पंचायती राज संस्थाओं पर आखिर कब तक चलेगा सरकारी डंडा!, प्रशासनिक दखल से आहत निर्वाचित प्रतिनिधि

4/14/2018 11:05:14 AM

कैथल(ब्यूरो): सरकार कोई भी हो पंचायती राज संस्थाओं को प्रशासनिक जाल में फंसा कर रखना चाहती है। अब यह मांग उठने लगी है कि सभी विकास कार्यों में सीधा हस्तक्षेप केवल निर्वाचित प्रतिनिधियों या उनके द्वारा नियुक्त सब कमेटी का ही हो। सरपंचों व अन्य संस्थाओं को प्रतिनिधियों को यह दर्द हर समय सताता है कि लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ हर मामले में उपायुक्त का ही दखल बना रहता है। यही कारण है कि डी.सी. 60-65 कमेटियों का चेयरमैन होता है जिस कारण संस्थाएं अपने आपको पंगु समझने को विवश हैं। 

ऐसी समितियों की अध्यक्षता की शक्तियां निर्वाचित प्रतिनिधियों को ही हो ताकि संस्थाएं स्वतंत्र रूप से काम कर सकें। यदि राज्य की पंचायती राज संस्थाओं की कार्यप्रणाली व सरकारी नियंत्रण पर चर्चा की जाए तो पता चलता है कि बार-बार संशोधनों का कोई असर नहीं पड़ा और न ही रातों-रात कोई परिवर्तन कहीं नजर आया। जिसका सीधा कारण है कि आज भी उन पर प्रशासनिक नियंत्रण इतना ज्यादा है कि एक कदम आगे रखते हुए उन्हें दूसरा कदम पीछे खींचना पड़ रहा है। 

वास्तव में हरियाणा ने पंचायती राज एक्ट ऑफ पंजाब को 1966 में अडाप्ट किया था लेकिन राज्य सरकार ने 1973 में जिला परिषदों को भंग करने का बड़ा फैसला लेकर उन्हें सीधे ही जिलों में तैनात उपायुक्त के नियंत्रण में कर दिया, इसी के साथ ही ब्लाक समितियों को भी भंग कर दिया तथा सरकार ने जिला ग्रामीण विकास एजैंसियों की स्थापना करके इन संस्थाओं को उनके अधीन कर दिया। यही नहीं, सरकार का डंडा पंचायतों पर भी चला और सरपंचों की शक्तियों को समाप्त करते हुए उन पर सचिवों की दादागिरी को अमलीजामा पहना दिया गया। उस समय सरकार के इस कदम को पंचायती राज संस्थाओं की शक्तियों की हत्या तक करार दिया गया।

Deepak Paul