मुंह से सीटी, किलोमीटर के हिसाब से किराया

10/20/2018 10:43:41 AM

जींद(मलिक/प्रदीप): उनके पास बस रुकवाने और चलवाने के लिए सीटी नहीं थी। मुंह से वह सीटी का काम ले रहे थे। टिकट काटने को पंच और टिकट नहीं थे। किराया जिसने दिया उसका भी भला और जिसने नहीं दिया, उसका भी भला। यह स्थिति शुक्रवार को उन स्कूल बसों में थीं, जिन्हें सरकार और प्रशासन ने रोडवेज कर्मचारियों के चक्का जाम से निपटने की खातिर यात्रियों को ढोने के लिए रूटों पर चलाया था। जिले में 50 स्कूल बसों को यात्री ढोने के लिए हायर किया गया था। इनमें 30 स्कूल बस जींद और 10-10 नरवाना तथा सफीदों में दी गई थी। शुक्रवार सुबह स्कूल बसों को समय पर रूटों पर इसलिए नहीं निकाला जा सका कि होमगार्ड के जिन जवानों को इन बसों में कंडक्टर बनाकर बिठाना था, वह दोपहर 12 बजे तक अड्डों पर नहीं पहुंचे। 

इसके चलते स्कूल बसों के चालकों ने अपने परिचालकों को बुलाया और यही लोग स्कूल बसों को रूट पर लेकर निकले। स्कूल बसों के परिचालकों के पास न तो बस रुकवाने और चलवाने के लिए सीटी थी।  न ही उनके पास टिकट तथा टिकट पंच करने के लिए पंङ्क्षचग मशीन थी। उनके पास कैश कलैक्शन के लिए बैग भी नहीं थे। बस किस रूट पर जाएगी, इसके बोर्ड भी नहीं लगे थे। बोर्ड की जगह केवल आन गवर्नमैंट ड्यूटी के पिंट आऊट चस्पा किए गए थे। कंडक्टर का काम करने वालों को रोडवेज अधिकारियों ने एक सूची सौंप दी थी। इसमें रूट के गांवों के किलोमीटर की दूरी लिखी गई थी और उन्हें प्रति किलोमीटर एक रुपए के हिसाब से किराया वसूलने को कहा था। किराए को लेकर हालत यह थी कि जो दे उसका भी भला और जो न दे उसका भी भला।  
 
 

Rakhi Yadav