बचपन दबा मजदूरी के बोझ तले, कैसे मनाएं बाल दिवस

11/14/2017 12:12:32 PM

चरखी दादरी(भूपेंद्र):देशभर में प्रतिवर्ष 14 नवम्बर का दिन बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह खास दिन पूरी तरह से बच्चों के लिए समर्पित होता है। बाल दिवस मनाने के पीछे देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का जन्मदिवस भी अहम स्थान रखता हैं, क्योंकि उनका जन्म 14 नवम्बर को हुआ था और वे बच्चों में बेहद लोकप्रिय थे। इसी कारण 14 नवम्बर बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है लेकिन आज के दौर में इस दिन के हालातों में काफी परिवर्तन आ चुका है।

मौजूदा समय में यह दिन बच्चों के कोई विशेष महत्व नहीं रखता, क्योंकि अब बच्चे छोटी उम्र में बड़े होकर परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ उठा रहे हैं। उन्हें स्कूल की बजाय होटल, चाय की दुकान व ढाबों में मजदूरी कर अपने परिवार की रोजी-रोटी का जुगाड़ करना पड़ रहा है। वहीं, बाल दिवस के मौके पर स्कूलों में खास कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं लेकिन बाल दिवस की खुशी क्या होती है ये कभी आपने उन बच्चों से जानने की कोशिश की है, जिनका बचपन बाल मजदूरी की बेडिय़ों में जकड़ा हुआ है।

भारत में हैं सबसे ज्यादा बाल मजदूर
बाल मजदूरी के हालात में सुधार लाने के लिए सरकार ने साल 1986 में चाइल्ड लेबर एक्ट बनाया था, जिसके तहत बाल मजदूरी एक अपराध माना गया है। बावजूद इसके हर गली और चौराहे पर कई बाल मजदूर मजदूरी करते नजर आ ही जाते हैं। इनको मजदूरी से निजात दिलाने के लिए सरकार द्वारा किए गए सभी प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं, क्योंकि सरकार की योजनाओं से ये बच्चे महरूम हैं, इन्हें बस अपने परिवार का पेट पालने की फ्रिक होती है। 

झुग्गी-झोंपडिय़ों में नहीं सुधरे हालात
बाल मजदूरी की बात की जाए तो शहर के विभिन्न स्थानों पर बनी अस्थायी झुग्गी -झोंपडिय़ों के बच्चों को शिक्षा व उनके बचपन को मजदूरी के भंवर से बचाने के लिए सरकार की योजनाएं लागू तो की जाती हैं। जहां सरकार बच्चों को कामयाबी की डगर पर ले जाने के पूरी तरह से गम्भीर है, वहीं, प्रशासनिक अधिकारी इन योजनाओं को महज फाइलों में दबाकर अपने फर्ज से इतिश्री कर लेते हैं। 

मजदूरी के दलदल में फंसे सैंकड़ों मासूम
गरीबी, लाचारी और माता-पिता की प्रताडऩा के चलते आज भी कई ऐसे बच्चे हैं जो बाल मजदूरी के दलदल में फंसे हुए हैं। इन बच्चों का समय स्कूल में कॉपी-किताबों और दोस्तों के बीच नहीं बल्कि होटलों, घरों कम्पनियों में बर्तन धोने में बीतता है।

क्या बाल दिवस पर नहीं है इन बच्चों का हक
हमारा और आपका मन तो वैसे ही अपने बच्चों को बाल दिवस पर खुश देखकर आनंदित हो जाता है लेकिन उन बच्चों का क्या जो अपना पूरा बचपन बाल मजदूरी के दलदल में फंसकर गुजार देते हैं, आखिर ये बच्चे बाल दिवस की खुशी मनाने से अक्सर महरूम क्यों रह जाते हैं।