प्रदेश के दिग्गज नेताओं को मजबूत दुर्ग की तलाश

2/12/2019 10:16:29 AM

फरीदाबाद (गोयल): लोकसभा चुनावों के मद्देनजर हरियाणा के कई दिग्गज नेता जहां अपने राजनीतिक करियर को लेकर मजबूत दुर्ग की तलाश में हैं वहीं कई राजनीतिक दलों की भी हरियाणा के इन दिग्गज नेताओं पर नजर है। हरियाणा में कांग्रेस, भाजपा, इनैलो के अलावा 2 बड़े विकल्प जजपा-आप व बसपा-लोसुपा भी हैं। अपनी-अपनी पार्टियां से समय-समय पर अलग होकर दूसरी पार्टियां का दामन थामने वाले जहां करतार भड़ाना, अवतार भड़ाना अब नई पार्टी की तलाश में हैं वहीं गोपाल कांडा व विनोद शर्मा भी अपनी पार्टियां से हरियाणा में जड़ें न जमा पाने के कारण अब हरियाणा की बड़ी पार्टियां की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं। 

इतना ही नहीं बड़े राजनीतिक दल भी इन नेताओं पर नजर बनाए हुए हैं और किसी न किसी रूप में पार्टी के साथ जोडऩे की फिराक में हैं क्योंकि उक्त चारों नेताओं का न केवल अपना जनाधार है बल्कि राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी भी हैं। दिल्ली की राजनीति में उक्त नेताओं की चर्चाएं अब तेज हो गई हैं। अवतार भड़ाना की यदि बात करें तो अवतार भड़ाना उत्तर प्रदेश की 17वीं विधान सभा के सदस्य हैं। अवतार भड़ाना 1988-89 में हरियाणा के स्थानीय निकाय मंत्री रहे। 1991 में फरीदाबाद से कांगे्रस के सांसद बने। अवतार भड़ाना को जब 1998 में फरीदाबाद में लोकसभा के लिए कांग्रेस का टिकट नहीं मिला तो उन्होंने समाजवादी नेता चंद्रशेखर की पार्टी से चुनाव लड़ा। हालांकि 1999 में कांग्रेस ने उन्हें मेरठ लोकसभा क्षेत्र से लड़ाया, जहां भड़ानाा ने जीत दर्ज की। 2004 व 2009 में भड़ाना अपने गृह क्षेत्र फरीदाबाद से जीते। भड़ाना 2014 में कांग्रेस प्रत्याशी थे। वे भाजपा के कृष्णपाल गुर्जर से चुनाव हार गए थे। फिर वे हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले इनैलो में शामिल हुए और दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा में आ गए। अवतार सिंह भड़ाना ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव, 2017 में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के रूप में लड़ा और अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी लियाकत अली को 193 मतों से पराजित कर जीत दर्ज की। 

वहीं दूसरी ओर पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं अम्बाला शहर से 2 बार विधायक रहे विनोद शर्मा की वर्ष 2005 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सत्ता तक पहुंचाने में अहम भूमिका रही। उन्हें कांग्रेस सरकार में बिजली एवं कराधान मंत्री भी बनाया गया लेकिन अपने बेटे पर लगे आरोपों के बाद हुड्डा से उनकी नजदीकियां होने के बावजूद उन्होंने हुड्डा का साथ छोड़ते हुए कांग्रेस को अलविदा कह दिया। वर्ष 2014 में उन्होंने जन चेतना पार्टी का गठन किया और अपनी ही पार्टी के बैनर से चुनाव लड़ा लेकिन इस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। सूत्रों की मानें तो विनोद शर्मा जल्द ही राजनीति में कोई बड़ी घोषणा कर सकते हैं। 

वहीं अवतार भड़ाना के बड़े भाई करतार भड़ाना हरियाणा व उत्तर प्रदेश से 3 बार विधायक तथा हरियाणा में मंत्री रह चुके हैं। करतार सिंह भड़ाना गुर्जर समुदाय के बड़े नेता हैं और उनका प्रभाव हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हैं। वर्तमान परिदृश्य में करतार यू.पी. में अनफिट होकर हरियाणा में जमीन तलाश रहे हैं। करतार सिंह भड़ाना वर्ष 1996  में हरियाणा विकास पार्टी और भाजपा के गठबंधन के टिकट पर समालखा [पानीपत] से चुनाव जीते। इस गठबंधन की सरकार गिरने के बाद जब इनैलो नेता ओमप्रकाश चौटाला ने सरकार बनाई, तो वे उनके मंत्रिमंडल में सहकारिता मंत्री बने, फिर चौटाला की पार्टी से समालखा से ही चुनाव जीते और 2004 तक मंत्री रहे।  जब हरियाणा की राजनीतिक बिसात पर उनकीगोटी फिट नहीं बैठी तो उन्होंने यू.पी. का रुख कर लिया। 2004 में वे तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देकर दौसा [राजस्थान] में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े।

लोकसभा चुनाव हारने के बाद उन्होंने हरियाणा में सोहना विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें यहां भी सफलता नहीं मिली। उन्होंने 2009 में बसपा से फरीदाबाद के बडख़ल में चुनाव हारने पर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का दामन थामा। हालांकि यहां भी वह ज्यादा दिन नहीं टिके और इसके बाद वह रालोद नेता चौ.अजीत सिंह की गोद में बैठ गए। वे वर्ष 2012 में राष्ट्रीय लोकदल से खतौली से विधायक बने। इस दौरान उनका हैलीकॉप्टर से वोट मांगना चर्चा में रहा। वर्ष 2017 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वहीं गोपाल कांडा वर्ष 2009 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा जब हरियाणा के तख्त पर दोबारा काबिज हो गए हैं तो कांडा तुरंत हुड्डा के खेमे में शामिल हो गए। कांडा ने साल 2009 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान सिरसा से निर्दलीय चुनाव लड़कर आई.एन.एल.डी. प्रत्याशी को हराया था। कांडा ने चुनाव जीतकर कांग्रेस को समर्थन दिया था।

सरकार में कांडा के वजन का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता था कि निर्दलीय विधायक होने के बावजूद सरकार में उन्हें गृह जैसा अहम विभाग दिया गया था। उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशियों को कांग्रेस के पक्ष में लाकर सरकार बनाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। इसके लिए उन्हें गृह राज्य मंत्री पद भी दिया गया, लेकिन बाद में गीतिका आत्महत्या केस में कांडा का नाम आने पर न केवल उन्हें अपने पद से हाथ धोना पड़ा बल्कि जेल भी जाना पड़ा। इसके बाद हुड्डा सरकार से नाराज होकर उन्होंने समर्थन वापस ले लिया। मई 2014 में गोपाल कांडा ने हरियाणा लोकहित पार्टी का गठन किया। देखना यह होगा कि लोकसभा चुनावों में उक्त नेताओं के अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर जारी तलाश पूरी होती या नहीं। यह भी संभव है कि बड़े राजनीतिक दल इनमेें से कुछ नेताओं को विधानसभा के लिए लॉलीपॉप देकर अपने साथ ले आएं। 

Deepak Paul