खट्टर सरकार के दावों की निकली हवा, यहां वर्षों से खिलाडिय़ों के लिए नहीं खरीदी गई खेल सामग्री

9/29/2020 9:56:58 AM

पलवल (बलराम गुप्ता): युवाओं को खेल के क्षेत्र में बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराने का दावा करने वाली सरकार ने पिछले कई सालों से उनके लिए खेल सामग्री तो दूर की बात उनके लिए खेल मैदान भी उपलब्ध नहीं करा पाई है और कहीं खेल मैदान उपलब्ध भी है तो वह खेलने लायक ही नहीं है। खिलाडिय़ों के लिए इससे ज्यादा निराशा की बात क्या होगी कि उनके पास मैदान में ढंग से अभ्यास करने के लिए संसाधन तक नहीं है।

ऐसा नहीं है कि यह हालात एकदम हुए है बल्कि जिले के खिलाडिय़ों के साथ यह परेशानी करीब कई साल से जारी है। खिलाड़ी कभी बिना संसाधनों के तो कभी किराए के संसाधनों से अभ्यास करने को मजबूर है। खुलकर व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाने से उन्हें अनुशासनहीनता का डर सताता है, लेकिन खिलाडिय़ों का यह दर्द तब और बढ़ जाता है जब नेता से लेकर अधिकारी वर्ग खिलाडिय़ों के प्रोत्साहन से जुड़े जुमले छोड़ते हुए दावा करते हैं कि उन्होंने खेलों में करोड़ों रुपए देकर जिले को सुपर पावर बना दिया है। हालांकि स्थानीय खेल विभाग की ओर से खिलाडिय़ों के खेल सामान की डिमांड निरंतर भेजी जाती है, लेकिन इंतजार है कि खत्म हो ही नहीं रहा है।

जिले के विभिन्न खेल केन्द्रों पर प्रतिदिन करीब दो हजार खिलाड़ी अभ्यास करते हैं। पलवल के गांव असावता के बड़ी तादाद में युवा खिलाडिय़ों ने सरकार की खेल नीति को कोसते हुए गांव के सरपंच पर खेल से सबंन्धित सामग्री उपलब्ध नहीं करवाने का आरोप लगाया है। इस बात को लेकर गांव के युवाओ ंमें सरपंच के प्रति काफी रोष व्याप्त है। युवाओं का कहना है कि उनके गांव से कई ऐसे युवा है कि जो विभिन्न खेलों में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मेडल हासिल कर चुके है। गांव में खेल से संबन्धित सामग्री व मैदान नहीं होने से उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इसकी शिकायत भी वो कई बार सरपंच से लेकर बड़े अधिकारियों से कर चुके है, लेकिन बावजूद इसके उनकी समस्या का समाधान नहीं हुआ है। 

ज्यादातर खिलाड़ी खुद खरीदते हैं सामान कुछ स्कूल एवं एनजीओ पर है निर्भर
मौजूदा समय में यह हालात है कि ज्यादातर खिलाड़ी खुद अपना सामान  लाते हैं, क्योंकि प्रतिदिन की खपत विभाग से पूरी नहीं होती। खेल के समय खिलाडिय़ों को ना तो सामान मिलता और ना ही खेल मैदान। हॉकी में ज्यादातर सामान के लिए एनजीओ एवं स्कूल पर निर्भर रहना पड़ता है। फुटबॉल में भी खिलाडिय़ों को अपने स्तर पर संसाधन उपलब्ध कराने की बात की जाती है। बास्केटबाल, कुश्ती, जिमनास्टिक व वालीबॉल में भी हालात बहुत ज्यादा सुखद नहीं है।

Isha