1977 में मतदान का रिकार्ड अब तक नहीं टूटा

3/24/2019 10:54:22 AM

जींद (जसमेर): हरियाणा के मतदाताओं की चुनावी और राजनीतिक तासीर बेहद खास है। जब प्रदेश के मतदाता किसी को बनाने पर आते हैं तो रिकार्डतोड़ मतदान करते हंै। 1977 में प्रदेश की जनता ने जनता पार्टी को सत्ता सौंपने का मन बनाया तो प्रदेश में मतदान का ऐसा रिकार्ड कायम कर दिया जो 2014 तक कभी भी नहीं टूट पाया। 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजे रोष के दौरान हुए लोकसभा चुनाव में भी 1977 के मतदान का रिकार्ड नहीं टूट पाया।

इस दौरान भले ही निर्वाचन आयोग से लेकर जिला प्रशासन के स्तर पर मतदान को बढ़ाने के लिए जागरूकता अभियान चलाए गए लेकिन इस सबके बावजूद मतदान को लेकर 1977 में खींची गई लकीर को किसी भी चुनाव में पार नहीं किया जा सका। प्रदेश में 1967 में महज 3185295 मतदाताओं ने लोकसभा चुनाव में मतदान किया था। 2014 मेंं यह आंकड़ा 16097749 पर पहुंच गया। 1975 में देश में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लागू किया गया था।

आपातकाल के बाद 1977 में जब 6 साल बाद संसदीय चुनाव हुए तो हरियाणा की जनता ने रिकार्डतोड़ मतदान किया। 1977 में प्रदेश में 5766654 मतदाता थे। इनमें से 4224405 मतदाताओं ने मतदान किया था। तब मतदान का प्रतिशत 73.3 रहा था, जो प्रदेश का 1967 से 2014 तक हुए 16 संसदीय चुनावों का सबसे ज्यादा मतदान है। इससे ज्यादा मतदान न तो कभी पहले हुआ था और न ही बाद में हुआ। राजनीतिक जानकार इसकी वजह यह मान रहे हैं कि 1975 में लागू की गई एमरजैंसी के दौरान लाल कृष्ण अडवानी, अटल बिहारी वाजपेयी, मोरारजी देसाई, चौधरी देवीलाल, चौधरी चरण सिंह जैसे देश भर के तमाम विरोधी नेताओं को हरियाणा की जेलों में बंद किया गया था।

एमरजैंसी का सबसे ज्यादा असर हरियाणा में महसूस किया गया था और एमरजैंसी के बाद जब 1977 में संसदीय चुनाव हुए तो हरियाणा के मतदाताओं ने सबसे ज्यादा मतदान किया और यह एक रिकार्ड बन गया। बाद में हरियाणा की जेलों से रिहा हुए इन्हीं नेताओं में से मोरारजी देसाई 1977 में देश के प्रधानमंत्री बने तो अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री, चौधरी चरण सिंह गृह मंत्री और चौधरी देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। 1977 के इस रिकार्ड को 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजे रोष के दौरान हुए संसदीय चुनावों में भी नहीं तोड़ा जा सका। 1984 में प्रदेश में महज 64.8 प्रतिशत मतदान हुआ था। आंकड़ों से साफ है कि प्रदेश के मतदाता की राजनीतिक तासीर ऐसी है कि वह जब किसी की राजनीतिक गेम बनाने पर आता है, तब खुलकर मतदान करता है। यही तासीर दूसरे को राजनीतिक रूप से मटियामेट करने की वजह भी बनती है। 
 

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