सिरसा लोकसभाः दुग्गल की टिकट काट तंवर पर भाजपा ने क्यों लगाया दांव ? क्या कहते हैं समीकरण

3/18/2024 8:26:20 PM

डेस्क(सौरभ पाल): हरियाणा में लोकसभा चुनाव की बिसात बिछने लगी है। चुनावी दंगल में तमाम राजनीतिक दलों ने अपने-अपने पहलवान उतारने शुरु कर दिए हैं। भाजपा ने प्रदेश की 6 लोकसभा सीटों पर अपने प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया है। भाजपा प्रत्याशियों की लिस्ट में अशोक तंवर का भी नाम शामिल है। जिन्हें सिरसा लोकसभा क्षेत्र से मैदान में उतारा गया है। भाजपा ने सिरसा लोकसभा से मौजूदा सांसद सुनीता दुग्गल की टिकट काटकर तंवर को मैदान में उतारा है। ऐसे में तंवर के लिए सिरसा में जीत का सिलसिला बरकरार रखने की बड़ी चुनौती है।

दरअसल हरियाणा में लोकसभा चुनाव से पहले बीते कुछ दिनों में बड़े सियासी उलटफेर देखने को मिले। जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की करीबी सुनीता दुग्गल का सिरसा आरक्षित लोकसभा सीट से टिकट कटना भी शामिल है। अब उनकी जगह फायर ब्रांड दलित नेता अशोक तंवर को भाजपा ने टिकट दिया है। हालांकि तंवर के भाजपा में शामिल होने से पहले सुनीता दुग्गल का टिकट सिरसा से फिक्स माना जा रहा था। ऐसा इसलिए क्योंकि सुनीता दुग्गल ने सिरसा में भाजपा की बंजर हो चुकी राजनैतिक जमीन पर कमल खिला दिया था। इससे पहले भाजपा कई प्रयासों के बाद भी असफल रही थी।

दुग्गल के इत्तर तवंर को इसलिए मिली वारियता

52 दिन पहले आम आदमी पार्टी को छोड़कर भाजपा में शामिल हुए तंवर के टिकट मिलने का बड़ा कारण क्षेत्र में उनकी सक्रियता और अनुसूचित जाति का बड़ा चेहरा होना है। इसके अलावा तंवर का जुझारूपन और हार के बावजूद सिरसा क्षेत्र में सक्रिय बने रहना भी टिकट का आधार माना जा रहा है। तंवर 2009 में इनेलो का गढ़ माने जाने वाले सिरसा में कांग्रेस की टिकट पर इनेलो प्रत्यासी को हराकर पहली बार सांसद बने थे। इसके बाद से ही उन्होंने सिरसा को अपनी कर्मभूमि बना ली। पिछले 15 वर्षों से बिना किसी पद के तंवर सिरसा में सक्रिय हैं। हालांकि इसके बाद वह सिरसा से कभी नहीं जीत पाए। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने दो बार लगातार तंवर पर दांव लगाया, लेकिन तंवर जीत का परचम लहराने में नाकाम रहे। वैसे, 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा प्रत्याशी सुनीता दुग्गल को कड़ी टक्कर दी थी। भाजपा के पास अब तंवर एक मात्र ऐसे प्रत्यासी हैं जो सिरसा लोकसभा सीट पर भाजपा की जीत दोहरा सकते हैं।

दुग्गल के खिलाफ गईं ये बातें

2019 के लोकसभा चुनाव में पहली बार किस्मत आजमाते हुए सुनीता दुग्गल ने ना केवल अपनी पहली जीत हासिल की, बल्कि सिरसा लोकसभा में भाजपा के लिए हार का सूखा भी दुग्गल खत्म करने में कामयाब रहीं। पिछले 5 सालों तक सुनीता दुग्गल के मुताबिक वो अपने क्षेत्र में सक्रिय रहीं, जनता के सुख-दुख में शामिल रहीं, लेकिन किसान आंदोलन के दौरान सुनीता दुग्गल का जबरदस्त विरोध हुआ, जिसके बाद से उनकी लोकप्रियता घटती चली गई। सूत्रों की माने, तो सासंद सुनीता दुग्गल की जमीन पर सक्रियता कम थी। जिसके कारण जनता के साथ ही भाजपा कार्यकर्ताओं में भी नाराजगी थी, जो लंबे समय से सामने आ रही थी। इसलिए सिरसा लोकसभा पर बदलाव तय माना जा रहा था। ऐसे में तंवर के भाजपा में आने के बाद तो दुग्गल का टिकट कटना लगभग तय हो गया था।

अशोक तंवर का राजनीतिक इतिहास  

डॉ. अशोक तंवर का जन्म 12 फरवरी 1976 को झज्जर के गांव चिमनी में एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके पिता भारतीय सेना में रहे हैं।उन्होंने देश के प्रतिष्ठित संस्थान जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से इतिहास में एमए, एमफिल और पीएचडी की डिग्री हासिल की। साल 1999 में उन्हें एनएसयूआई का सचिव और साल 2003 में प्रधान बनाया गया। इसके बाद कांग्रेस पार्टी में अनेक पदों रहे। अशोक तंवर राहुल गांधी के बेहद करीबी नेताओं में से एक रहे हैं, लेकिन हरियाणा में बतौर कांग्रेस अध्यक्ष तंवर और पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बीच दरार पड़ने के चलते तंवर को कांग्रेस पार्टी छोड़नी पड़ी थी। 

हरियाणा में बड़ा दलित चेहरा हैं अशोक तंवर

हरियाणा में अशोक तंवर एक बड़ा दलित चेहारा बन चुके हैं। उनके पास संगठन एवं चुनाव प्रबंधन का लंबा अनुभव है। वे कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में कई अहम पदों पर काम कर चुके हैं। 2009 में वह कांग्रेस पार्टी में रहते हुए सिरसा से सांसद बने इसके बाद उन्होंने सिरसा में तीन चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं मिली। लंबे समय से राजनीति में सक्रिय होने के कारण उनका कई सीटों पर प्रभाव  है। एक असरकारक और ऊर्जावान नेता हैं। युवाओं सहित सभी वर्गों में उनकी प्रभावी पैठ है। 

वर्ष 2019 के आंकड़ों के अुनसार सिरसा में जातिगत स्थिति

  • साढ़े 7 लाख के करीब अनुसूचित जाति (मजहबी सिख, चमार, वाल्मीकि, धाणक व बाजीगर)
  • 7 लाख 25 हजार जाट समुदाय के लोग
  • 3 लाख 25 हजार जट सिख
  • 1 लाख 82 हजार पंजाबी समुदाय (खत्री, अरोड़ा, मेहता)
  • 1 लाख 11 हजार बनिया
  • 87 हजार कंबोज
  • 85 हजार ब्राह्मण
  • 55 हजार बिश्नोई
  • 48 हजार पिछड़ा वर्ग (कुम्हार, सैनी, अहीर, गुर्जर, खाती, सुनार)
  • 1 लाख 30 हजार अन्य (मुस्लिम, क्रिश्चियन, जैन आदि)

 

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Content Editor

Saurabh Pal