''व्हिप'' के कारण अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पड़ा बड़ा प्रभाव: अनिल विज

9/23/2022 6:00:13 PM

चंडीगढ़ (धरणी) : हरियाणा के गृह व स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज कहते हैं कि आजादी के बाद देश निर्माताओं ने बड़े अध्ययन के बाद प्रजातांत्रिक व्यवस्था को लोकहित के लिए सर्वोत्तम माना, लेकिन आज प्रजातांत्रिक व्यवस्था का ढांचा डोल रहा है। क्योंकि देश में भाजपा जैसी कुछ प्रजातांत्रिक पार्टियां हैं तो कुछ परिवारिक- देश को लूटने वाले गैंग टाइप की पार्टियां चल रही है। जिनके सामने प्रजातंत्र का कोई मूल्य नहीं है जो तानाशाही रवैया से सरकारों को चलाते हैं। राजीव गांधी के दलबदल विरोधी कानून संबंधित फैसले ने एक बीमारी के इलाज के साथ 50 बीमारियां पैदा की हैं जिस कारण विधायकों से पूछे बिना नहीं सोने वाले मुख्यमंत्री ज्यादा ताकतवर- तानाशाह और मनमर्जी के मालिक बन गए हैं। क्योंकि बात-बात पर 'व्हिप' जारी हो जाते हैं। बेशक आप किसी फैसले से संतुष्ट ना भी हो तब भी आपको ताली बजाने पड़ेगी। आपको हाथ खड़ा करना होगा तो ऐसे में कहां है प्रजातंत्र की आजादी। 

प्रजातंत्र को मजबूत करने और इस व्यवस्था को सफलतापूर्वक चलते रहने के लिए केवल राजनीति की नहीं मीडिया को भी अपना किरदार निभाना होगा। क्योंकि पार्टियां और नेता निजी हितों को लेकर आमतौर पर हाथ मिलाते -गले मिलते देखे जाते रहे हैं। इस कानून ने मुखिया को तानाशाह बना दिया है। 'व्हिप' के कारण अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बड़ा को प्रभाव पड़ा है। 'व्हिप' ने जनता के प्रतिनिधि को कठपुतली बनाकर रख दिया है। विधायक पार्टी के रहमों करम पर आश्रित है। जनता की भावनाओं के अनुसार ना कुछ कह सकता है और ना ही कुछ कर सकता है। पीपल रिप्रेजेंटेशंस एक्ट की तबदीली के बाद बने दलबदल कानून ने प्रजातंत्र में स्वतंत्रता को लेकर सवाल खड़े किए हैं। 

'व्हिप' की ताकत के कारण मुखिया सारी शक्तियों को अपने हाथ में रखता है और विधायक को गुलाम बनकर रहना पड़ता है और असहमति होने पर- गलत बात पर वाहवाही करना प्रतिनिधि की मजबूरी बन जाती है।मैं जब पहली बार विधायक बना था तो वह सरकार 9- 10 महीने के लिए चली थी। उसके बाद का इलेक्शन हुआ था तो उसमें हम हार गए थे। उसके बाद फिर मैं वर्ष 1996 में चुनाव जीता ,2000 में जीता, 2005 में मैं चुनाव हारा फिर 2009 में जीता ,2014 में जीता और अब 2019 में जीता।मैं तो बैंक में एम्प्लाई था।आर एस एस ने हुक्म दिया चुनाव लड़ने का नोकरी त्याग पार्टी का आदेश सिर माथे मांन चुनाव लड़े।

अनिल विज बताते हैं कि अपनी जिंदगी में वास्तव में मैंने किसी से कुछ नहीं मांगा। राजनीतिक सफर में भी मेरे यही असूल रहे। 1990 में जब नेता टिकट की जद्दोजहद में संघर्ष कर रहे थे, तो मैं टिकट ना लेने के लिए संघर्षरत था। 1970-71 में पार्टी से जुड़ा और विद्यार्थी परिषद के लिए लंबे समय तक काम किया। लोगों का मेरे प्रति प्यार और मेरी मेहनत देखकर लीडरशिप ने मुझे चुनाव लड़ने के लिए आदेश कर दिए। जबकि मैं इस टिकट को नहीं लेना चाहता था। मैंने कई दूसरे नेताओं को टिकट देने के लिए उनका नाम भी रिकमेंड किया। लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने मुझे डांट लगाई और मेरी सरकारी नौकरी छुड़वा कर मुझे जबरदस्ती चुनाव लड़वाया और मैंने चुनाव जीता।

गृह मंत्री अनिल विज ने कहा कि अगर आज गौर करें तो इस प्रजातांत्रिक व्यवस्था का ढांचा कहीं न कहीं ढोल रहा है। उन्होंने कहा आज विशेषकर हमारे देश में कई पार्टियां है, प्रजातांत्रिक है जिनमें भाजपा शामिल है, कुछ पारिवारिक और कुछ गैंग्स है जो देश को लूटने के लिए बने हैं। हमारे प्रजातांत्रिक ढांचा बिगड़ रहा है। जो पारिवारिक पार्टियां है इनमें प्रजातंत्र का कोई मूल्य नहीं है और अधिक से अधिक तानाशाहीपूर्ण रवैये से सरकारों को चलाया जा रहा है। विशेष तौर से राजीव गांधी के समय से जब उन्होंने पीप्ल रिप्रेजेंटेशन एक्ट को तब्दील करके दल-बदल होता था उसे खत्म करने के लिए जो कानून लाया उसके बाद मुख्यमंत्री ज्यादा तानाशाह हो गए। राजीव गांधी राजनीतिज्ञ नहीं, एक पायलट थे, उन्हें राजनीति विषय पर प्रतिक्रिया का एहसास नहीं था। उन्होंने दल-बदल का ईलाज किया, मगर उसके साथ पचास समस्याये और खड़ी हो गई। आज लोगों की जो सोच व जरूरतें है आज वह सरकारों में जाकर उनकी सोच को पहुंचा नहीं सकते। 

उन्होंने कहा कि किसी तानाशाह के हाथ में देश आ गया तो क्या होगा आपने देखा। मगर उसका विधायक दल गलत काम करता है तो जनता उसको सजा देती है, यदि उसका मुखिया गलत काम करता है तो जनता उसे सजा देती है। मगर आज जनता सजा नहीं दे सकती और आपको सहना और झेलना पड़ेगा। यदि दल बदल कानून लागू ही करना था तो यह करना चाहिए था कि जो जिस दल से खड़ा है वह अपना दल बदल नहीं सकता।

अनिल विज ने कहा कि कांग्रेस संगठन तो कभी पहले भी नहीं बन पाया। आजादी के बाद इनका जोर होने के कारण इन्होंने अपनी सरकारें अवश्य बनाई। जिसके बाद सरकारों से फायदा उठाने की सोच रखने वाली जमात इनके कार्यकर्ता बन गए। इनके नजदीक आ गए। सरकार चली गई तो वह लोग भी चले गए। ठेके- कोटे- परमिट वाले लोगों को यह लोग अपना वर्कर समझते हैं। लेकिन सच में वह किसी के वर्कर नहीं होते। जिसकी सरकार आएगी वह उसमें चले जाएंगे। 

विज ने कहा कि अगर एसवाईएल के मुद्दे पर आम आदमी पार्टी जिलेबी बनाएगी तो इस बार जलेबी इनके गले में फंस जाएगी। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का इस बारे बिल्कुल क्लियर आदेश है कि नहर बनाई जाए और हरियाणा को उसके हक का पानी दिया जाए। दोनों सरकारें मिलजुल कर आपस में तय करें कि नहर कैसी बनाई जानी है। इस फैसले के बाद हम बात करने के लिए बिल्कुल तैयार है। लेकिन पंजाब सरकार द्वारा अभी तक कोई ऑफर नहीं आया है। इस बैठक में केंद्र सरकार के नुमाइंदे भी शामिल होंगे और हमें उम्मीद है कि मिलजुल कर यह काम हो जाएगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो आम आदमी पार्टी सरकार बेहद बुरी तरह से फंस जाएगी। 
 

Content Writer

Manisha rana