हरियाणा के हर CM के कार्यकाल में हुई हिंसा, खट्टर सरकार के दामन पर 75 मौतों का दाग

12/30/2017 10:20:49 AM

चंडीगढ़(ब्यूरो): वैसे तो हरियाणा में हर मुख्यमंत्री के शासनकाल में लोग हिंसा के शिकार होते रहे हैं, पर अब तक सर्वाधिक आगजनी, जातीय भेदभाव व हिंसा के तहत 75 मौतें होने का दाग मनोहर लाल खट्टर सरकार के दामन पर लगा है। सर्वाधिक हिंसा इसी वर्ष 2017 में उस समय हुई जब पंचकूला में राम रहीम को सजा सुनाई गई। इसके बाद उपद्रवों में 40 लोगों की मौत हो गई। इसी प्रकार बीते साल जाट आरक्षण आंदोलन में 30 लोग मारे गए और सत्ता सम्भालने के पहले ही साल में संत रामपाल प्रकरण में 5 लोग हिंसक वारदात में मारे गए। 

इतिहास इस बात का साक्षी है कि हरियाणा व पंजाब ऐसे राज्य हैं जहां धार्मिक स्थलों के संचालकों का नाता राजनेताओं से रहा है। खासतौर पर सिरसा डेरे के गुरमीत सिंह के सान्निध्य में हरियाणा के राजनेता अधिक रहे। भाजपा सरकार पर यह भी आरोप लगे कि सरकार ने पंचकूला में हिंसक स्थिति से निपटने में देरी व नरमी बरती। उल्लेखनीय है कि पूर्व मुख्यमंत्री स्व. बंसी लाल ऐसे स्वयंभू डेरा संचालकों या कथित धर्म गुरुओं से ताल्लुक नहीं रखते थे और न ही वह ऐसे डेरों या उनके महंतों से प्रभावित मतों की चिंता करते थे लेकिन उनके बाद कांग्रेस सरकारों के मुखिया व मंत्री ऐसे बाबाओं की शरण में रहे हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि हिंसा केवल ऐसे डेरों से जुड़ी सियासत के चलते ही हुई। पूर्व मुख्यमंत्रियों बंसी लाल, भजन लाल व ओमप्रकाश चौटाला के शासनकाल में सर्वाधिक हिंसा किसान आंदोलनों के दौरान हुई और कई किसान अकाल मौत का शिकार हुए।

बंसीलाल कार्यकाल में रिवासा कांड का दाग आज तक नहीं धुला
बंसीलाल के कार्यकाल में भिवानी जिले के रिवासा कांड का दाग आज तक नहीं धुला। सतनाली व मंडियाली में पुलिस की गोली से 9 किसान मारे गए व कलायत उपमंडल के गांव कौलेखां में गोपी राम नामक किसान की मौत भी हिंसक घटना में हुई। प्रमुख किसान नेता फतेह सिंह फतवा के बारे में यह अफवाह फैली की पुलिस ने भिवानी में उन्हें तंदूर में जला दिया है जो झूठी निकली लेकिन कलायत में उपद्रव व छुटपुट हिंसात्मक घटनाएं हुईं। सहकारी संस्थाओं का रिकार्ड जलाया गया।

भजन लाल कार्यकाल में भी हुई हिंसक घटनाएं
भजन लाल के कार्यकाल में हिसार की अध्यापिका सुशीला की रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत के बाद उनके गृह जिले में जबरदस्त विरोध हुआ। इससे पहले 1982 में दादरी में महाबीर सिंह, 1984 में सिसाए में रूपचंद नैन, 7 जनवरी 1993 को निसिंग गोलीकांड में मामचंद और लखपत नामक किसान पुलिस की गोली से मारे गए। इसी प्रकार कादमा गोली कांड में 5 किसान मारे गए। टोहाना में तत्कालीन कृषि मंत्री हरपाल सिंह के निवास का घेराव कर रहे किसानों पर पुलिस ने गोली दागी तो प्यारे लाल खोखर नामक किसान को जान गंवानी पड़ी थी।

हुड्डा कार्यकाल में बढ़े दलित अत्याचार
लगातार 10 साल शासन करने वाले पूर्व सी.एम. भूपेंद्र हुड्डा के कार्यकाल में बड़ी घटना गुरुग्राम स्थित मारुति कम्पनी में आगजनी व हिंसा की रही, जिसमें उस समय के पी.एम. डा. मनमोहन सिंह को दखल देना पड़ा व मारुति की एक यूनिट राज्य से खिसकने से बच गई। गोहाना में हिंसक वारदात से हुडा को काफी परेशानी झेलनी पड़ी। इसी प्रकार हिसार के मिर्चपुर व अन्य जगहों पर दलित अत्याचार की घटनाओं ने तो उन्हें हिलाकर रख दिया था। जाट आरक्षण के दौरान मय्यड़ में 3 लोग मारे गए और एक महिला टीचर की मौत से काफी बवाल मचा। यह संयोग है कि उनके शासन काल में किसानों पर गोली नहीं दागी गई।

चौटाला कार्यकाल में कंडेला कांड में 12 किसानों की मौत
ओमप्रकाश चौटाला के कार्यकाल के पहले कार्यकाल में महम कांड हुआ जिसे उस इलाके के लोग आज भी नहीं भूले हैं। झज्जर जिले के दुलीना में पशुओं की खाल के लिए विवाद गहरा गया जब उग्र भीड़ ने पीट-पीट कर कई लोगों की हत्या कर दी थी। जींद के कंडेला में किसानों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया और गोलियां चलाई, जिसमें 12 किसान मारे गए थे। विवश पुलिस को गोली तब चलानी पड़ी जब किसानों ने प्रशासनिक अधिकारियों को बंधक बना लिया था।