिखवाई जाती है और उन झूठी बातों के आधार पर ट्रायल चलता है तो यही देखने में आता है कि ट्रायल के दौरान झूठी बातों को सिद्ध करना बहुत मुश्किल होता है। जिन मामलों में आधारहीन झूठी बातों का अंबार होता है वहां पर शिकायतकर्ता को मुंह की खानी पड़ती है और इसका नुकसान शिकायतकर्ता महिला को ही उठाना पड़ता है। 

इसलिए यदि कोई महिला वास्तव में ही पीड़ित है तो उसे हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि जब भी वह कोई मामला प्रस्तुत कर रही हो तो उसके अंदर कोई भी बात बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने के लिए अपने मामले को अधिक संगीन बनाने के लिए उसमें झूठी बातें नहीं लिखनी या लिखवानी चाहिए, क्योंकि झूठी बातों को साबित करना बहुत मुश्किल होता है।

एडवोकेट रंधावा ने कहा कि बेशक यह कानून नारी शोषण रोकने के लिए बना था लेकिन इस एक्ट की आड़ में पुरुषों का शोषण किया जा रहा है जो कि सर्वे रिपोर्ट में भी महिलाओं द्वारा पुरुषों के खिलाफ 85 प्रतिशत झूठे केसों का होना बताया है। इस बात को लेकर उन्होंने देश के कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद शर्मा को भी एक पत्र लिख कर मांग की है कि जिस प्रकार महिला शोषण के लिए 498 सेक्शन है ठीक इसी प्रकार एक ऐसा कानून भी होना चहिए जिसमें अगर महिला किसी पुरुष का शोषण करे तो पुरुष भी न्यायालय का दरवाजा खटखटा सके।

Shivam