सीट खाली होने के बाद उपचुनाव के क्या हैं प्रावधान ? सेवानिवृत्त विधानसभा एडवाइजर राम नारायण यादव से पंजाब केसरी की एक्सक्लुसिव बातचीत...

punjabkesari.in Friday, May 19, 2023 - 09:16 PM (IST)

चंडीगढ़ (चन्द्र शेखर धरणी) : अम्बाला लोकसभा सीट के दिवंगत सांसद रतनलाल कटारिया की मृत्यु के बाद राजनैतिक हलकों में यही चर्चा है कि चुनावों को 1 साल का समय बचा है, उपचुनाव होंगे या नहीं। सविंधान विशेषज्ञ हरियाणा विधानसभा से सेवानिवृत्त स्पेशल सेक्रेटरी व पंजाब से सेवानिवृत्त विधानसभा एडवाइजर राम नारायण यादव से बर्निंग इश्यू पर पंजाब केसरी की एक्सक्लुसिव बातचीत के प्रमुख अंश...

प्रश्नः हरियाणा में अंबाला लोकसभा की सीट रतन लाल कटारिया की मृत्यू से रिक्त हो गयी है। चुनावी प्रक्रिया व कानून के अनुसार क्या इस सीट पर चुनाव कराये जा सकते हैं, या ये टाल सकते हैं। इस बारे प्रावधान क्या हैं?

उत्तरः अम्बाला लोकसभा सीट 19 मई, 2023 को खाली हुई है। जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 के सेक्सन-151ऐ के अंतर्गत इसके चुनाव इस तारीख के 6 महिने के अन्दर कराने का प्रावधान है। हां यह प्रावधान दो परंतुक लगाता है जिनके कारण चुनाव टाले जा सकते हैं। एक, यदि खाली हुई सीट की बकाया अवधि 1 वर्ष से कम समय की है; दूसरे, यदि केंद्र सरकार की मंत्रणा से चुनाव आयोग यह सर्टीफाई करता है कि इस अवधि में चुनाव कराना मुश्किल है; तो इन दो कारणों से चुनाव टल जायेगा। यहां यह स्पष्ट कर देना भी उचित होगा कि, प्रधानमंत्री जी ने हालांकि 30 मई, 2019 को शपथ ली थी, परंतु लोकसभा का कार्यकाल 16 जून, 2019 से शुरू हुआ था। इसलिये अंबाला लोकसभा की बकाया अवधि, जो सीट खाली होने के दिन से मानी जाती है, 1 वर्ष 28 दिन के लगभग है।

प्रश्नः यदि चुनाव होते हैं तो इसकी प्रक्रिया क्या व कितनी लंबी होगी।

उत्तरः इसके लिये अधिसूचना जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 के सेक्सन-150 के अंतर्गत जारी होती है, और सामान्य चुनावों की तरह ही इसके लिये भी-7 दिन नौमिनेशन के लिये, 1 दिन स्क्रुटिनी के लिये, 2 दिन नौमिनेशन वापस लेने के लिये, तथा नौमिनेशन-स्क्रुटिनी, स्क्रुटिनी-नौमिनेशन वापस व नौमिनेशन वापस-14 दिन चुनाव प्रचार के बीच छुटियां जो होगी वो, 1 दिन रिपोल यदि कोई होगा, 1 दिन मतगणना तथा घोषणा; इतना चुनाव नोटिफिकेशन से चुनाव पूरा होने के लिये लगभग 35-40 दिन की आवश्यकता होती है।उपचुनाव की अधिसूचना अन्य राज्यों के उपचुनावों, यदि कोई है, के साथ भी हो सकती है। आयोग चुनाव-कार्यक्रम की घोषणा से पहले, कानून व्यवस्था के अतिरिक्त, विभिन्न पहलुओं पर विचार करता है। यदि, केंद्रिय सरकार से विचार-विमर्श के बाद, उपचुनाव कराने में कोई बाधा आती है तो चुनाव आयोग उस परिस्थिति को प्रमाणित करके उपचुनाव को इस अवधि के बाद के लिऐ टाल सकता है।

प्रश्नः क्या हरियाणा या देश में उपचुनावों के ऐसे उदाहरण हैं, और क्या कभी ऐसी परिस्थिति बनी कि जब उपचुनाव 6 महीने की सीमा तथा 1 वर्ष से कम अवधि होने पर भी उपचुनाव देश-प्रदेश में हुए हैं ?

उत्तरः जी, ऐसे उदाहरण हैं, सेक्सन 151ए लागू होने से पहले भी व बाद भी। 19 अगस्त, 1982 को गोबिंदराय बत्रा के निधन से फतेहाबाद का चुनाव 23 दिसंबर, 1983 को हुआ जिसमें चौ. लीलाकृष्ण विधायक बने। चौ. बंसीलाल के वर्ष 1987 में मुख्यमंत्री बनने पर उन्हें एक वर्ष से कम अवधि होने पर विधानसभा का सदस्य बनाया गया। एक विशेष उदाहरण ताउड़ू का है। चौ. कबीर अहमद की सदस्यता सर्वोच्च न्यायालय से 28 फरवरी, 1984 को निरस्त हो गई। चुनाव आयोग ने अन्य राज्यों के उपचुनावों के साथ ताउडू उपचुनाव भी 6 अप्रैल, 1984 को घोषित कर दिया। हरियाणा के मुख्यसचिव व मुख्य चुनाव अधिकारी के अनुरोधों के बाद भी चुनाव आयोग 18 अप्रैल को अधिसुचना जारी करने के निर्णय पर अडिग रहे। 17 अप्रैल को हरियाणा सरकार ने चुनाव अधिसूचना पर पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय से एक्स पार्टी रोक के आदेश हासिल कर लिए। इसके विरूद्ध चुनाव आयोग सर्वोच्च न्यायालय पहूंचा व 18 अप्रैल को उच्च न्यायालय के आदेश के निलंबन के अंतरीम आदेश संविधान पीठ से हासिल किए, और उपचुनाव घोषित तिथि 20 मई, 1984 को हुए जिसमें चौ. तैयब हुसैन विधायक बने। एक विशेष बात जो इस 151ऐ कानून के संबंध में है, वह है; अनुच्छेद 75; व अनुच्छेद 164; जैसे संविधानिक दायित्व-बंधन निभाने के लिए भी केन्द्र व अन्य प्रदेशों में उदाहरण हैं जब आवश्यकतानुसार चुनाव 151ऐ के प्रावधानों के खिलाफ कराये गये और सदस्य चुने गये जैसे; प्रधानमंत्री के लिये श्री पी वी नरसिंम्हा राव 1991 में व देवेगौड़ा जी 1996 में। तथा, मुख्यमंत्री के लिये श्री विजय भास्कर रेडडी जी 1993 में, राबडी देवी जी 1997 में, अशोक गहलोत जी 1999 में, गिरिधर गोमंाग जी 1999 में, आदि। हालांकि गिरिधर गोमांग जी के साथ अन्य खाली पड़ी सीटों के लिये इलेक्शन नहीं कराये गये। इन सभी में टर्म 1 वर्ष से कम थीं।

प्रश्नः प्रदेश व देश की वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए अम्बाला उपचुनाव की क्या संभावनाएं हैं ?

उत्तरः सीट रिक्त होते ही सामान्यतः सरकारें समय सीमा में चुनाव के लिए तैयार रहती हैं। हां, यदि संबंधित चुनाव क्षेत्र, प्रदेश या देश में ऐसी कोई परिस्थिति चुनाव आयोग के सामने आती है या लाई जाती है जो समय सीमा में चुनाव कराने में बाधा है, उस स्थिति में चुनाव आयोग जनप्रतिनिधि अधिनियम के सेक्सन-151ए के प्रोवीजो-बी के अंतर्गत निर्णय ले सकते हैं, अर्थात चुनाव टाला जा सकता है।

इसका एक कारण ये भी हो सकता है कि जैसे 1 वर्ष से कम समय के लिये चुनाव न कराने का कानून है, परंतु जैसा पहले बताया गया है, संविधानिक बाध्यता उत्पन्न होने पर कानून संविधान के प्रोविजन का सूपरसीड नहीं करता, और कानून के विपरीत संविधानिक प्रावधानों के हिसाब से कदम उठाये जा सकते हैं।  दूसरे, जहां किसी क्षेत्र की इलेक्सान पिटिसन, सीट खाली होने पर भी, पैंडिंग पडी है वहां चुनाव साधारणतया नहीं कराये जाते।

(हरियाणा की खबरें टेलीग्राम पर भी, बस यहां क्लिक करें या फिर टेलीग्राम पर Punjab Kesari Haryana सर्च करें।) 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Editor

Mohammad Kumail

Related News

static