जनस्वास्थ्य इंजीनियरिंग विभाग में 500 करोड़ की बिजली चोरी

9/29/2016 2:20:37 PM

कैथल (रणवीर पराशर): आमतौर पर बिजली चोरी के लिए छापेमारी व्यक्तिगत बिजली कनैक्शन होल्डर या सीधे तौर पर बिजली करने वाले उपभोक्ताओं पर ही की जाती है परन्तु कोई विश्वास भी नहीं कर सकता कि सरकार का एक बड़ा महकमा खुद ही बिजली चोरी कर रहा है और वह भी 1 या 2 जगहों पर नहीं बल्कि पूरे हरियाणा में। बहुत ही मायने रखने वाले जन स्वास्थ्य इंजीनियरिंग विभाग में हो रही अनुमानित चोरी की राशि का हिसाब लगाया जाए तो 500 करोड़ का आंकड़ा पार हो सकता है। 
इतनी बड़ी चोरी की खबर तथा 500 करोड़ का अनुमानित सरकारी राजस्व घाटा होने की जब मुख्यमंत्री मनोहर लाल को भनक लगी तो उनके अतिरिक्त प्रधान सचिव डा. राकेश गुप्ता ने इसकी मेल सभी विभागीय अधिकारियों को कर दी जिससे महकमे में हड़कम्प मच गया है। यह चोरी हरियाणा के सभी 21 जिलों में हो रही है। चोरी और सीना जोरी के किस्से भी इस विभाग की सुॢखयों में रहते रहे हैं। यानी बिजली चोरी न पकड़ी जाए इसके लिए कर्मचारी समय-समय पर आंदोलन करके मुख्यालय स्थित शीर्ष अधिकारियों का ध्यान भटकाते रहे हैं। 


सूत्रों का कहना है कि यह चोरी एक दिन या एक साल में नहीं हुई बल्कि जनस्वास्थ्य विभाग के जलापूॢत से जुड़े हर स्रोत यानी हर ट्यूबवैल, बूस्टर या सीवरेज ट्रीटमैंट प्लांट से हो रही है। हजारों सरकारी आवासों में कर्मचारी लम्बे समय से कब्जे में हैं तथा एक-एक सरकारी आवास पर कर्मचारी 10 से 15 साल से रह रहा है। इस दौरान कभी भी जन स्वास्थ्य अधिकारियों ने यह चैक नहीं किया कि संबंधित कर्मी के नाम पर बिजली मीटर लगा है या नहीं है। यानी चोरी दशकों से निरंतर हो रही है तथा इस चोरी का व्यापक स्वरूप हर खंड, विभाग के हर स्रोत, उपमंडल व जिलास्तरीय सरकारी आवासों तक फैला हुआ है। इस संबंध में जन स्वास्थ्य विभाग के चीफ इंजीनियर (अर्बन) आर.के. सिंगला से सम्पर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि चोरी संबंधी मामला उनकी शाखा का नहीं है। इसके बारे में इंजीनियर इन चीफ अशोक कुमार खेत्रपाल के कार्यालय से सम्पर्क किया गया तो निजी सहायक ने बताया कि खेत्रपाल बैठकों में व्यस्त हैं। उधर यह पुष्टि हुई है कि शीर्ष स्तर पर मुख्यमंत्री की मेल मिलने के बाद विभाग सक्रिय हो गया है और पिछले दशकों का हिसाब-किताब लिया जा रहा है। डिवीजन लैवल पर अधिकारी सक्रियता से चोरी पकड़वाने तथा जिम्मेदारी तय करने में जुट गए हैं।

चोरी पकडऩे के लिए करने होंगे ड्यूटी मैजिस्ट्रेट तैनात
जन स्वास्थ्य विभाग के आवासीय क्षेत्रों में चोरी तो है लेकिन कभी पकड़ी नहीं गई। सूत्रों के अनुसार अधिकांश अधिकारी और कर्मचारी मीटर रीङ्क्षडग के अनुसार बिल अदा कर रहे हैं परंतु इस सज्जाई के बावजूद 20 प्रतिशत ऐसे कर्मचारी हैं जिन्होंने अपने आवास पर मीटर नहीं लगाए। ट्यूबवैल ऑप्रेटर आदि तकनीकी कर्मचारी जिनकी तैनाती किसी भी विभागीय स्रोत यानी ट्यूबवैल, सीवरेज ट्रीटमैंट प्लांट यानी एस.टी.पी., बूस्टर आदि पर है वहां 99 प्रतिशत बिजली चोरी हो रही है जिसके लिए सीधे तौर पर बिजली निगम और जन स्वास्थ्य कर्मी जिम्मेदार हैं। एक-एक एस.टी.पी. पर 10 से 15 कर्मचारी औसतन काम कर रहे हैं उनमें कज्जे व पक्के कर्मचारी शामिल हैं। समझा जा रहा है कि इस बड़ी प्रशासनिक विफलता के लिए आला अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते। अब चोरी पकडऩे के लिए विभाग को जिलाधीश की मदद लेते हुए ड्यूटी मैजिस्ट्रेट तैनात करवाने होंगे।

बिजली लॉस के अनुमान का प्रस्तावित पैमाना
प्राप्त जानकारी के अनुसार विभाग इस दिशा में बिजली चोरी के इस आंकड़े के अनुसार निचले स्तर पर काम करने लगा है जिसके अनुसार हर स्रोत व आवास पर रहने वाले कर्मचारी की जानकारी, यानी डेट ऑफ ज्वाइङ्क्षनग, मकान मिलने की तारीख, उक्त स्टेशन पर कब तक रहा, बिजली मीटर लगा या नहीं लगा, यदि नहीं लगा तो क्यों नहीं लगा, क्या विभागीय नो ड्यू प्रमाण पत्र प्राप्त किया, यदि नहीं तो क्यों, घर में कितने सामान्य या पावर प्वाइंट लगे हैं। यह सभी ऐसे तथ्य हैं जो कुल बिजली चोरी के आंकड़ों को छू जाएंगे। वैसे ऐसी चोरी में डोमैस्टिक चाॢजज ही लिए जा सकेंगे इसके अलावा पैनल्टी का उत्तरदायी भी संबंधित कर्मचारी होगा।

18 सालों का मांगा जा सकता है लेखा-जोखा
मुख्यमंत्री कार्यालय की मेल से यह स्पष्ट हा गया है कि जन स्वास्थ्य विभाग के आवासीय क्षेत्रों में बिजली आपूॢत की यह बड़ी चोरी है, जो विभाग के हर स्रोत पर की जा रही है। सूत्र बताते हैं कि सरकार यह तैयारी कर रही है कि बीते 18 सालों के दौरान जो-जो सक्षम अधिकारी तैनात रहे और जिन्होंने इस दिशा में कोई कारगर कदम नहीं उठाए उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जा सकती है।