क्या राज्यसभा सांसद रामचंद्र जांगड़ा के चुनावी हलफनामे में चूक पर चुनाव आयोग संज्ञान लेगा?

6/22/2020 5:20:38 PM

चंडीगढ़ (धरणी): तीन माह पूर्व मार्च, 2020 में राज्य सभा के द्विवार्षिक चुनावों में हरियाणा से दो नियमित सीटों और एक उपचुनाव की सीट के लिए निर्वाचन प्रक्रिया संपन्न हुई। इनमें नामांकन भरने वाले तीनों उम्मीदवारों-भारतीय जनता पार्टी (भाजपा ) से रामचंद्र जांगड़ा और दुष्यंत कुमार गौतम एवं कांग्रेस से दीपेंदर हुड्डा का निर्विरोध निर्वाचन हो गया। जांगड़ा और दीपेंदर ने  दो नियमित सीटों के लिए जबकि गौतम ने उपचुनाव की सीट के लिए नामांकन भरा था। उक्त चुनावों में निर्वाचन अधिकारी हरियाणा कैडर के  आईएएस अजीत बालाजी जोशी थे।

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने इस सम्बन्ध में मौजूदा चुनावी  कानून के प्रावधानों की जानकारी देते हुए बताया कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 53 (2) के अनुसार अगर किसी चुनाव में उम्मीदवारों की संख्या उस चुनाव द्वारा भरी जाने वाली रिक्त सीटों के समान हो, तो निर्वाचन अधिकारी उन सभी उम्मीदवारों को सीधे निर्वाचित घोषित कर देता है।

गौतम का कार्यकाल बीरेंदर सिंह के त्यागपत्र से रिक्त हुई राज्य सभा सीट की शेष बची अवधि अर्थात 1 अगस्त 2022 तक ही होगा। जहां तक जांगड़ा और दीपेंदर का विषय है, दोनों का राज्य सभा कार्यकाल 6 वर्ष के लिए अर्थात 10 अप्रैल 2020 से 9 अप्रैल 2026 तक होगा। सनद रहे कि इन दोनों को निर्वाचन सर्टिफिकेट तो बीती 18 मार्च को अर्थात नामांकन वापसी के अंतिम दिन ही प्रदान किया गया, हालांकि केंद्र सरकार के विधि मंत्रालय के विधायी विभाग द्वारा बीती 10 अप्रैल को इन दोनों के निर्वाचन की गजट नोटिफिकेशन जारी कर उसे अधिसूचित किया गया।

बहरहाल, हरियाणा से राज्य सभा की उक्त तीन सीटों के लिए जांगड़ा, दीपेंदर और गौतम द्वारा अपने अपने अपने नामांकन पत्र के साथ जो निर्धारित एफिडेविट संलग्न किए एवं जिन्हें हरियाणा के मुख्य चुनाव अधिकारी की वेबसाइट पर अपलोड किया गया है।  हेमंत ने जब उनका अध्ययन किया तो वह यह देखकर हैरान हुए कि भाजपा के राम चंद्र जांगड़ा ने अपने एफिडेविट में पिछले पांच वित्तवर्षों में अपनी इनकम टैक्स रिटर्न में घोषित की गई वार्षिक आय का ब्यौरा देने के बजाये उन सब वर्षो में नॉटएप्लीकेबल अर्थात लागू नहीं का उल्लेख किया है। अर्थात उन्होंने बीते पांच सालों में अपनी प्रत्येक वार्षिक आय का खुलासा नहीं किया है। इसके अतिरिक्त पिछली वित्त-वर्ष जिसके  दौरान उन्होंने अपनी पिछली इनकम टैक्स रिटर्न भरी हो, उसमें जांगड़ा ने  वर्ष  2019-20 का उल्लेख किया गया है जबकि वास्तव में वित्त-वर्ष 2019-20 की रिटर्न अप्रैल 2020 के बाद ही, अर्थात असेसमेंट ईयर 2020-2021 में ही भरी जा सकती है, उससे पहले नहीं। 

ज्ञात रहे कि जांगड़ा द्वारा उक्त एफिडेविट 13 मार्च 2020 को भरा गया अर्थात अप्रैल, 2020 से पहले, इस प्रकार  उनके द्वारा उक्त  वित्त-वर्ष के नीचे  वित्त-वर्ष 2019-20 का उल्लेख क्या भूलवश हो गया या किसी और कारण से, यह देखने लायक है। इसके अतिरिक्त जांगड़ा द्वारा बीते पांच वित्त-वर्षों के दौरान अपनी वार्षिक आय का चुनावी एफिडेविट में ब्यौरा न देने के बारे में हेमंत ने बताया कि जांगड़ा को दिसंबर 2015 में प्रदेश सरकार द्वारा हरियाणा पिछड़ा वर्ग एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग कल्याण निगम, जो राज्य सरकार की एक सरकारी कंपनी हैं, का निदेशक एवं चेयरमैन नियुक्त किया गया था। इस सम्बन्ध में उनकी नियुक्ति बारे गजट नोटिफिकेशन भी हरियाणा के अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग द्वारा प्रकाशित की गई थी। 

हेमंत का मानना है कि इस प्रकार चूंकि वित्त-वर्ष 2015-16 में जांगड़ा को हरियाणा की उक्त सरकारी कंपनी का चेयरमैन (गैर-सरकारी) नियुक्त किया गया। इस प्रकार यह स्वाभाविक है कि उन्हें इस पद पर हरियाणा सरकार की ओर से निर्धारित मासिक वेतन/ मानदेय आदि मिलता रहा होगा हालांकि यह वास्तविक रूप में कितना होगा यह हरियाणा सरकार की ओर से जारी जांगड़ा की उक्त चेयरमैन के रूप में नियम एवं शर्तो में स्पष्ट होगा। अब जांगड़ा ने इस सब का खुलासा अपने चुनावी एफिडेविट में क्यों नहीं किया, यह उनकी समझ से बाहर है। 

जांगड़ा ने हलफनामे में यह भी उल्लेख नहीं किया है की वह उक्त निगम के चेयरमैन रहे हैं, यह भी देखने लायक होगा कि राज्य सभा चुनावों में निर्वाचन अधिकारी ने क्या जांगड़ा के एफिडेविट में इस चूक पर कोई आपत्ति जताई अथवा नहीं? हेमंत ने बताया कि  हालांकि जांगड़ा का उक्त निगम के चेयरमैन के रूप में कुल कार्यकाल कितना रहा, यह स्पष्ट नहीं है क्योंकि उनके द्वारा चेयरमैन पद से  दिया गया त्यागपत्र हरियाणा सरकार द्वारा कब स्वीकार किया गया, ऐसा  सरकारी गजट में प्रकाशित एवं अधिसूचित नहीं किया गया। लिखने योग्य है कि हरियाणा सरकार के राजनैतिक विभाग द्वारा मई, 2020 में जारी पत्र के अनुसार प्रदेश के बोर्डों/निगमों के गैर -सरकारी चेयरमैन और वाईस-चेयरमैन की अवधि को 30 अप्रैल 2020 तक ही बढ़ाया गया था, जिसके बाद उनको तत्काल रूप से कार्यमुक्त कर दिया गया। अब यह देखने लायक है कि क्या जांगड़ा ने उक्त तिथि से पहले ही त्यागपत्र दे दिया या उनका कार्यकाल पूर्ण हो गया था अथवा वह 30 अप्रैल 2020 तक इस पद पर रहे?

हेमंत ने बताया कि बीती 16 जून को भारतीय चुनाव आयोग ने एक प्रेस नोट जारी कर स्पष्ट किया है कि जिन उम्मीदवारों द्वारा अपने चुनावी एफिडेविट में गलत या अधूरी जानकारी दी गई है। उनमें से गंभीर चूक वाले एवं अन्य केसों में जो आयोग को उपयुक्त प्रतीत हो उनमें वह संज्ञान लेकर ऐसे मामलों को जांच एजेंसियों को भेज सकता है। ज्ञात रहे कि मौजूदा लोक प्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 125 ए के अनुसार कोई व्यक्ति ऐसे केसों में उम्मीदवार के विरूद्ध अदालत में शिकायत भी दायर कर सकता है।

Shivam