किसानों के लिए आफत बने आवारा पशु

12/18/2017 11:52:03 AM

लोहारू(ब्यूरो):आवारा (छुट्टा) पशुओं की दिन-प्रतिदिन बढ़ती संख्या किसानों के लिए बड़ी आफत बन चुकी है। इन पशुओं के झुंड जिधर से भी गुजरते हैं वहां खड़ी फसल को मिनटों में चौपट कर डालते हैं। इन पशुओं में सर्वाधिक संख्या विदेशी नस्ल की गाय व बछड़ों की है और इनको अपने क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में धकेलने को लेकर किसानों के बीच आए दिन झगड़े भी होते रहते हैं। हालत ऐसी है कि किसान रात-दिन खेतों में पहरा देते हैं और जरा सी लापरवाही होते ही ये पशु पूरी फसल का काम तमाम कर डालते हैं। वक्त और हालात ने गौपाल किसान और गौमाता दोनों को लाचार बनाकर रख दिया है। 

यहां तक कि माता का दर्जा प्राप्त गायों के लिए अब ‘आवारा’ विशेषण धड़ल्ले से प्रयुक्त किया जाने लगा है। कई गांवों में किसानों ने फसलों की रक्षा के लिए अपने स्तर पर नंदीशालाएं खोली हैं जिनमें संसाधनों का भारी अभाव है और यहां रखी गई गाएं कड़ाके की ठंड के बीच हाड़ तक कंपा देने वाली सर्द रातें खुले आसमान के नीचे काटने को विवश हैं। किसानों व आमजन का कहना है कि गौमाता और धरतीपुत्रों को बचाने के लिए सरकार को जल्द से जल्द ठोस उपाय करना चाहिएं अन्यथा धीरे-धीरे दोनों के ही समक्ष अमानवीय स्थितियां बन रही हैं। यहां यह गौरतलब होगा कि लोहारू क्षेत्र में नीलगाय पहले से ही किसानों के लिए बड़ी चुनौती रही हैं और अब छुट्टा गायों की बढ़ती संख्या ने तो किसानों का सुख-चैन छीन लिया है। 

किसानों ने पत्रकारों को बताया कि हर गांव में दर्जनों की संख्या में विदेशी नस्ल के गाय-बछड़े घूम रहे हैं जो कि मौका मिलते ही फसलों को अपना ग्रास बना लेते हैं। किसानों का कहना है कि गौशालाओं में जाकर सवामणी और केक काटकर फोटो खिंचवाने वाले तथा कथित गौभक्तों को दर-दर की ठोकरें खाती घूम रही गायें नजर नहीं आती। प्रदेश सरकार द्वारा गौहत्या को तो दंडनीय अपराध बना दिया गया है मगर प्लास्टिक के थैलों से पेट भरकर तिल-तिल मरती और दिनभर शहरों के बाजार और गली-चौराहों में दुत्कार व डंडों की मार सहने वाली गौमाता के लिए गौ अभ्यारण्य जैसे वायदे अभी दूर की कौड़ी ही नजर आ रहे हैं। अगर इन छुट्टा पशुओं की समस्या का कोई स्थायी समाधान सरकार व समाज के स्तर पर नहीं किया गया तो किसानों के लिए अपनी फसलों व पशुधन को बचा पाना संभव नहीं होगा।