गुरू गोबिंद सिंह जी ने मनाया था प्रथम प्रकाशोत्सव, तब से लाखों श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं कपालमोचन

11/5/2017 3:59:35 PM

यमुनानगर (ब्यूरो): कपालमोचन के नाम से मशहूर कोई जगह या गांव नहीं बल्कि बहुत ही महत्वपूर्ण तीर्थस्थान है। जहां पर कई सरोवर मौजूद हैं। यहां पर लगने वाले मेले में पहुंचने वाले करीब पांच लाख के करीब लोग घूमने नहीं बल्कि लोग पुण्य कमाने आते हैं। फिलहाल मेले के लिए तीर्थ की अपनी जमीन भी नहीं है। तीन गांव मिल्कखास, बिलासपुर अहड़वाला के रकबे में चार किलोमीटर तक भव्य मेला लगता है।

रेवेन्यू विभाग के रिकार्ड के अनुसार भी कपाल मोचन नामक का कोई स्थान नहीं है। यहां तक कि कपाल मोचन मेले का बस स्टैंड भी अहड़वाला के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि, यहां पर गुरु नानक देव का पहला प्रकाशोत्सव मनाया गया। यह भी मान्यता है कि इस पवित्र राज कपाल मोचन तीर्थ स्थान से दसवें गुरु गोबिंद सिंह ने केसरिया रंग का सिरोपा देने की परंपरा शुरू की थी।

भंगाणी का युद्ध जीत कर पहुंचे थे गुरु गोबिंद सिंह
एसजीपीसी के उपप्रधान बलदेव सिंह ने बताया कि गुरु गोबिंद सिंह ने भंगाणी का युद्ध फतेह करने के बाद कपाल मोचन में 52 दिन विश्राम किया था। वे चंडी के भक्त थे। इसी जगह पर उन्होंने चंडी की वार लिखी थी। उन्होंने सिपहसालारों को केसरी रंग का सिरोपा भेंट कर सम्मानित किया था। सिखों की पगडिय़ों को सरोवर में धुलवा कर सिरोपा सौंपा था।

सारे तीर्थ बार-बार, कपालमोचन एक बार
इस तीर्थ स्थान का महत्व इस बात से भी पता चलता है कि शास्त्रों में उल्लेख है कि सारे तीर्थ बार-बार कपालमोचन एक बार। इसके अनुसार कपालमोचन में केवल एक बार आने मात्र से लोगों के कष्ट पाप दूर हो जाते है। यहां भगवान राम, श्रीकृष्ण पांडव युद्ध के बाद एक बार ही आए। पुराणों में मान्यता है कि उनके पाप भी यहां के ऋणमोचन में स्नान करने से एक ही बार में धुल गए थे।

1746 में मनाया था पहला प्रकाशोत्सव
गुरुद्वारा पहली एवं 10 वीं पातशाही के मैनेजर नरेंद्र सिंह सिमरनजीत सिंह ने बताया कि गुरु गोबिंद सिंह साहब ने यहीं पर ठहर कर गुरु नानक देव का प्रथम प्रकाशोत्सव 1746 संवत में मनाया था। उसके बाद हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर प्रकाशोत्सव मनाया जाता है। कालांतर में यहां मेला लगने लगा। पंजाब के अलावा अन्य प्रदेशों के श्रद्धालु स्नान करने आते हैं।

पहले सफेद सिरोपा भेंट करने की परंपरा थी
धर्मप्रचारकमेटी के शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रचारक सतनाम सिंह ने बताया कि पहले सफेद रंग का सिरोपा भेंट करने की परंपरा थी। सफेद रंग शांति का प्रतीक माना जाता है, जबकि केसरिया रंग वीरता शौर्य का प्रतीक है। गुरु साहब ने सैनिकों को सम्मानित करने के लिए यहां पर केसरिया रंग का सिरोपा दिया था।