पंजाब में पराली जलाने की 85 प्रतिशत घटनाएं हुई हैं जबकि हरियाणा में महज 15 प्रतिशत : डॉ. रविंद्र खैवाल

punjabkesari.in Tuesday, Nov 07, 2023 - 07:03 PM (IST)

चंडीगढ़ (चंद्रशेखर धरणी) : तेजी से बढ़ता प्रदूषण हर एक व्यक्ति के लिए परेशानी का सबब बना रहा है। दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में बढ़ते स्मॉग और आसमान से धरती की तरफ आते धुंए ने लोगों के लोगों का जीना मुहाल कर दिया है। प्रदूषण का मुख्य कारण पराली का जलाया जाना है। पराली जलाई जा रही है पंजाब और हरियाणा के खेतों में और पराली जलाने से निकलने वाले धुंएं ने दिल्ली-एनसीआर को गैस चैंबर में तबदील कर दिया है। पंजाब, दिल्ली और हरियाणा, तीनों ही प्रदेशों की सरकारें पराली के मुद्दे पर एक दूसरे पर दोषारोपण कर रही हैं, सुप्रीम कोर्ट तक को मामले में हस्तक्षेप करना पड रहा है, पंजाब सरकार को फटकार लगाई जा रही है और धुंए पर रोक लगाने के लिए सख्त नियम बनाने की चेतावनी तक दी जा रही है। क्या आपको जानकारी है कि आखिर इस स्मॉग के लिए असली जिम्मेदार कौन है, वो कौन सा सूबा है जहां पर पराली इतनी बड़ी मात्रा में जलाई जा रही है कि हालात इतने भयावह स्थिती तक पहुंच गए हैं, वह कौन सा सूबा है जहां के किसान लाख समझाने के बाद भी समझ नहीं पा रहे हैं और अपने साथ साथ अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए गढ्ढा खोद रहे हैं। सच्चाई यही है कि हरियाणा के किसान पिछले सालों की तुलना में काफी अधिक सजग व जागरूक हो चुके हैं जबकि पंजाब के किसान अभी भी पराली जलाने से बाज नहीं आ रहे हैं। सेटेलाईट तस्वीरों से मिल रही जानकारी को देखकर आप भी दांतों तले उंगली दबा लेंगे कि आखिर यह कैसी जागरूकता है जिसमें एक, दो या चार-पांच नहीं बल्कि 14 हजार से अधिक स्थानों पर पराली जलाई गई है जबकि हरियाणा में यह आंकडा महज 16 सौ स्थानों का है। आंकडे बोल रहे हैं कि पंजाब और हरियाणा में यदि आंकलन  किया जाए तब पंजाब में पराली जलाने की 85 प्रतिशत घटनाएं हुई हैं जबकि हरियाणा में महज 15 प्रतिशत घटनाएं ही सामने आई हैं। 

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पर्यावरण के तेजी से प्रदूषित होने को देखते हुए पर्यावरण से जुड़ी हुई तमाम संस्थाएं और वरिष्ठ वैज्ञानिक भी इस पर निगाह टिकाए हुए हैं, पर्यावरण क्यों, कहां से और कैसे प्रदूषित हो रहा है, इस पर खास नजर रखी जा रही है। हरियाणा और पंजाब में जलाई जा रही पराली को लेकर चंड़ीगढ़ पीजीआई के वरिष्ठ प्रोफेसर और देश के जाने माने पर्यावरणविद डाक्टर रविंद्र खैवाल ने एक विशेष रिपोर्ट तैयार की है। डा.खैवाल सेटेलाईट तस्वीरों के माध्यम से पराली जलाने की घटनाओं पर नजर टिकाए हुए हैं। उनका कहना है कि जिस भी स्थान पर पराली जलाई जाती है, उसे तुरंत काऊंट किया जाता है। ऐसे में पंजाब और हरियाणा में लगभग सभी स्थानों पर हुई पराली जलाने की घटनाओं का पूरा लेखा जोखा तैयार किया गया है। वे बताते हैं कि पंजाब और हरियाणा में कुल 17 हजार स्थानों पर पराली जलाई गई है। इसमें से 14 हजार से अधिक स्थानों पर पंजाब में यानि कि कुल 85 प्रतिशत और हरियाणा में महज 17 सौ स्थानों पर यह घटना सामने आई है। 

पराली जलाने में आई 67 प्रतिशत की गिरावट

डाक्टर रविंद्र ने एक और अहम बात का खुलासा भी किया है। साल 2019 से 2023 तक का आंकड़ा पेश करते हुए उन्होंने बताया कि साल 2019 में दोनों राज्यों में 45 हजार स्थानों पर पराली जलाई गई थी। साल 2020 में यह आंकड़ा बढ़कर 85 हजार तक पहुंचा था। साल 2021 में 90 हजार स्थानों पर पराली जलाई गई थी जिससे प्रदूषण का स्तर काफी ऊपर चला गया था और उसके बाद से सरकारों ने किसानों को पराली जलाने पर रोक लगाने के लिए जागरूक करना शुरु किया था। उन्होंने बताया कि सरकार द्वारा चलाए गए जागरूक्ता अभियानों का ही परिणाम है कि साल 2022 में यह आंकड़ा घटकर करीब 45 हजार तक पहुंचा था और इस साल अभी तक महज 17 हजार मामले सामने आए हैं जहां पर पराली जलाई गई है।

पंजाब में और जागरूक्ता की जरूरत

डॉ. रविंद्र खैवाल का कहना है कि सरकारों द्वारा चलाए गए अभियान के परिणाम स्वरूप लोग जागरुक हो रहे हैं। जागरुक होने वाले किसानों व जमींदारों में हरियाणा के किसान अधिक हैं जिन्होंने पराली जलाना लगभग बंद किया है और अब चंद हजार मामले सामने आ रहे हैं जबकि पंजाब के किसानों को अभी और सावधानी बरतने और जागरूक होने की जरूरत है।

इन बीमारियों का करना होगा सामना

डॉ. रविंद्र खैवाल के मुताबिक पराली से हनों वाले प्रदूषण के साथ दीपावली के दिनों में पटाखों से होने वाला प्रदूषण व वाहनों से निकलने वाला प्रदूषण, तीनों मिलकर अनेक प्रकार की गंभीर बीमारियों का कारण बन रहे हैं। ऐसे प्रदूषण से इंसान को जहां शरीर की बाहरी तरफ से बीमारियां जकड़ेंगी वहीं अंदर से भी बीमारियां लगेंगी। बाहरी तरफ से चमडी के रोग, आंखों के रोग, नजला-जुखाम और दमे जैसे रोग होंगे जबकि लंबे समय तक इसी प्रदूषण में रहने के कारण फेफडे, ह्रदय से संबंधित बीमारियां जकड़ सकती हैं। उनका कहना है कि लंबे समय तक चारों तरफ से धुंए में रहने के कारण व्यक्ति कैंसर जैसी गंभीर बीमारी की चपेट में भी आ सकता है।

18 से 20 नवंबर तक मिल सकती है राहत

डॉ. रविंद्र का कहना है कि पंजाब से दिल्ली की तरफ यानि उत्तर दिशा से दक्षिण की तरफ चलने वाली हवाओं के कारण पंजाब में जली पराली का धुंआ दिल्ली में इकट्ठा हो रहा है। दिल्ली की भौगोलिक स्थिती ऐसी है जिस कारण से धुंआ आगे नहीं जा पा रहा है और दिल्ली में गैस का चैंबर बनता है। उन्होंने कहा कि आगामी 18 से 20 तारीख के बीच बरसात होने की संभावना है जिसके बाद पानी के संपर्क में आकर प्रदूषण का धुंआ छंट सकता है। इसके बाद ही लोगों को कुछ राहत मिल पाएगी।

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Content Editor

Mohammad Kumail

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