अम्बाला के लोगों ने सुषमा के हाथों में उकेरी थीं राजनीति की लकीरें

8/7/2019 10:42:14 AM

अम्बाला (रीटा/सुमन): अम्बाला की बेटी व पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के आकस्मिक निधन से अम्बाला में देर रात शोक की लहर दौड़ गई। स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज, भाजपा जिलाध्यक्ष जगमोहन कुमार व शहर विधायक असीम गोयल ने सुषमा को एक महान नेत्री बताते हुए उनके निधन पर शोक जताया।

अम्बाला में जन्मी करीब 67 वर्षीय सुषमा यहां की गलियों में खेलकर बड़ी हुईं व अम्बाला छावनी के एस.डी. कालेज से स्नातक करने के बाद जय प्रकाश आंदोलन में सक्रिय हो गईं। सुषमा के हाथों में राजनीति की लकीर अम्बाला छावनी के लोगों ने उकेरी थी। वह 1977 व 1987 में 2 बार यहां से विधायक चुनी गईं और हरियाणा सरकार में वह सबसे कम उम्र की कैबिनेट मंत्री बनीं। वह 1998 में दिल्ली से विधानसभा चुनाव जीतीं और दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं। वह 7 बार सांसद भी चुनी गईं। केंद्र सरकार में कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों का कामकाज उन्होंने बखूबी निभाया। दिल्ली पहुंचने के बाद उनका राजनीतिक कद इस कद्र बढ़ा कि उनका नाम भावी प्रधानमंत्री की कतार में भी शामिल होने लगा था।

सुषमा के पिता हरदेव शर्मा आर.एस.एस. के बड़े नेता थे और सुषमा ने विद्यार्थी परिषद की नेत्री के नाते छात्र राजनीति से राजनीति की शुरूआत अम्बाला से की। बाद में उन्होंने पंजाब विश्व विद्यालय से वकालत की डिग्री ली और कुछ समय सुप्रीम कोर्ट में वकालत भी की। 1977 में जनता पार्टी के गठन के बाद उन्हें अम्बाला छावनी से पहली बार चुनाव लडऩे का मौका मिला। एक प्रखर वक्ता व मिलनसार होने के नाते वह अम्बाला के लोगों के दिल में छा गईं और अम्बाला के लोग उन्हें विधायक की बजाय अपनी बेटी मानने लगे।

दिल्ली जाने के बाद भी अम्बाला से कायम रहा रिश्ता
दिल्ली की राजनीति में जाने के बाद उनका अम्बाला आना-जाना कम जरूर हो गया लेकिन अम्बाला से उन्होंने अपना रिश्ता कायम रखा। दिल्ली रहकर भी वह अपने सांसद निधि कोष से अम्बाला के विकास के लिए धन देती रहीं। अम्बाला में डाक्टर की प्रैक्टिस कर रहे अपने भाई गुलशन शर्मा के पास रक्षाबंधन के मौके पर हर साल वह आने से कभी नहीं चूकती थीं। जब भी अम्बाला आईं, उन्होंने सबसे पहले यहां के लोगों से मुलाकात की और हमेशा कालका हलवाई से पूरी जरूरी खाती थी।

8 माह पहले आखिरी बार आई थीं अम्बाला
करीब 8 महीने पहले आखिरी बार वह अम्बाला आई थीं। अम्बाला छावनी के रैस्ट हाऊस में वह वह पार्टी के पुराने कार्यकत्र्ताओं से मिलीं और पुराने पत्रकारों को नाम लेकर संबोधित किया और उनका हालचाल पूछा। उस समय उनके चेहरे पर वही नूर, आवाज में मिठास और कड़कपन था। उस समय किसी को उम्मीद नहीं थी कि वह इतनी जल्दी अम्बाला के लोगों का साथ छोड़ देंगी। अम्बाला के लोगों को टी.वी. से जैसे ही उनके निधन की जानकारी मिली, उनकी आंखें नम हो गईं। भले ही अब वह हमारे बीच न रही हों लेकिन लंबे समय तक लोग उन्हें भुला नहीं पाएंगे।

Isha